कालीबंगा कालीबंगा प्राचीन सरस्वती (घग्घर)Kalibanga Kalibanga Ancient Saraswati (Ghagghar)
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Kalibnga,magadhIAS |
की शुष्क नदी के बाएं तट पर राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में स्थित है।
कालीबंगा की खोज 1952 ई. में अमलानन्द घोष ने की। उन्होंने 1952-53 ई. में सरस्वती-दृषद्वती की घाटी के गंगानगर-बीकानेर क्षेत्र से दो दर्जन सैन्धव स्थलों को खोज निकाला।
1961 ई. में बी.बी. लाल ,व, बी. के. थापड़ के निर्देशन में कालीबंगा का व्यापक उत्खनन कार्य किया गया। खुदाई के दौरान मिली काली चूड़ियों के कारण इस स्थान को कालीबंगा कहा जाता है (पंजाबी में बंगा का अर्थ चूड़ी होता है)। इसकी बसावट समानान्तर चतुर्भुज आकार की थी।
यहां के उत्खनन से हड़प्पा कालीन सांस्कृतिक युग के पाँच स्तर मिले है। प्राक् हड़प्पा, हड़प्पा कालीन व उत्तर हड़प्पा कालीन सभ्यता के अवशेष कालीबंगा से मिले हैं। एच.डी.
सांकलिया ने अपनी पुस्तक 'प्री हिस्ट्री एण्ड प्रोटो हिस्ट्री ऑफ इण्डिया' में उल्लेखित किया है कि "बी. बी. लाल ने कालीबंगा को हड़प्पा सभ्यता की तीसरी राजधानी होने का अनुमान किया है।"
कालीबंगा रोपड़ के पश्चात् द्वितीय हड़प्पीय स्थल है जिसका स्वतंत्र भारत में उत्खनन कार्य किया गया। हरियाणा में राखीगढ़ी एवं गुजरात में धौलावीरा के बाद कालीबंगा देश का तीसरा सबसे बड़ा पुरातात्विक स्थल है।
कालीबंगा के पश्चिमी टीले (दुर्ग) को (जो आकार में पूर्वी टीले से छोटा है) को 'कालीबंगा प्रथम' तथा पूर्वी टीले (निचला नगर) को 'कालीबंगा-2' नाम दिया गया। दोनों अलग-अलग प्राचीर से घिरे हुए थे। इन दोनों टीलों के बीच में खुला भू-भाग है। इन दो टीलों के अतिरिक्त कालीबंगा में एक तीसरा टीला (पश्चिमी टीले का ही एक खण्ड) स्थित है जहां से अग्नि कुण्ड के प्रमाण मिले हैं।
कालीबंगा का पश्चिमी टीला (दुर्ग क्षे) दो पृथक् पृथक् हिस्सों में बंटा है, परन्तु दोनों हिस्से परस्पर संबद्ध हैं। एक हिस्सा जनसंख्या के विशिष्ट निवास के लिए था तथा दूसरा धार्मिक अनुष्ठान के लिए। यहां से प्राक् हड़प्पा कालीन सुरक्षा प्राचीर के अवशेष मिले हैं जो इस टीले की बस्ती को घेरे हुए थी। यह मूलतः 1.90 मीटर चौड़ी थी, जिसे बाद में दुगुना कर दिया गया।
दुर्ग क्षेत्र का ऐसा द्विभागीकरण अन्य किसी हड़प्पा स्थल से देखने को नहीं मिलता। कच्ची ईंटों (30%20%10 सेमी.) से निर्मित इस सुरक्षा प्राचीर के अन्दर-बाहर दोनों ओर से मिट्टी का लेप किया गया है।
भवनों निर्माण में भी इसी तरह की कच्ची ईंटों का प्रयोग किया गया है इसलिए कालीबंगा को 'दीन-हीन बस्ती' कहा जाता है। हालांकि इस पूर्वी टीले की योजना मोहनजोदड़ो की योजना से मिलती जुलती है। लेकिन मोहनजोदड़ो की तुलना में इसके अवशेष अधिक संरक्षित नहीं हैं। मकानों की नालियों, शौचालय, भट्टियों व कुओं आदि के निर्माण में पक्की ईंटों का प्रयोग किया गया है।
प्राक् हड़प्पा कालीन लाल/गुलाबी चाक निर्मित मृदभाण्ड सर्वप्रथम राजस्थान में 'सोथी' (वर्तमान हनुमानगढ) नामक स्थल से प्राप्त हुए, इसलिए इन्हें 'सोथी मृदभाण्ड' कहा गया है। मृदभाण्डों पर अलंकरण के लिए लाल धरातल पर काले रंग का ज्यामितीय व पशु-पक्षी चित्रण बहुतायत मिलता है। बी. के. थापर ने कालीबंगा के प्राक् हड़प्पीय मृद्भाण्डों को उनके आकार व प्रकार व अलंकरण अभिप्रायों के आधार पर 6 वर्गों A से F में विभाजित किया है।
कालीबंगा का एक फर्श पूरे हड़प्पा काल का एकमात्र ऐसा उदाहरण है, जिसमें अलंकृत ईंटों का प्रयोग हुआ है। इस पर प्रतिच्छेदी वृत्त का अलंकरण है।
एक पिंजरे में पक्षियों और दूध पिलाने वाली बोतलों के टेराकोटा मॉडल भी कालीबंगा से प्राप्त हुए हैं-
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Kalibangan seals -image by wikipedia |
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