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2081 वर्ष पूर्व शकों पर विजय के उपलक्ष्य में प्रारंभ की गई विक्रम संवत ब्रह्मण्ड में अनन्य एवं सटीक है।


भारतीय संस्कृति से अधिक जुड़ाव के बाद भी विक्रम  संवत क्यों राष्ट्रिय पंचांग नहीं बना, इस प्रश्न का उत्तर इस इस लेख में हम जानेंगे।


VARAHMIHIR ,
VARAHMIHIR -image-magadhIAS


पहले बात विक्रम संवत की ये चन्द्रमा  और सौर गणनाओं पर आधारित है,

 

इसका आरंभ उज्जैन के चक्रवर्ती राजा विक्रमादित्य के राज तिलक की तिथी से होता है। 

विक्रम संवत की रचना उस काल के उंस समय के प्रसद्ध खगोल शास्त्री वाराहमिहिर ने की थी

 

वाराह मिहिर राजा विक्रमादित्य के नव रत्नों में से एक थे।


विक्रम संवत में वर्ष सूर्य पर आधारित और महीने चंद्रमा की गति पर निर्भर होते हैं। 

पृथ्वी द्वारा सूर्य का एक पूरा चक्कर लगाने पर एक वर्ष होता है

 

जो की 365 दिन से कुछ अधिक होता है। 

प्राचीन ग्रंथ सूर्य सिधान्त के अनुसार

 पृथ्वी

 सूर्य का चक्कर लगाने में

 

365 दिन, 15 घटी, 31 विपल तथा 24 प्रती विपल लगाती है।


हजारों वर्ष पूर्व हमारा विज्ञान सबसे उन्नत एवं विश्वसनीय।


आधुनिक विज्ञान कुछ वर्ष पहले ही ये गणना कर पाया

 

इससे पहले यूरोप में एक वर्ष 360 दिन का हुआ करता था। 

विक्रम संवत में महीना 30 या 31 दिन का नहीं

 बल्कि

 28, 30 और 30 दिन का होता है।

 

हर तीसरे वर्ष पर एक अतिरिक्त मास होता है 

जिसे अधिक मास या मलमास कहते हैं।

 

ताकि इसे सूर्य वर्ष से मिलाया जा सके 

इसके कारण महीनों और ऋतुओ का तालमेल सबसे सटीक रूप से बैठता है।

भारतीयों के ह्रदय में संस्कृति में आज भी विक्रम संवत ही सर्वमान्य।


यही कारण है कि सभी भारतीय पंथ औऱ सम्प्रदाय 

  

अपने पर्व त्योहार और शुभ मुहूर्त विक्रम संवत से ही निकालते हैं

 ,

इसमें चैत्रो मास के शुक्ल पक्ष की पहली तिथी 

अर्थात प्रतिपदा को नए वर्ष का आरंभ माना जाता है,

 

हलाकि इसे लेकर देश के अलग-अलग क्षेत्रों में विविधताएं देखने को मिलती हैं।


उदाहरण के लिए गुजरात में इसे कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से शुरू माना जाता है,

 

दूसरी और सरकारी शक संवत है 

इसमें भी महीनों के नाम और क्रम वही हैं जो विक्रम संवत में हैं।

चैत्र

वैशाक,

जेष्ट, 

आशाड, 

श्रावन, 

भात्रपद, 

आश्विन, 

कार्तिक, 

पौश, 

मार्गशीर्ष, 

माग और 

फालगुन


दोनों ही संवत में चंद्रमा की इस्थिति के आधार पर कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष होते हैं। 

किन्तु शक संवत में तिथियां अंग्रेजी कैलेंडर की तरह मध्यरात्री से शुरू होकर अगले दिन मध्यरात्री तक होती है, 

हर महीना निश्चित 30 दिन का होता है

 

इसका नव वर्ष 22 मार्च से आरंब होता है 

वर्ष 1955 में भारत सरकार ने कैलेंडर रिफॉर्म कमेटी बनाई थी

 

जिसकी अनुशंसा पर सूर्य आधारत शक सम्वत को आधिकारिक कैलेंडर माना गया।


लिबरल,वामपंथी, कम्युनिस्ट,सेक्युलर बनने के फेर में हम अपनी पहचान को पैरों से रौंद चुके है।


लेकिन वास्तव में ये निर्णय अंग्रेजी कैलेंडर जैसा दिखने और सेकुलर बनने के दबाव में लिया गया

 

मुसल्मानों और इसाईयों से पहले 

शकों ने भी भारत पर हमला किया था

 

हालाकि वे भारतीय संस्कृति में ही समा गए,

 

इसे एक प्रकार की ओपनिवेशिक मानसिक्ता ही कहेंगे। 

कि एक ओप प्रचलित कैलेंडर को स्वतंत्रता के बाद भारतीयों पर थोप दिया गया सम्भवतः

 उन्हें ये बात नहीं पची कि कोई हिंदू पंचांग अंग्रेजों से पुराना और अधिक  वैज्ञानिक कैसे हो सकता है।


शक संवत आज मात्र एक औपचारिक पंचांग बन कर रह गया है,

 

पहले सरकारी कार्यक्रम और उद्घाटन की पट्टियों में शक सम्वत की तिथी लिखी जाती थी 

धीरे धीरे वो भी लुप्त हो रही है,

 

अब केवल अंग्रेजी कैलेंडर की तिथी ही दिखाई देती है। 

पूरे वर्ष में बारह महीने का एक वर्ष और साथ दिन के एक सप्ताह की जो व्यवस्था है,

 

वो विक्रम संवत की ही देन है,

 

विक्रम संवत अधिक वैज्ञानिक है 

लेकिन उसे  अवेवहारिक एवं जटिल बता कर लागू नहीं किया गया

 

जबकि नेपाल में विक्रम संवत ही प्रचलित है। 


हमारा धर्म का आधार आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक है।


संस्कृत विद्वान और भारत रत्न से सम्मानित प्रोफेसर पांडुरंग वामन काने अपनी पुस्तक धर्मशास्त्र का इतिहास में लिखते हैं

 

विक्रम संवत सबसे वैज्ञानिक  है 

पश्चिमी कैलेंडर में सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण और अन्य खगोलिय परिस्थितियों का कोई संकेत नहीं मिलता

 

जबकि विक्रम संवत बता देता है कि इसी दिन ही ग्रहण होगा। 

ये ऋतुओं के साथ साथ ग्रह नक्षत्रों की पूरी इस्थिती को भी बताता है ।


विक्रम संवत की जब 2000 वर्ष पूरे हुए थे तब देश भर में इसके उपलक्ष में कार्यक्रम आयोजित किये गए थे।

ईसवी कैलेंडर के अनुसार वो 1944 का साल था, जब

 ग्वालियर

 के महराजा जीवाजी राव सिंधिया ने विक्रम उत्सव मनाने की घोषणा की थी। 

उनकी ही पहल पर विक्रम स्मृती ग्रंथ प्रकाशित किया गया

 

पंडित सूर्य नारायन व्यास ने इसका संपादन किया 

राजा विक्रमादित्य, कालिदास और उज्जैनी  नगरी पर ये सबसे प्रमाणिक पुस्तक मान जाती है।


विक्रम संवत के 2000 वर्ष पूरे होने के अवसर पर विक्रमादित्य नाम से एक फिल्म भी बनाई गई थी

 

जो  ईस्वी वर्ष 1945 में रिलीज हुई 

इसका निर्देशन विजय भट ने किया था

 

इसके गाने के बोल थे " विक्रमादित्य की जय हो"


विक्रम उत्सव में वीर सावरकर और k. m मुन्शी जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने भी सहभागिता की थी 

उनका प्रयास था कि इसे भारत के सांस्कृतिक पुनरुथ्थान के अवसर की तरह प्रयोग किया जाए। लेकिन भारत के बटवारे और फिर हिंदूओं के विस्थापन और नरसंघार से पैदा अवसाद ने इस पूरे प्रयास पर पानी फेर दिया उपर से नेहरुवादी सेक्युलरिजम ने रही सही कसर पूरी कर दी


सेक्युलर सरकारों ने विक्रम संवत को भले ही त्याग दिया लेकिन वे इसे भारतीय जन्मानस से नहीं हटा सके।

केवल पर्व त्योहार ही नहीं लोग अपने घर और अन्य प्रतिष्ठानों पर विक्रमी तिथि लिखवाना पसंद करते हैं। 

राजस्थान में अब मांग हो रही है 

कि राज्य की स्थापना देवस 30 मार्च के स्थान पर चैत्र प्रतिपदा को मनाया जाए आयोध्या में राम मंदिर की प्राण 

प्रतिष्ठा विक्रम सम्वत 2080 के पौष मास शुक्लपक्ष द्वादशी तिथि को हुई है यह सुनिश्चित करना होगा कि इसकी वर्षकांठ पंचांग के अनुसार मनाई जाए ना कि 22 जनवरी को


महाराणा प्रताप से लेकर छत्रपति शिवाजी महाराज 

जैसे महापुरुषों की जयंती और पुन्य तिथि भी हमें विक्रम संवत से ही मनानी चाहिए समय आ चुका है कि सरकार 

से मांग की जाए कि वह विक्रम संवत को भारत का आधिकारिक कैलेंडर घोषत करें साथी सरकारी कार्यक्रम में भारतीय पंचांग की तिथि अंकित करना अनिवार्य होना चाहिए। 


देश की नई पीढ़ी जागरूक हो रही है। लोग स्वयं समझ जाएंगे कि अंग्रेजी कैलेंडर हमारी मजबूरी है। लेकिन विक्रम संवत हमारी बैद्धिक विरासत है। जिस पर हम सब को गर्व है।





मैं अमन कुमार मिश्रा, अपने भारतीयता की प्रचार - प्रसार के लिए उंस हद तक प्रयत्नशील रहूंगा,जब तक पंचतत्व हमारे नजदीक न आजाये।



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