7वी सदी के महान कवि एवं हर्षचरित के लेखक बाणभट्ट का परिचय-
बाणभट्ट को जानने से पहले राजदरबार के केंद्र हर्षवर्धन के बारे में थोड़ा जान लेते है।
सातवीं शताब्दी के संस्कृत गद्यकार लेखक एवं महान कवि थे। उनके समक्ष उतर भारत का महान राजा हर्षवर्धन के दरबारी कवि भी थे अपने महाकाव्य 'हर्षचरित' के लिये ख्यात, महाकवि बाण का आविर्भाव 7वीं सदी के आरम्भ में हुआ था । वह भार्गव ब्राह्मण थे।
इतिहास-लेखन कला उन्हें वंश-परम्परा से उत्तराधिकार में प्राप्त हुई थी। वे पुष्यभूति वंश के राजा हर्षवर्धन के, जो कि कान्यकुल् में उत्तर भारत का सम्राट् था, राजकीय इतिहास लेखक थे।
हर्ष के ज्येष्ठ भ्राता राज्यवर्धन भी अपने पिता के हत्यारों से बदला लेने हेतु आरम्भ किये गये युद्ध में मारे जा चुके थे और हर्ष की बहन राज्यश्री जो कि मौखरि सम्राट् से ब्याही थी, पति के मारे जाने पर विन्ध्य पर्वत के जंगलों में चली गयी और सती होने का उपक्रम कर रही थी, किन्तु हर्ष द्वारा बचा ली. गयी थी ।
बंगाल के गौड़ और भवन्ती मालवों से मौखरियों का प्रतिशोध (बदला) लेने हेतु हर्ष ने युद्ध किया था। बाण ने इस युद्ध का वर्णन कम किया है। उसने हर्ष को राज्यश्री को ढूँढने में अधिक व्यग्र दिखलाया है।
महाकवि बाणभट्ट का जीवन परिचय,Life introduction of great poet Banabhatta,
बाणभट्ट संस्कृत के कुछ गिने - चुने लेखकों में से एक है जिनके जीवन एवं काल के विषय मे निश्चित रूप से उल्लेख किया हुआ है, कादम्बरी की भूमिका में तथा हर्षचरितम के द्वारा बाणभट्ट ने अपने वंश के सम्बंध में विस्तारपूर्वक जानकारी दी है ।
अपने विषय में बाण ने यह बतलाया है— च्यवन ब्राह्मण एवं क्षत्रिय कुमारी से उत्पन्न दधीचि और दधीचि एवं ज्ञान की देवी सरस्वती से उत्पन्न पुत्र सारस्वत था जिसने अपने चचेरे भाई वत्स के लिये 'प्रतिकूट' नामक गाँव च्यवनाश्रम (सोनतट) सीमा में बसाया था।
वह गाँव ब्रह्मणाधिवास नाम से भी ख्यात था। बाण ने वहीं जन्म लिया था। वत्स से वात्स्यायन वंश पड़ा । तद्नुसार वाण भार्गव पंक्ति का वात्स्यायन ब्राह्मण था ।
जोधपुर के दधिमाता मंदिर अभिलेख में जो क्षत्र्य ब्राह्मणों का उल्लेख है, उनका समीकरण उस क्षेत्र के दाधीच ब्राह्मणों से किया जा सकता है जिसकी छह उपजातियाँ ये थीं
दाधीच
सारस्वत
गौड़
गुर्जर
पारिख
खावाला ।
इस अभिलेख में 14 ब्राह्मणों की सूची दी गयी हैं जो सभी वत्सगोत्रीय हैं।
बाणभट्ट को गद्य रचना के क्षेत्र में वही स्थान प्राप्त था, जो उज्जयिनी सम्राट विक्रमादित्य के दरबारी कवि कालिदास ने संस्कृत काव्य क्षेत्र में था
हर्षचरित में 'आठ' अध्याय है जिन्हे 'उच्छवास' कहा जाता है।
प्रथम तीन उच्छवासों में बाण की आत्मकथा लिखी हुई है।
उच्छवास :
प्रथम - इसका कोई ऐतिहासिक महत्व नही है।
द्वितीय - इसमें बाण का प्रारम्भिक वंश परिचय तथा हर्ष से उसकी 'मणितारा' नामक स्कन्धावार (सैनिक शिविर) जो अचिरावती नदी पर स्थित था में प्रथम भेंट का विवरण दिया गया है।
तृतीय - श्रीकंठ जनपद तथा स्थाणीश्वर (थानेश्वर ) का वर्णन तथा 'पुष्यभूति' और शैव संन्यासी भैरवाचार्य के पारस्परिक सम्बन्धों का उल्लेख।
चतुर्थ - 'प्रभाकरवर्द्धन सम्बन्धी विवरण, राज्यवर्धन, हर्षवर्धन, राज्यश्री के जन्म, बचपन तथा राज्यश्री का कन्नौज के गृहवर्मा से विवाह का विवरण।
पंचम - हूणों के उपद्रव को दबाने के लिए राज्यवर्धन को भेजना, पीछे प्रभाकरवर्धन की बीमारी तथा मृत्यु का विवरण।
षष्ठम् - राज्यवर्धन द्वारा भिक्षु बनने की इच्छा, गृहवर्मा की हत्या का समाचार राज्यवर्धन द्वारा परिस्थिति वंश राजगद्दी ग्रहण करने तथा मालव राज के विरुद्ध अभियान व विजय तथा शशांक द्वारा राज्यवर्धन की हत्या करने तथा हर्ष द्वारा अपने सामन्त शत्रुओं से बदला लेने की प्रतिज्ञा का वर्णन ।
सप्तम - हर्ष की दिग्विजय यात्रा, कामरूप के शासक भास्करवर्मा के राजदूत हंसबेग द्वारा मैत्री प्रस्ताव स्वीकार किये जाने का विवरण।
अष्टम - राज्यश्री की खोज, पाराशरी बौद्ध भिक्षु दिवाकर मित्र से भेंट तथा राज्यश्री की प्राप्ति के साथ हर्षचरित का विवरण अचानक समाप्त हो जाता है।
आगे न तो हर्ष की विजयों का वर्णन है न अन्य राज्यों से सम्बन्धों का वर्णन। अध्याय आठ को 'विन्ध्याद्रि निवेशन' भी कहा जाता है। इसमें विन्ध्य के जंगलों में रहने वाले विभिन्न धार्मिक सम्प्रदायों का वर्णन मिलता है।
महाकवि बाणभट्ट की मुख्य रचनाएं/
हर्षचरितम
कादम्बरी
इसके अलावा
मार्कण्डेय पुराण के देवी महात्म्य पर आधारित दुर्गा का
स्त्रोत चंडीशतक है एवं। एक दूसरी नाटक पार्वती परिणय' भी बाणभट्ट रचित माना जाता है पर इतिहासकार इस विषय मे एक राय नहीं रखतें उनके अनुसार कोई अन्य बाणभट्ट सा वेक्ति है।
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