सज्जन सिंह बनाम राजस्थान सरकार 1964 (Sajjan Singh v. State of Rajasthan 1964)
यह मुकदमा 17 वे सविधानं संसोधन के खिलाफ था, न्यायालय ने कहा अनुच्छेद 368 का शीर्षक सविधानं का संसोधन है।
सज्जन सिंह मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 368 के तहत संसद को मौलीक अधिकारों सहित सविधानं के किसी भी भाग में संसोधन करने की शक्ति है।
हम सब जानते है 1964 का समय काल कॉंग्रेस की शाशन काल थी, इस समय न्यायपालिका और विधायिका के बीच एक टकराव की समय चल रही थी /कार्यपालिका न्यायपालिका की शक्ति को कम करने के लिए कोई भी अवसर जाने नही देना चाहती थी। यह टकराव इंदिरा गांधी के समय और बढ़ गई थी, इंदिरा गांधी किसी तरह सुप्रीम कोर्ट को,आपने से कम कर के रखना चाहती थी, सुप्रीम कोर्ट के शक्तियों में कमी करने के लिए, कई सारे संसोधन और कई ऐसे मामले आये।
सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य सरकार ,क्या था पूरा मामला, समझते है/
सज्जन सिंह जो राजस्थान के रहने वाले एक पुलिस अधिकरी थे, उंनको IG ने प्रमोशन करके, sub Inspector बना देते ,प्रमोशन होने की बहुत से कारण होते है जैसे कोई वेक्ति अन्य से बेहतर काम किया हो, सीनियोरिटी के आधार पर भी होता है, बड़े अधिकारियों के नजर में आप है उसमे भी चांस होती है आपकी प्रमोशन की, आदि। कुछ दिन बाद जब इस इस नियुक्ति के संदर्भ में जांच होती है तो,DIG इस नियुक्ति को अवैध करार दे देते है, और सज्जन सिंह को अपना sub inspector का पद त्यागना पड़ता है।
IG है वो DIG से सीनियर होता है
सज्जन सिंह ईश चीज को कोर्ट में चुनौती देते है, अनुच्छेद 311 को आधार बनाकर। अनुच्छेद 311 में लिखा है, जो अधिकारी जिस वेक्ति को जिस पद पर नियुक्त करता है, इस परिश्थि में अगर उस वेक्ति को पद से हटाना पड़ा या निलंबन करना पड़े तो,जो नियुक्त किया है उसके रैंक के बराबर के अधिकरी या उसके रैंक से बड़े अधिकारी उसको उस पद से हटा सकता है।
लेकिन यहां तो ऐसा नही हुआ, IG से नीचे रैंक अधिकारी DIG ने सज्जन सिंह को बर्खास्त किया था, जो ग़ैर सविधानिक था, सज्जन सिंह का कोर्ट में दलील था कि, उसको अपना पक्ष रखने का भी मौका नही दिया गया।
सज्जन सिंह इस केश को जीत जाते है और उनकी यह sub inspector की पद वापस मिल जाती है,
सुप्रीम कोर्ट का फैसला।(Supreme Court's decision)..
इस केस में 17वे सविधानं संसोधन की वैधता को चुनोती दी गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व में दिए गए,निर्णयों को दोहराते हुए कहा कि अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संसद सविधानं के किसी भी भाग जिश्मे मौलीक अधिकार भी शामिल है उसमे भी संसोधन कर सकती है।
The Supreme Court, reiterating the decisions given earlier, said that any part of Accounts 368 under the Parliament Constitution can also include fundamental rights.
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।।।।।धन्यवाद।।।।।
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