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Delhi conspiracy case 1912 ( दिल्ली षड्यंत्र) गहन अध्ययन in depth analysis (UPSC,PCS,NET -JRF,SI)

Delhi conspiracy case 1912   Delhi conspiracy case 1912 की कहानी

आज की कहानी ऐसे एक बम ब्लास्ट की है,जो हुआ तो चांदनी चौक में था ,पर उसने अपनी आवाज के द्वारा Indian  Independent Strugle  को  International लेवल पर पहुचा दिया  । Rstablished कर दिया था।

पांच लोगो का इस बम ब्लास्ट में महत्वपूर्ण भूमिका था,   

1. मास्टर अमीर चंद। (Master Amir Chand, born in 1869)

2.अवध बिहारी (awadh bihari)

3. बालमुकुंद (balmukund)

4. बसंत कुमार विस्वास. (Basanta Kumar Biswas)

5. रास बिहारी बोस (Rash Behari Bose)

आप क्या जानते है इनके बारे में??


आज आप इनकी कहानी सुनेंगे।।  Delhi Conspiracy case 1912 की कहानी... इसी के ऊपर हमारा गहन अध्ययन होगा, Delhi Conspiracy case 1912   दिल्ली षड्यंत्र मामला 1912) की कहानी।

इस कहानी को जानने से पहले यह जान लेते है कि उस समय अंग्रेजो का भारत मे क्या हाल  था ? क्या चल रहा था।

1905 में बंगाल का विभाजन हुआ था, East Bengal और West Bengal को धार्मिक रूप से अलग कर दिया गया, Demography changes किया गया,. लोगो के बीच धार्मिक सीमा खिंच दी गई, मतभेद   से ऊपर उठकर हिन्दू - मुश्लिम में मनभेद उतपन्न हो चुकी थी, काफी सारे  bombing हुई, लोगो मे रोष,भर चुकी थी,

Bengal में एक Revolutionary Sprite Create हो गई  छोटे छोटे group  बन गए Revolutionary's  के। और ये Revolutionary जगह जगज Bombing करने लगे, literature print करके Circulate करते थे /

और दूसरी तरफ 1909 में Morley-Minto  Reform के नाम के ऊपर एक Indian काउंसिल Act आया जिसने मुश्लिम के लिए Separate Electorate  बना दिया गया ,इसने भी भारत की History और Politics को जबरजस्त तरीके से  Effect  किया।

Agitation हुई।  मुश्लिम लीग के अंदर 1910 में एक मीटिंग हुई  और चेतावनी दी गई जो,इसके खिलाफ Act करेगा उसे मुश्लिम लीग बर्दाश्त नही करेगी।   अंग्रेज उंनको लग रहा था, बंगाल में मैनेज करना उंनको अब जयदा मुश्किल हो रहा ।

Historical, geographical, political ,रूप से दिल्ली एक अच्छा स्थान है, summer capital shimla से नजदीक था, जिसे capital बनाया जा सकता है। दिसम्बर 1911 में जब किंग का दरबार होता है दिल्ली में तो किंग घोषणा करते है कि कलकता से राजधानी को दिल्ली शिफ्ट किया जाएगा/


और 1 अकटबुर 1912 को दिल्ली Territory बनाया जाता है, जिसमे Shahjahanabad जो हमारा पुराना दिल्ली है, उसके आस पास के 100 गाँवो को उन्होंने ले लिया/ खाली करवाया और एक नई दिल्ली बनाया गया और उसका चीफ कमिश्नर बनते है Mr william Hally। और वो Deside करते है 23 December 1912 को वायसराय भारत मे दिल्ली में प्रवेश करेंगे, जिसको State Entry का नाम दिया गया,  उधर बंगाल के विभाजन के दौरान जो प्रभावित थे ,पीड़ता थे  जो Revolutionary थे उनमें रास बिहारी बोस के नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता है।

बंगाल के revolutionary को आगे बढाने में उन्होंने बहुत काम किया था, हरदयाल जो पंजाब विश्वविद्यालय के सबसे Brilliant तेज विद्यार्थी थे, St John's College Oxford  में state scolarship पर भेजा गया था,  वो भी क्रांतिकारियों (Revolutionary) के साथ मिलकर जबरजस्त तरीके से चलना सुरु कर देते है ,
लाला हरदयाल लाहौर में अपने काफी सारे ग्रुप ( समूह) बना लेते है उनमें बहुत सारे लोग होते है जो वही सब सोच रहे होते है जो, की किसी तरीके से अंग्रेजो को भारत से खदेड़ जाय।

1908 में हरदयाल वापस से इंग्लैंड जाते है और अपने ग्रुप के जितने लोग थे उंनको ,मास्टर अमीर चंद को सौप (Hands over) देते है।
और मास्टर अमीर चंद St Stephen's College जो दिल्ली में था उसके मास्टर थे।।  एक सीक्रेट सोसाइटी बनाई जाती है  अवध बिहारी, पंजाब और यूनाइटेड  प्रोविंसेस को देखने का जिम्मा लेते है।
बाल मुकुंद और दीनानाथ, पंजाब को  लाहौर में रहकर  देखने का फैसला लेते है।

और मास्टर अमीर चंद दिल्ली में रहते है। ये सीक्रेट सोसाइटी में साथ कॉर्डिनेट करते है, बंगाल के साथ रास बिहारी बोस के Through, रास बिहारी बोस  अपने साथ एक privet नोकर के तौर के ऊपर ऊपर बसंत कुमार विस्वास को साथ लेकर आते है।

फिर फैसला होता है cult of bombibg will be introduse in( दिल्ली में सुरु किया जाएगा बमबारी का रास्ता)  और दिन चुना जाता है 23 december 1912 और Victim( शिकार) चुना जाता है वायसराय ऑफ लार्ड हार्डिंग (lord hardinge),      होता यूं है      1911में जब किंग का दरबार हुआ था तो किंग घोड़े पर निकले थे,  और भारत की जनता को आदत है ,अपने राजा को हाथी पर निकलते देखने की, तो किंग को किसी ने पहचान ही नही था, उस समय किंग बहुत उदास हुए थे उन्हें मायूसी हुई थी, कुर्सियां खाली रही जनता आई ही नही ।

इश्लिये इस बार फैसला किया गया, किंग घोड़े पर नही इस बार हाथी पर निकलेंगे, और एक बहुत बड़ा हाथी जिसका नाम मोती था उसे चुना जाता है , हाथी के ऊपर एक बहुत बड़ा चांदी का ओहदा था,  लार्ड हार्डिंग और लेडी हार्डिंग उस पर  बैठते है, और काफिला आगे बढ़ता है।

23 दिसम्बर 1912 को यह काफिला सुरु होता है,  पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन से चांदनी  चौक से होते हुए लाल किला जांना था जहाँ दरबार होना था।

करीब 11:45 के करीब जब यह काफिला पराठे( parathe wali)  वाली गली के बिल्कुल सामने पहुचता है  तो वहां  कटरा धुलिया (katra dhulia) करके एक इमारतें है  वहां से कोई आदमी इनके ऊपर बम फेंकता है और एक जोर का धमाका होता है , बम ब्लास्ट बहुत बड़े स्तर पर था,   हार्डिंग कहते ऐसा लगा कोई पीछे बहुत जोर से मारा और मेरे पीठ पर कोई एक उबलता हुआ पानी का जग फेक दिया है

पीछे मुड़ कर  देखते है तो पिला धुंआ उड़ रहा था,  हाथी पर सवार किंग के ऊपर छत्र लिए  महावीर वही मारा जाता है इस बम ब्लास्ट में

दूसरे आदमी के ड्रेस के चीथड़े चिथड़े उड़ गए। लेकिन अंग्रेजो को देखिए उनकी decipline कोई भी भगदड़ नही कोई भी चीखा चिल्लाया नही कोई सोर नही हुआ,  सब एक दम सांत से खड़े थे, कुछ देर बाद  जब हार्डिंग को होस आया तो , उनके अधीनस्थ अधिकारी ने पूछा किंग बोलिये क्या आदेश है, क्या करना है,

दिल्ली की जनता इसे पहले ,लुटेरे, तैमूर लंग को देख चुकी थी,नादिर शाह को देख चुकी थी, अहमद शाह अब्दाली आदि को देख चुकी थी 1857 में william Stephen Raikes Hodson को देख चुकी थी,

थोड़ी छोटी मोटी बातों पर 100- 200 को मारना काटना ये आम बात थी, दिल्ली की जनता जानती थी,        सब सहम जाते है लेकिन कोई कुछ नही करता, लार्ड हार्डिंग बोलते है आगे चलो काफिला आगे बढ़ता, तभी लार्ड हार्डिंग बेहोश हो जाते है,

हाथी इस बम ब्लास्ट से सहम जाता है वो इतना घबरा जाता है कि बैठने का नाम ही नही लेता,  पास की दुकान से कुछ बॉक्स लाकर उस के ऊपर  रख रख के किसी तरह  lord Hardinge  और Ledi Hardinge को उतारा गया। और सड़क पर लिटाया गया, होस आया फिर से आर्डर मांगी जाती है, वो फिर कहते है जैसे चल रहा था चलने दो  वहां जाकर मेरी स्पीच पढ़ी जाएगी।

किसी तरह lord Hardinge को ले जाया जाता है, सारा का सारा दरबार वैसे के वैसे ही थे, कोई पैनिक (panic) नही कोई भगदड़ नही। कोई क़त्लेआम नही होता है, किसी को मारा पीटा नही जाता


इस चीज को देखते हुए दिल्ली की जनता के अंदर एक सकारात्मक भाव उतपन्न होता, लोग काफी खुस थे, लार्ड हार्डिंग के प्रति,  इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, इनाम घोषित किया गया, सभी जनता ने खुद सब मिलकर पैसा इकठा किया और एलान किया कि,  जो वेक्ति यह बम ब्लास्ट किया है, उसको पकड़ने पर इनाम के रूप में  ढेर सारे पैसे दिए जाएंगे।। इनाम की राशि लगभग 20 के ऊपर था, जो बहुत जयदा था 

ब्रिटिश सरकार 1 लाख रुपये का इनाम घोषित करता है


महाराज पटियाला, नवाब बहावलपुर ,महाराज ग्वालियर वो अलग इनाम घोषित करते है ,लेकिन पता कुछ नही चलता।

जो पैसा लोगो ने इक्कठा किये थे इस पैसे से दो Fund बनाये जाते है lord और  ledi के नाम से और जो ledi hardinge के नाम पर fund इकठा होता उसके नाम से लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज (Ledi Hardinge medical College) बनाई  जाती है,  जो आज भी दिल्ली में इश्थित है।

जो Lord Hardinge के नाम से fund था उसे  एक पब्लिक लाइब्रेरी बनता है जो आज हरदयाल पब्लिक लाइब्रेरी( Hardayal Muncipile public Library) के नाम से है जो अभी भी दिल्ली में है।
ये उस दिन की वारदात का एक सुखद फायदा, आज भी हमलोगों को मिल रहा है।

भारत के लिए दिल्ली की जनता के लिए यह सब बिल्कुल नया और अचरज जैसा था, 
लेकिन 15 महीने बीत जाते है, पर  सुराग नही मिलता कोई सबूत हाथ नही आता है।


उधर brklin में बैठे लाला हरदयाल एक pemflet  निकालते है,जिसमे इस बम को स्वीट बम का नाम देते है

एक साल बाद एनिवर्सरी(anniversary) के ऊपर एक और पैम्फलेट निकालते है जिसका नाम था शाबास 

और यह बहुत ही प्रोवोकेटेड पैम्फलेट थ, price per copy इस पर लिखा था heade of english man

अप्रैल 1913 में हिंदुस्तान में बैठे यहां क्रान्तिकारो एक पेमफेल्ट (provocated) निकालते है उसका नाम रखते है लिबर्टी Liberty

और 17 मई 1913 को फैसला किया जाता है कि लाहौर में लॉरेंस गार्डन ( Loren's gurden) में बम ब्लास्ट किया जाएगा जब यूरोपीय डांस कर रहे हो। इसका जिमा बसंत कुमार विस्वास के ऊपर था।

लेकिन बसंत कुमार विस्वास अंतिम मौके पर घबरा जाते है और बम जमीन पर जी छोड़कर  आजाते है, राम पराग नाम का एक वेक्ति पियून /क्लर्क मार जाता है बाकी किसी को कुछ नही होता।

दिसम्बर 1913 को कलकता में कालिपदो घोष नाम के Compositer जो लोकनाथ प्रेस में काम करते थे उंनको पकड़ा जाता है । उनके पास से लिबर्टी के कुछ पेमफेल्ट , Pemflet  निकलते है लोकनाथ में काम कर रहे, कालिपदो घोष शुसांका के मित्र थे जो किसी और बम ब्लास्ट में बम मेकर था, उसके तुरंत बाद एक और पैम्फलेट मिलता है दिल्ली में उसका पेपर उसकी writting, desigen, भाषा, size ,प्रिंटिंग के तरीके यह  कलकता के लोकनाथ प्रेस की ओर इशारा कर रहे थे,  एक चैन ( chain) बनता जाता है, bngal  revolutionary, Panjab के Delhi और सयुक्त प्रान्त जो क्रांतिकारी है उनके बीच का

Petry साहब जो इस घटना के इन्वेस्टिगेशन को हेड कर रहे थे , फरवरी 1914 को raid करते है मास्टर अमीर चंद के घर को जो ड्रीवाकलामम है, उनके घर मे बहुत सारे कागजात मिलते है, pemflet मिलता है, चिठिया मिलती है बम बनाने वाली तार सामग्री मिलता है,   इन सब से एक दूसरे से तार जुड़ने लगते है, इस जांच में बहुत से ग्रिफ्तार किये जाते है।

रास बिहारी बोस को जैसे ही पता चलता इन सबकी गिरफ्तारी के, वो किसी तरह बच के जापान चले जाते है।

जो गिरफ्तार लोग थे उनमें से दो लोग दीनानाथ और सुल्तान चंद यह फैसला करते है कि हम  सरकारी गवाह बन जाएंगे, बाकी क्रांतिकारियों के खिलाफ।

मुकदमा होता है, और उसमे यह पता चलता है, की बसंत कुमार विस्वास एक औरत के कपड़े पहनकर रास बिहारी बोस के साथ उनके पत्नी बनके 23 दिसबंर को कटरा धुलिया तक पहुच कर उन्होंने वो बम लार्ड हार्डिंग पर फेका था।

यह मुकदमा इंग्लैंड इश्थित privi caouncial  तक चलता है और फाइनल होने के बाद मास्टर अमीर चंद को,  अवध बिहारी को बसंत कुमार विस्वास को और बालमुकुंद को मौत की सजा सुनाई  जाती है।

और जो दो सरकारों गवाह बन जाते है उन्हें छोड़ दिया जाता है, अन्य कुछ छूट जाते है, और कुछ को कालापानी की सजा होती है

जब मरने से पहले अवध बिहारी से पूछा की तुम्हारा कोई आखरी इक्षा/ ख्वाहिश है,  तो उन्होंने कहा।  "End of British Rull "

मास्टर अमीर चंद से पूछा गया तुम्हारा कोई आखरी इक्षा/ ख्वाइस उन्होंने  " अगर सारे हिंदुस्तानी एक साथ मिलकर थूक दे तो पूरा के पूरा ब्रिटिश empire उसमे डूब जाएगा"    यह कह कर ये चारों लोग फाँसी के फंदे पर झूल गए।

इनमें से तीन को मौलाना अबुल कलाम आजद मैडिकल कॉलेज है दिल्ली में वहां पहले दिल्ली डिस्ट्रिक जेल होता था, अभी भी है , इन तीन को यही पर फांसी दी गई थी

और 10 मई 1915 को बसंत कुमार विस्वास को अंबाला में फांसी दी गई थी,   इनलोगे के  बहादुरी और आत्मबल, जिगर देखने लायक इश्लिये भी था , जब दिसम्बर की Bombing के तीन महीने बाद वायसराय देहरादून में अपनी लॉज के तरफ जा रहे थे, तो उन्होंने देखा ढेर सारे हिंदुस्तानि  का ग्रुप बहुत उत्साह -उल्लास से बहुत जोर सोर से  उन्हें सलाम कर रहा है उंनको,  वायसराय ने पूछा कौन है ये लोग,  उन्हें बताया गया कि ये वही है  जिन्होंने आप पर  जो bombing का अटैक हुआ था उसके कंडेम( करने के लिए बहुत बड़ी जन सभा की थी।


और बाद में पता चलता है वही आदमी जो इन हिंदुस्तानियों का लीडर था उसी ने बॉम्बिंग करवाई थी, रास बिहारी बोस



Delhi conspiracy case 1912  दिल्ली षड्यंत्र , Lord hardibg के ऊपर bomb फेका गया, Basant Kumar Biswas द्वारा, 4 लोग को 1915 में फांसी दे दी गई UPSC,PCS









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