Social reform , भारतीय पुनर्जागरण The indian Renaissance
सामाजिक सुधार आंदोलन मुख्यतः 19 वी शताब्दी में लाये गए इस शताब्दी के सुधार आंदोलन ने न केवल धार्मिक सुधार के क्षेत्र ही नही बल्कि समाज सुधार को भी अपना लक्ष्य बनाया।
19वी सदी के सुरुआती दशकों में जब भारत मे कुछ प्रबुद्ध वर्ग( enlightened Sections) के मन मे तत्कालीन भारतीय समाज मे फैले ,दकियानूसी सोच, आज्ञान एवं,जड़ता के प्रति एक नई आधुनिक सोच पैदा सुरु हो गई थी, सभी लोगो ने समाज मे फैले आज्ञान ,जड़ता को दूर करने के लिए जो योजना प्रस्तुत की और जिस संकल्प - शक्ति का परिचय दिया, इन सब तत्वों को सामूहिक रूप से भारतीय पुनर्जागरण या नवजागरण की संज्ञा दी जाती है,
the Indian Renaissance, |
The indian Renaissance हिन्दू धर्म और भारतीय समाज मे सुधार का दरवाजा खोल दिया जिसका प्रतिफ़ल आने वाले नए नए समाजिक सुधारो के रूप में हुआ। जिसमे
●जाती प्रथा ( caste system)
●अस्पृश्यता Untouchability
●बाल विवाह. child marriage
●बहु विवाह Polygamy
●सती प्रथा। Sati practice
●विधवा विवाह The Hindu Widows' Remarriage
भारतीय पुनर्जागरण में जिन समाजिक - धार्मिक - आंदोलन ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,उनमें ब्रहा समाज , आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन और थ्योसोफिकल सोसाइटी ,के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, इन आंदोलनों ने हिन्दू धर्म और समाज सवेक्षिक सुधार पर बल दिया और सामाजिक कुरीतियों को दूर करने का अभियान चलाया ताकि। उपनिवेशवादी शासकों को यहां की सामाज- व्यवस्था में हस्तक्षेप न करना पड़े।
अस्पृश्यता के अलावा ऐसी कुछ कुरीतियों के नाम थे, धर्म के नाम पर शिशुओं की विशेषता: कन्याओं की हत्या; बाल विवाह ,स्त्री शिक्षा का विरोध, विधवा- विवाह का निषेध, सती - प्रथा ; समुद्र यात्रा का निषेध; जन्म ,विवाह पर भारी फिजूलखर्ची इत्यादि।
बंगाल के प्रभावशाली विचारक और समाज सुधारक राजा राम मोहन राय (1772-1833) को पुनर्जागरण का प्रमुख उन्नायक माना जाता है।
राजा राम मोहन राय ने रूढ़िवादी विचारों से ग्रसित लोगो को जवाब देने के लिए, तर्क का सहारा लिया, सत्य का पता लगाने के लिए करतबुद्धि (Reason) का प्रयोग आवश्यक है, राय का विचार था कि सामाजिक सुधार और राजनीतिक आधुनिकीकरण (Political Modernization) के लिए धार्मिक सुधार सर्वथा आवश्यक है।
राय ने अपने आदर्शों को कार्य- रूप देने के लिए 1828 के कलकता में ब्रह्मा समाज की स्थापना की थी। इसके बाद ब्रह्मा समाज के सक्रिय कार्यकर्ता केशवचन्द्र सेन (1838-84) ने 1864 में बम्बई में ब्रह्मा समाज की एक नई शाखा खोली जिसे प्राथना समाज की संज्ञा दी गई,उसी वर्ष उनकी प्रेरणा मद्रास में वेद समाज की स्थापना हुई जिसके सिद्धांत ब्रह्ना समाज से मिलते जुलते थे।
सती प्रथा (Sati practice) का पहला प्रमाण प्राचीन काल से माना जाता है इसका पहला अभिलेखीय साक्ष्य 510 ई एरण के अभिलेख में मिलता है,
हम सभी जानते है छठी- सातवी सदी के उत्तर के महान राजा हर्षवर्धन की माँ भी अपने पति की वियोग में सती हो गई थी।
● 15वी सदी में कश्मीर के राजा सिकन्दर ने इस प्रथा को बन्द कर दिया था
● अकबर भी औऱ पेशवाओं ने भी सुरुअति ब्रिटिश सरकारों ने भी बन्द करने की कोशिश की परंतु उच्य रूढ़िवादी वर्ग द्वारा विरोध के वजह से पूर्णतः बन्द नही हो पाया।
● पुर्तगाली गवर्नर अल्बुकर्क ने भी इस प्रथा को बन्द कर दिया था।
● राजा राम मोहन राय की अथक प्रयास को विलियम बैंटिक ने अंतिम रूप दिया, मोहन राय अपने स्वाद पत्र कौमुदी के माध्यम से इस प्रथा का आये दिन विरोध करते थे, कुछ रूढ़िवादी ,राधाकांत देव तथा महाराज बालकृष्ण बहादुर ने राम मोहन रात की नीतियों का विरोध किया।
आखिर कार 1829 में सती प्रथा अवैध / अपराध घोषित कर दिया।
चुकी उस समय इस प्रथा को प्रतिबंधित करना राम मोहन राय के लिए बड़ी सफलता थी। अब इसे लागू करना एक जटिल और कठिन कार्य था
सबसे पहले यह नियम बंगाल प्रेसिडेंसी में लागू हुआ,इसके सकारात्मक प्रभाव को देखते हुए 1830 में बम्बई और मद्रास में भी लागू कर दिया गया।
● ब्रह्मा समाज
राजा राम मोहन राय और द्वारकानाथ टैगोर दोनो मिलकर 1828 में ब्रहा समाज की स्थापना किया था
सन 1814 में राम मोहन राय ने आत्मीय सभा की स्थापना की थी जो बाद में 1828 में ब्रह्मा समाज के नाम से जाना गया।
● राजा राम मोहन राय एक समाज सुधारक के साथ साथ आधुनिक भारत के महान विचारक एवं लेखक थे।
राय द्वारा रचित पुस्तकें।
तुहफत उल- मुवाहिदीन (1804)
वेदांत गाथा (1815)
वेदांतसार (1816)
कनोपनिषद (1816)
इथोपनिषद (1817)
मुंडक उपनिषद (1819)
हिन्दू धरना की रक्षा (1820)
The precepts of the jesus ,the Guide to peace and Happiness (1820)
बंगाली व्याकरण (1826)
भारतीय दर्शन का इतिहास (1829)
● Untouchability
अस्पृश्यता Untouchability या 'छुआछूत' हिन्दू समाज के पतनशील दौर की एक कु प्रथा थी, जिसमे समाज के एक बड़े हिस्से को जाती बाह्य (outcast) मानकर स्वर्ण हिंदुओं के शरीर या सामुदायिक कुआं, सामुदायिक तालाब से पानी भरने, सामुदायिक घाट पर नहाने ,सामुदायिक भोजनालयो में भोजन करने सार्वजनिक स्थानों पर जाने की अनुमति नही थी, यहां तक कि उन्हें भगवान के मंदिर में भी प्रवेश का अधिकार नही था, इन तथाकथित अश्पृश्य जातियों के प्रति सामाजिक अन्याय की और ध्यान खींचने के लिए महात्मा ज्योतिबा फुले (1827-90) ने इन्हें ' दलित' की संज्ञा दी थी, आज यह शब्द आम प्रचलित है।
untouchability means |
आर्य समाज:-
आर्य समाज एक हिन्दू समाज सुधार आंदोलन था जिसकी स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती ने 10 अप्रैल 1875 में बंबई में कई थी/
आर्य समाज मे सुद्ध वैदिक परम्पराओ में विश्वास करते थे।
स्वामी दयानंद सरस्वती का मानना था, की वेदों में जो बातें लिखी गई है उसे ही माने, अन्य किसी भी नियम ,का आंख बन्द कर विश्वास नही करो नही पालन करो।
उनका एक आदर्श नारा वेदों की ओर लौटो
इन्ही महानतम कार्य को रेखांकित करते हुए उन्हें हिन्दू धर्म के मार्टिन लूथर कहा जाता है।
स्वामीजी सभी धर्मों के प्रति आदरणीय भावनाएं रखते थे, मुश्लिम समाज मे भी स्वामिजी आदरणीय थे।है
आर्य समाज राष्ट्रवाद को बढ़ावा देती थी यही कारण है कि 70-80% स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी कही न कही आर्य समाज से जुड़े हुए थे, बाद में यही एकता यही सकारात्मक विचार स्वदेशी आंदोलन में भी दिखाई दी इसका मुख्य सूत्रधार आर्य समाज से ही जुड़ी थी।
नमस्ते शब्द का प्रयोग इसी समय से होने लगा, आम बोल चाल में अभिवादन करने के लिए,यह शब्द विदेशियों के लिए भारत का पहचान बन गई है ,
मूर्ति पूजा, अवतारवाद ,बली ,झूठे कर्मकांड व अंधविश्वास को नही मानते थे, अस्वीकार करते थे।
दयानन्द द्वारा रचित सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ आर्य समाज का मूल ग्रन्थ है।
स्वामीजी ने वेदों की प्रामाणिकता पर बल दिया और वैदिक धर्म सहायता से हिन्दू जाती में नए प्राण फूंकने का आव्हान किया
जो लोग धर्म परिवर्तन कर चुके थे उन्हें हिन्दू धर्म में वाप स लाने के लिए स्वामी जी ने शुद्धि आंदोलन चलाया
अस्पृश्यता छुआछूत , स्त्रियों की दशा सुधारने, शिक्षा को बढ़ावा के लिए, धार्मिक अंधविश्वास और रूढ़िवादी का जमकर तार्किक रूप में विरोध किया
आर्य समाज का आदर्श वाक्य है
कृण्वन्तो विश्वमायर्म, अर्थात विश्व को आर्य बनाते चलो।
(परोपकारिणी सभा ) इसका स्थापना इस उद्देश्य से किया गया था ताकि, आर्य समाज द्वारा प्रकाशित, गर्न्थो, पुस्तको पत्रिकाओं का मुद्रण एवं प्रकाशन बिना किसी बाधा के आगे बढ़ता रहे, समाज के परोपकार के कार्य मे बढ़चढ़कर आगे आने लगी इसका मुख्यालय अजमेर ( राजस्थान) में था।
थियोसोफिकल सोसायटी
थियोसोफिकल सोसायटी (theosophical society) की स्थापना सयुक्त राज्य अमरीका में हुआ, रूस के रहने वाली maidm H P Blavatsky (एच पी ब्लावट्स्की) तथा अमेरिकी निवासी, कर्नल हेनरी स्टील आल्काट ( Henry Steel Olcott) द्वारा की गई। बाद में ये दोनों भारत आ गए तथा 1886 में मद्रास के करीब आदियार में उन्होंने सोसायटी के मुख्यालय स्थापित किया गया।
theosophical society एक अन्तरसट्रीय आध्यात्मिक संस्था थी, ये जो शब्द है,थियोसोफिकल यह ग्रीक भाषा से लिये गए है थियोस +सोफिया ,जिसका हिंदी में अर्थ ब्रह्मविद्या होता है
भारत मे इस संस्था की प्रमुख कार्यकर्ता एक आइरिस महिला श्रीमती एनी बेसेंट (1847-1993) थी जिन्होंने हिन्दू धर्म से जुड़े मूल्यों में गहरी आस्था व्यक्त की 1893 में आने वाली श्रीमती ऐनी बेसेंट के नेतृत्व में Theosophical Society सोसायटी जल्द ही भारत भर में फैल गया, Theosophical Society प्रचार करते थे, हिंदुत्व जरथुस्त्र मत( पारसी धर्म) तथा बौद्ध मत जैसे प्राचीन धर्मो। को पुनर्स्थापित तथा मजबूत किया बजाय, उन्होंने आत्मा के पुनरागमनन के सिद्धांत का भी प्रचार किया।
पश्चिमी देशों के ऐसे लोगो द्वारा चलाये जा रहा एक आंदोलन जो भारतीय धर्मो तथा दार्शनिक परंपरा का महिमा मंडल करते थे,इससे भारतीयों को अपना खोया आत्मविश्वास फिर से पाने में सहायता मिली
श्रीमती एनी बेसेंट भारतीय संस्कृति में पूरी तरह घुल मिल गई थी ,भारत के प्रति उनका प्रेम अतुलनीय थी ,भारतीय को भारत को समझने के लिए एनी बेसेंट ने 1898 में बनारस में केंद्रीय हिन्दू विद्यालय की स्थापना जो बाद में मदनमोहन मालवीय ने 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के रूप में विकसित किया
जिस प्रकार आयरलैंड में Home rull होमरूल लीग चल रही थी, एनी बेसेंट ने भारत मे भी होमरूल लीग की स्थापना की।
Liberalism /उदारवाद |
उदारवाद
Liberalism
उदारवाद वह सिद्धांत है जो 19वी शताब्दी के यूरोप में अपने पूर्ण उत्कर्ष पर पहुचा। यह विचार मनुष्य को विवेकशील प्राणी ( Rational Being) मानते हुए उसकी स्वतंत्रता ( Liberty) को बुनियादी सिद्धांत के रूप में मान्यता देता है और हर तरह की निरंकुशता (Arbitrary Authority) का खंडन करता है। जॉन लॉक को माना जाता है।
1 टिप्पणियाँ
Thanku for this important article
जवाब देंहटाएंmagadhIAS Always welcome your useful and effective suggestions