पुर्तगालियो का भारत मे आगमन /
Cape of good hope होते हुए , पुर्तगाली यात्री वास्कोडिगामा 17 मई 1498 में दो जहाज लेकर कालीकट (कोझिकोड) में उतरा जो केरल राज्य में एक नगर है तथा एक बंदरगाह है
वास्को द गामा जिस जहाज से भारत आया था उसका चालक गुजराती थे, इन्होंने ने अफ्रीकी तट से कालीकट ( कोझिकोड) तक कैसे पहुचते है, इसका रास्ता बताया था, यह एक नए युग की शरुआत थी, यही वह दौर था जब भारतीय समुद्रों पर यूरोपियन का नियंत्रण हो गया।
इससे सबसे ज्यादा भारत के व्यापार और व्यापारियों को धक्का लगा, स्वतंत्र होकर भारतीय कारोबारी व्यापारी अपनी व्यापर करते थे, जो पुर्तगालियो के शाशन के बाद उन्हें तरह तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, लेकिन यह तो बस सुरुआत थी।
अंततः यूरोपीय देश भारत तथा इसके पड़ोसियों को अपना उपनिवेश बनाने में सफल रहे।
भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति पर पुर्तगालियो के प्रभाव का आकलन करने से पहले हम उन कारणों के बारे में जानने की कोशस करेंगे, जो पुर्तगालियो को भारत खिंच लाया, भारत मे ऐसा क्या था, जो पुर्तगाली को यहां ले आया।
मोटे तौर पर कहे तो, पुर्तगाली ऐसे समय भारत आये ,जब यूरोप में ,जंगलों की कटाई , सुधरे हुए हल के प्रचलन और एक अधिक वैज्ञानिक फसल- चक्र के कारण, मवेशियों की संख्या और मांस की आपूर्ति बढ़ रही थी और यूरोपीय अर्थव्यवस्था तेजी से उठ रहे थे तेजी से सुधर रही थी, रोमन काल आए ही वस्तुओं की भारी मांग चली आरही थी इनमे चीन का रेशम मार्ग तथा भारत और दक्षिण- पूर्व एशिया के मशालों और जड़ी बूटियां शामिल थे आर्थिक पुनरुत्थान के साथ साथ इन सब चीजो की मांग बढ़ी,
इनम सबसे ज्यादा काली मिर्च का मांग बढ़ी और अन्य मशालों की जिससे इस्तेमाल से मांस को स्वादिष्ट बनाने में युपयोग होती थी। भारत व दक्षिण पूर्व एशिया से काली मिर्च स्थल- मार्ग तथा अंशतः: समुद्र मार्ग से मिस्र और काला सागर के बंदरगाहों तक लाई जाती थी।
चुकी 15वी सदी के सुरुअति भाग में उस्मानी तुर्को की सत्ता के उदय के बाद ये सभी क्षेत्र तुर्को के नियंत्रण में आगये, उन्होंने 1453 में कुस्तुन्तुनिया पर आए बाद में सीरिया और मिस्र पर भी अधिकार कर kiya, तुर्क व्यापर के विरोधी नही थे पर काली मिर्च पर उनका लगभग एकाधिकार था, लाजमी तौर पर यूरोपियन के हित के खिलाफ पड़ता था,
वेनिस और जेनेवा जो पूर्वी वस्तुओं के व्यापार में सबसे आगे थे, लेकिन इतने छोटे थे कि तुर्को के आगे ठहर नही सकते थे, इसमें वेनिस ने तुर्को से समझौता कर लिया। तुर्को के खिलाफ स्पेन और पुर्तगाल ने आवाज बुलंद की, उनकी सहायता उतरी यूरोपीय ने पैसे धन देकर की, तथा जेनेवा वालो ने जो वेनिस प्रतियोगी थे। जहाज और तकनीक ज्ञान देकर, भेजा, भारत का खोज अकेले पुर्तगालियो ने नही की बल्कि इन सभी लोगो ने शुरू की,
इस तरह हम देखते है ,समुद्री मार्गो के खोज का एक दौर सुरु हुआ इसमें से कुछ महत्वपूर्ण वेक्ति जेनेवा के रहने वाले। क्रिस्टोफर कोलंबस के द्वारा अमरीका के खोज भी शामिल है पुर्तगाली शासक दोम हेनरी, जिसे आमतौर पर नाविक हेनरी कहा जाता है, के काम को इसी संदर्भ में देखा जाना चाहिए। 1418 के बाद दोम हेनरी, अफ्रीका के पक्षिम तट के खोज के लिए हर साल दो या तीन जहाज भेजा करता था,
भारत के समुद्रमार्ग की तलाश के लिए भी उसका उद्देश्य दो उद्श्य थे,
(1) पहला - समृद्ध पूर्वी व्यापार से तुर्को को और अपने यूरोपीय प्रतियोगी को बाहर करना है, खास कर वेनिस वालो को।
दूसरा - इनलोगो का उद्देश्य अफ्रीका और एशिया के लोगो को ईसाइयत के दायरे में लाकर या कहे धर्मांतरण करके , तुर्को और अरबो की बढ़ती ताकत का सामना करना था,यह प्रयास जारी रहा। 1453 में पोप ने इसे एक बुल ( धर्मादेश) जारी करके अपना समर्थन दे दिया, की तुम cape of good hope( दक्षिण अफ्रीका point) से भारत तक खोजी तमाम भूमियों के जनता को ईसाइयत के दायरे में लाओगे, उन लोगो को ईसाई बनाने और बनाने के लिए काम करोगे।।
1488 में Bartholomew Diaz ने cape of good hope का चक्कर लगाकर एक नए युग का प्रारम्भ कर चुका था, यूरोप से भारत का शिधा व्यापार सबन्ध का आधार डाल दिया।। ऐसी अनेक खोज हुए जो इतिहास में अपनी क्षाप छोड़ी ऐसी महत्वपूर्ण भूमि तथा मार्ग की खोज में उलेखनीय अविष्कार के कारण हुआ, जैसे ,कंपास, एस्ट्रोलैब ( नक्षत्र यंत्र, उच्चता मापने के यंत्र) इसके प्रयोग से आकाशीय पिंडो की ऊँचाई जानने के लिए किया जाता था, लेकिन इनमें से कोई भी यूरोपीय अविष्कार न था, कंपास का भी अविष्कार चीन में कई साल पहले हो चुका था, लेकिन इसका जयदा उपयोग नही किया गया था, एस्ट्रोलैब का प्रयोग भारतीय लोग हजरो साल से कर रहे थे, बाद में अरब करने लगे यह एक यूनानी अविष्कार था।
इन विकाशकर्मो कारण, बारूद, छपाई, दूरबीन,अन्वेषण ( खोज छानबीन, तहकीकात, विवेचन) तथा अरब चीनी अविष्कारों को भी बड़े अस्तर पर प्रयोग होने लगे, तथा इन्ही विकाशकर्मो के कारण धातुओं से अच्छी किस्म की बंदूकें बनने लगी।
अपने जहाज पर गुजराती चालक के साथ वास्कोडिगामा 1498 में भारत मे कालीकट ( कोझिकोड) पहुचा, पहले से अरबों की नियंत्रण वाली यह क्षेत्र पर पुर्तगाली यात्री का पहुचना अरबो के लिए एक असुभ संकेत थी, इश्लिये अरबो और अन्य शक्तिशाली व्यापारी सौदागरों ने वास्कोडिगामा का विरोध किया
पर उस क्षेत्र का शासक जामेरिन जो एक हिन्दू राजा था, पुर्तगालियो का मैत्रीपूर्ण स्वागत किया, (जामेरिन , एक वंशानुगत उपाधि थी,) तथा उसे काली मिर्च, जड़ी - बूटियां आदि अपने साथ ले जाने की अनुमति दे दी,
पुर्तगाल में वास्को द गामा की लाई वस्तुओं की कीमत पूरे अभियान की लागत की 60 गुनी आंकी गई अर्थात जितने पैसे ,संसाधन लगाकर वो भारत आया था, जो भारत से वस्तुएं पुर्तगाल ले गया, उसका 60 गृणा अधिक थी
लेकिन फिर भी भारत यूरोप के बीच शिधा व्यापार धीमे ही बढ़ा, इसका एक कारण ,पुर्तगाल के एकाधिकर प्रारंभ से ही पुर्तगाल सरकार ने पूर्व के व्यापार से अन्य निजी पुर्तगाली ,यूरोप तथा एशियाई व्यापारी को भी दूर रखा, धीमे रहने का यह मुख्य एक कारण था,
पुर्तगालियो के बढ़ते शक्ति से चौकन्ना होकर, मिस्र के सुल्तान ने एक बेड़ा तैयार किया और उसे भारत की ओर भेजा, गुजरात के शाशक ने सहायता की, इन दोनों शासक मिलकर, पुर्तगालियो से संघर्ष किया जिसमें पुर्तगाली सूबेदार फ्रांसिस्को द अलमिडा ( Francisco de Almeida) का बेटा मारा गया। इसके बाद 1509 में पुर्तगालियो ने इस दोनो शाशको के सयुक्त बेड़े को मात दे दी,
इसके बाद पुर्तगाली नौसेना हिन्द महासागर में सबसे बड़ी शक्ति बन गई, पुर्तगाली नौसेना के प्रभाव फारस की खाड़ी ( persian Gulf), और लाल सागर Red See) तक फैला लिया,
कुछ ही समय बाद 1509 में पुर्तगाल से अल्बुकर्क भारत में गवर्नर बनकर आया, ,भारत। में पुर्तगाली शक्ति का वास्तविक संस्थापक अल्फांसो डी अल्बुकर्क ( Alfonso di albukark) को माना जाता है, इसने एशिया और अफ्रीका के बहुत से भूभाग पर किले बनाया, पूर्व में हो रहे व्यापर पर हावी होने की नित्ति की पैरवी की, ( अपने विचारों के समर्थन में वह लिखता है अकेले नौसेना द्वारा स्थापित कोई राज्य
ठहर नही सकता) उसका तर्क था,की किलो का होना,बहुत जरूरी है, तभी आपके साथ मित्रतापूर्ण व्यापर हो सकती ,सबन्ध स्थापित हो सकती।
1510 में बीजापुर से गोवा को छीनकर अल्बुकर्क ने अपनी नई नित्ति का आरंभ किया, गोवा सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण था, गोवा से मालाबार के व्यापार को नियंत्रित कर सकते है, ऐसे विभिन्न कारणों से गोवा पर कब्जा पुर्तगालियो के लिए फायदेमंद था,
गोवा को अपना आधार बनाकर, पुर्तगालियो ने कोलंबो , आचीन ( सुमात्रा) और मलक्का बंदरगाह पर किले बनाए तथा अपनी इश्थिति को और मजबूत किया।
पुर्तगाली आरंभ से ही,आंतरिक एवं बाह्य चुनोतियों का सामना करना पड़ा, बाहरी चुनौति तो तुर्क की थी, सीरिया,अरब मिस्र को जीतने के बाद तुर्को का अगला लक्ष्य यूरोप था 1529 में Central. Europe की capital और उसके सुरक्षा के द्वार (get) वियना के लिए खतरा बन चुके थे।
अनुमान लगया जा रहा था,हिंदी महासागर के पक्ष्मी भाग पर वर्चस्व के लिए, तुर्को और पुर्तगालियो के बीच टकराव होगा।। 1541 में उस्मानी वजीर ए आजम, तुर्क सुल्तान को पत्र लिखते कहा, पहले जमीन पर शाशन करने वाले बहुत थे,पर समुद्र पर शासन करने वाले कम थे, इस मामले में काफिर( पुर्तगाली) हमसे आगे निकल गए है। उंनको पीछे छोड़ना होगा।
गुजरात के सुल्तान ने उस्मानी शासक से मदद मांगी,पुर्तगालियो के विरुद्ध पुर्तगालियो ने अरब तटों पर अशांति मचा रखी थी।
उधर तुर्को ने, लाल सागर से पुर्तगालियो को बाहर फेक दिया,
1529 में गुजरात मे सुल्तान बहादुरशाह की मदद के लिए सुलेमान रईस की कमान में एक बेड़ा भेजा, बहादुर साह ने खूब स्वागत किया दो तुर्को को सूरत और दीव का सूबेदार बना दिया। इन दो तुर्को में एक रूमी खान आगे चलकर उस्ताद तोपची के रूप में नाम कमाया
1531 में पुर्तगालियो ने दमन और दीव पर हमला करने की कोशिश की,रूमी खान ने नाकाम कर दिया। चूंकि गुजरात और तुर्को की गठजोड़ आगे कुछ करती, गुजरात के उपर एक मुगल के रुप मे एक नया खतरा आगया, हुमायूं ने गुजरात पर हमला किया और बेसिन द्वीप पुर्तगालियो को दे दिया सायद इन्होंने सहायता की होगी।। पुर्तगाली गुजरात मे पैर जमाने मे सफल रहे ,और उन्हें दीव में एक किला बनाने की इजाजत भी मिल गई।
भारतीय समुद्रों में पुर्तगालियो के खिलाफ तुर्को ने अपनी नौसैनिक शक्ति का सबसे बड़ा प्रदर्शन 1536 में किया
इस विशाल बेड़े की कमान 82 वर्ष का सुलेमान पाशा के हाथों में था, तुर्क एडमिरल की खराब व्यवहार के कारणवश गुजरात के सुल्तान अपना समर्थन वापस ले लिया, दो माह की घेरामन्दि के बाद तुर्को को खबर मिली दीव को घेरने के लिए विशाल पुर्तगाली बेड़ा आरहा है ।
आखरी उस्मानी अभियान 1554 में अली रईस के नेतृत्व में भेजा गया था । बाद में तुर्को के विचार बदल गए
1566 में तुर्क और पुर्तगाली अरब सागर में टकराकर अंततः मशालों और पूर्वी व्यापार में हिसेदारी का समझौता किया।।
● भारतीय व्यापार ,समाज और राजनीति पर पुर्तगाली प्रभाव।
सुरुअति समय से ही हिन्द महासागर पर नियंत्रण एवं निगरानी पुर्तगालियो के बस के बात नही थी, हा कोशिश जरूर हो रही थी, कुछ वस्तुओं पर अपना एकाधिकर बना लिया सके और कर वसूल कर सके ,काली मिर्च ,हथियार, गोला बारूद, जंगी घोड़ो पर शाही एकाधिकार घोषित कर दिया, अगर इंसबका व्यापर कोई करता है तो उसे परमिट लेना आवश्यक होता था,
एक तरह से भाई गिरी चल रही थी, शक के आधार पर कोई भी जहाज को रोककर तलासी ली जाती थी, जहाज को डूबा देना दंड का एक हिसा था।
समुद्र में लाभ से कही नुकसान स्थल पर होने लगी, कई जहाजी अब तोप लेकर चलने लगे थे,पुर्तगाली एवं समुद्री लुटेरे से बचा जाए
एशिया के व्यापर को नही पुर्तगाली सही नियंत्रण कर पाए और नही व्यापार तंत्र को बदल पाय,, गुजराती एवं अरबो का ही वर्चस्व बना रहा।
जैसे भारतीय कपड़ो और साथ मे चावल आए शक्कर के व्यापार पर जिनके बदले में दक्षिण पूर्व से मसाले और पक्षिम एशिया से सोना और घोड़े तथा चीन से रेशम और चीनी मिट्टी और बर्तन लाते थे।
आरंभ के कुछ दशकों को छोड़ दे तो काली मिर्च आदि पर भी पुर्तगालियो का एकाधिकार नही कर सके। पहले की तरह ही काली मिर्च का व्यापार चलता रहा।
पुर्तगालियो ने भारत का जापान के साथ व्यापार अवश्य आरम्भ किया जहाँ से तांबा और चांदी प्राप्त होते थे। फिलीपीन से भी भारत का व्यापार शुरू करवाया
पुनर्जागरण काल के बाद यूरोप विकसित विज्ञान प्रोधोगिकी को भारत मे काने के लिए पुर्तगाली एक माध्यम के रूप में काम कर सकते थे पर ऐसा नही हुआ, इसका कारण यह था कि स्वयं पुर्तगालियो पर पुनर्जागरण का उतना प्रभाव नही पड़ा जितनी इटली और उत्तरी यूरोप पर पड़ा था।
कैथलिक धार्मिक प्रक्रियाओं को आगे बढ़ाने के बाद पुर्तगालियो ने तो पुनर्जागरण की ओर से मुह मोड़ लिया, लेकिन उन्होंने मध्य अमरीका से अनेक खेतिहर पैदावार, को भारत मे तक लाया,जैसे आलू, तम्बाकू, मकई, मटर आदि, ये फसलें धीरे धीरे ही फैली, पुर्तगाली प्रभावों के कारण भारत मे यूरोपीय तर्ज के जहाज निर्माण ,नए सुधार के साथ तोपो, चश्मे जैसी अवश्य चीजो का प्रयोग सुरु हुआ,
1565 में बननिहट्टी में विजयनगर की पराजय ने ,दकनी राज्यो को इसके लिए हौसला दिया कि वे दकन के समुद्री तट से पुर्तगालियो को भगाने के लिए मिलकर प्रयास करे।
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1570 में बीजापुर के सुल्तान,अली आदिलशाह ने अहमदनगर के सुल्तान से एक समझौता किया और कालीकट के जामेरिन को भी साथ गठजोड़ कर लिया, इनलोगो ने अपने अपने इलाको पर पुर्तगालियो ठिकानों पर हमले का योजना बनाई, गोवा पर हमले का नेतृत्व स्वयं आदिलशाह ने किया जबकि निजामशाह ने चौल पर कब्जा किया। ,लेकिन इस बार फिर पुर्तगाली कुछ अधिक शक्तिशाली निकले,
इस प्रकार हम देखते है पुर्तगालि भारतीय समुद्र और दकनी तट के मालिक बने रहे।।
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