गुप्तकालीन साहित्य की अमूल्य कृतियों की विशेषताएं एवं उसका महत्व।
गुप्तकालीन नाटक मुख्यतः प्रेम प्रधान व सुखांत होते थे, साहित्य की रचना संस्कृत भाषा में की गई थी. धार्मिक साहित्य पर टीका के साथ-साथ स्वतंत्र साहित्य की भी रचना की गई. नाटकों में उच्च वर्ग के पात्र संस्कृत बोलते थे जबकि निम्न वर्ग के पात्र तथा स्त्रियां प्राकृत भाषा का प्रयोग करती थी।
गुप्त काल के कुछ साहित्यकारों को हम उनकी रचनाओं के कारण तथा कुछ को उनके अभिलेखीय प्रशस्ति के कारण जानते हैं.
अभिलेखीय प्रशस्तिकारों में में हरिषेण, वीरसेन, वत्सभट्टी एवं जैसे रचनाकार आते हैं.
साहित्यिक रचनाओं के विवरणों से कालिदास, भारवि, शूद्रक, विशाखदत्त, विष्णुशर्मा, मातृगुप्त, भर्तृमेंठ जैसे रचनाकारों के बारे में जानकारी मिलती है.
1.माघ,
2.भारवि एवं
3.श्री हर्ष को संस्कृत काव्य का शीर्षत्रयी कहा गया है. इनकी रचनाएं क्रमशः शिशुपालवध, किरातार्जुनीयम् एवं नैषधीयचरितम् को बृहत्त्रयी कहा जाता है.
इसी प्रकार आयुर्वेद में बृहत्त्रयी
1.चरकसंहिता,
2.सुश्रुत संहिता व
3.अष्टांगहृदय को कहा जाता है/
कालिदास kalidas
कालिदास को अपनी अद्वितीय रचनाओं के कारण भारत का शेक्सपियर कहा जाता है. कालिदास गुप्त शासक चंद्रगुप्त द्वितीय के नवरत्नों में से एक थे. (अमरसिंह, वराहमिहिर, शंकु/शंकुक, धन्वन्तरि, वररूचि, वेतालभट्ट, घटकर्पर, क्षपणक), क्षपणक एक जैन साधु था, जैन धर्म में नग्न जैन मूर्ति को भी क्षपणक कहा जाता है. वेतालभट्ट तंत्र-मंत्र में माहिर था. वराहमिहिर गणितज्ञ व खगोलशास्त्री थे, धन्वन्तरि आयुर्वेद चिकित्सा के ज्ञाता थे. अन्य सभी रचनाकार/साहित्यकार थे.
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- कालिदास के ग्रंथ वैदर्भी शैली में लिखे गए हैं- Kalidas's texts are written in Vaidarbhi style./
- रचनाएं:-
खंडकाव्य:- 1. ऋतुसंहार 2. मेघदूत
महाकाव्यः- 3. कुमारसंभव 4. रघुवंश
नाटक :- 5. मालविकाग्निमित्रम् 6. विक्रमोर्वशीय 7. अभिज्ञान शाकुंतलम् इसके अलवा क्षेमेन्द्र के अनुसार कालिदास ने 'कौन्तलेश्वर दौत्य' नामक नाटक भी लिखा था.
ऋतुसंहार सर्ग 6. यह कालिदास की प्रथम रचना थी, कालिदास ने इसमें ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमंत, शिशिर तथा वसंत सहित 6 ऋतुओं का वर्णन किया है. ग्रीष्म से शुरू करते हुए वसंत तक. मेघदूत - इसकी रचना कालिदास ने वाकाटक शासक प्रवरसेन द्वितीय के दरबार में की थी. इसमें हेममाली नामक यक्ष, यक्षिणी विशालाक्षी के विरह में बादल को अपना संदेशवाहक बनाने की कल्पना करता है. इसमें 120 श्लोक हैं और यह दो भागों पूर्वमेघ व उत्तरमेघ में विभाजित है/
कुमारसंभवम - सर्ग- 17, शिव-पार्वती के पुत्र कार्तिकेय की जन्म की कथा का वर्णन
रघुवंश - सर्ग- 19, राजा दिलीप से लेकर अग्निवर्ण तक रघुवंश के 40 इक्ष्वाकु राजाओं का चरित्र चित्रण, इसमें काव्य के सभी रसों का प्रयोग हुआ है.
मालविकाग्निमित्र - 5 अंकों के इस नाटक में कालिदास ने शुंग शासक अग्निमित्र और मालविका की प्रणय कथा का वर्णन किया है. यह कालिदास की प्रथम नाट्य रचना है.
विक्रमोर्वशीयम् - 5 अंकों के इस नाटक में कालिदास ने राजा पुरुरवा एवं उर्वशी नामक अप्सरा की प्रणय कथा का वर्णन किया है. इस नाटक का दृश्यांकन झुंसी (प्राचीन नाम-प्रतिष्ठानपुर, इलाहाबाद में) में किया गया.
अभिज्ञान शाकुंतलम् 7 अंकों का यह नाटक कालिदास की सर्वश्रेष्ठ रचना है. इसमें कालिदास ने हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत तथा कण्व ऋषि की पालित पुत्री शकुंतला के प्रणय, विरह तथा पुनर्मिलन का वर्णन किया है. इसमें एक गरीब मछुआरे के साथ राजकर्मचारियों के दुर्व्यवहार की बात कही गई है. इसका कथानक महाभारत के आदि पर्व से लिया गया है. जर्मन कवि गेटे द्वारा इस नाटक की प्रशंसा की गई है.
विशाखदत्त• Visakhadutta
देवीचंद्रगुप्तम- इसमें चंद्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा शकराज व रामगुप्त की हत्या तथा ध्रुव देवी से विवाह का वर्णन मिलता है.
मुद्राराक्षस-यह एक नायिका विहीन नाटक है. इसमें चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा मौर्य साम्राज्य की स्थापना का वर्णन किया गया है.
मृच्छकटिकम् - यह शूद्रक का नाटक है. मृच्छकटिकम् का अर्थ होता है
मिट्टी की गाड़ी. इसमें कुल 10 अंक है. इसमें ब्राह्मण व्यापारी चारुदत्त तथा वसंतसेना नामक गणिका की प्रणय कथा का वर्णन है. इस नाटक की रचना संस्कृत भाषा में की गई है किंतु इस नाटक में स्त्रियां व शुद्र को प्राकृत बोलते दर्शाया गया हैं. इस नाटक में न्याय व्यवस्था, भ्रष्टाचार आदि का वर्णन देखने को मिलता है.
पंचतंत्र विष्णु शर्मा के इस ग्रंथ का सर्वाधिक भाषाओं में अनुवाद किया गया है. पंचतंत्र की रचना अमर कीर्ति नामक राजा के पुत्रों को शिक्षित करने के लिए की गई थी.
इसमें पांच तंत्र है-
1.मित्र भेद मित्रों में मनमुटाव/अलगाव की कहानियाँ
2.मित्र लाभ मित्र प्राप्ति व उसके लाभ
3.संधि विग्रह / काकोलूकीयम-मित्रों में कलह पैदा करना/कौवे व उल्लुओं की कथा (हालाँकि कहानियां अन्य जानवरों की भी है)
4.लब्ध प्रणाश हाथ लगी चीज का हाथ से निकल जाना
5.अपरीक्षित कारक- बिना परखे काम न करें
स्वप्नवासवदत्ता - महाकवि भास का यह संस्कृत नाटक 6 अंकों का है. इसमें वत्सराज उदयन तथा वासवदत्ता के प्रणय संबंधों का वर्णन किया गया है. इसे प्रथम संपूर्ण नाटक माना जाता है.
शिशुपाल वध महाकवि माघ का महाकाव्य है जिसमें 20 सर्ग हैं.
काव्यादर्श व दशकुमारचरित - दंडी/दंडिन
किरातार्जुनीयम् - भारवि (इसमें कुल 18 सर्ग है. इसमें किरात वेशधारी शिव तथा अर्जुन के मध्य युद्ध का वर्णन है)
नीतिसार - कामंदक, इसमें लिखा है कि, "जिस प्रकार सूर्य अपनी किरणों से जल ग्रहण करता है उसी प्रकार राजा अपनी प्रजा से धन ग्रहण करता है."
कामसूत्र - वात्सायन
विशुद्धिमग्ग - बुद्धघोष, यह त्रिपिटकों पर भाष्य है.
भुवानाभ्युदम् - शंकु
पत्र कौमुदी - वररूचि
घटकर्पर-काव्यम, नीतिसार घटकर्पर/घटखर्पर, इन्होंने घोषणा की थी, कि जो व्यक्ति इन्हें अनुप्रास और यमक में परास्त कर देगा उनके यहाँ वे फूटे घड़े से पानी भरेंगे, तभी से इनका नाम घटखर्पर पड़ गया और मूल नाम लुप्त हो गया. घटखर्पर काव्यम यमक व अनुप्रास का यह अनुपम ग्रन्थ है.
चंद्र व्याकरण - चंद्रगोमिन
न्यायावतार – सिद्धसेन, जैन दार्शनिक द्वारा न्याय दर्शन पर
अमरकोश या लिंगानुशासन अमरसिंह की रचना, इसे संस्कृत का
विश्वकोश कहा जाता है. तीन कांडों में विभक्त होने के कारण इसे 'त्रिकांड' भी कहते हैं. संस्कृत विद्वान कहते हैं कि जिस प्रकार 'अष्टाध्यायी' पंडितों की माता है उसी प्रकार 'अमरकोश' पंडितों का पिता है और जो इन दोनों को ठीक से पढ़ ले वो महान पंडित बन जाता है
रावणवध/भट्टीकाव्य - भट्टी
काव्यालंकार – भामह
हयग्रीव वध - भर्तृमेंठ इसके रचयिता थे, जिन्हें 'हस्तिपक' भी कहा जाता है.
फो-क्यो-की - फाह्यान (चन्द्रगुप्त II के काल में आया)
मातृगुप्त - कल्हण की राजतरंगिणी में मातृगुप्त का विवरण मिलता है, संभवतः इन्होंने भरत मुनि के नाट्यशास्त्र पर टीका लिखी थी. कवि जयशंकर प्रसाद अपने नाटक 'स्कंदगुप्त' में बताते हैं कि कश्मीर के शासक मातृगुप्त ही कालिदास थे. उनका व कुछ अन्य विद्वानों का मानना है कि, नाट्यकार कालिदास अलग थे, जबकि काव्यकार कालिदास अलग व्यक्ति थे. 'मातृगुप्त" ही यह काव्यकार थे और कालिदास इनकी उपाधि थी.
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