शिशुनाग वंश (412 ई.पू. - 344 ई.पू.) Shishunaga Dynasty (412 BC – 344 BC)
शिशुनाग- हर्यक कुल की तरह शिशुनाग कुल भी नागवंशी था। महावंश टीका के अनुसार शिशुनाग वैशाली के एक लिच्छवी राजा व एक स्थानीय नगर शोभिनी की संतान था। वैशाली से सम्बन्धित होने के कारण ही संभवतः उसने वैशाली को अपनी दूसरी राजधानी बनाया।
शिशुनाग हर्यंक वंश के अंतिम शासक नागदशक का अमात्य तथा बनारस का गवर्नर था। पितृघातकों के विरुद्ध विद्रोह करने वाली जनता ने शिशुनाग को मगध के सिंहासन पर बैठाया। पुराण उसे 'क्षत्रिय' स्वीकार करते हैं जो अधिक तर्कसंगत प्रतीत होता है, क्योंकि अगर वह एक वैश्या पुत्र होता तो रूढ़ीवादी ब्राह्मण उसे कभी राजा स्वीकार नहीं करते।
वैशाली जो उसके समय मगध की प्रधान राजधानी बन गई, मुख्यतः वज्जियों पर कठोर नियंत्रण स्थापित करने के लिए ऐसा किया गया था।
शिशुनाग के शासन काल में अवन्ति विजय अवन्ति विजय :-
शिशुनाग के शासन काल की प्रमुख घटना थी अवन्ति का मगध साम्राज्य में विलय। प्रद्योत की मृत्यु के पश्चात् अवन्ति के सिंहासन पर कोई ऐसा प्रतिभाशाली राजा न बैठा जो मगध को साम्राज्यवादिता से रक्षा करता। गृहयुद्ध ने उसे ओर भी निर्बल बना दिया था। शिशुनाग के द्वारा पराजित अवन्ति नरेश अवन्तिवर्धन था।
अवन्ति विजय से मगध साम्राज्य की पश्चिमी सीमा मालवा तक विस्तृत हो गई तथा पाटलीपुत्र से भड़ौच जाने वाले व्यापारिक मार्ग से अवन्ति का व्यापार भी अभूतपूर्व होगा पाटलीपुत्र को पश्चिम विश्व के साथ व्यापार-वाणिज्य के लिए एक नया मा प्राप्त हो गया। चूंकि वत्स का विलय पूर्व में प्रधीत द्वारा अवन्ति में किया जा चुका था, अतः वत्स पर शिशुनाग स्वतः अधिकार हो गया।
D.R भण्डारकर के अनुसार इस समय कौशल भी मगध की अधीनता में आ गया। इन विजयों से म राज्य एक विशाल साम्राज्य में तब्दील हो गया तथा उत्तर भारत के से सभी गणतंत्र इसमें सम्मिलित हो गये जो बुद्ध के समय विद्यमान थे। शिशुनाग ने 412 ईसा पूर्व से 394 ईसा पूर्व तक शासन किया।
कालाशोक (काकवर्ण) (394 ई.पू. - 366 ई.पू.) सिंहली महाकाव्यों के अनुसार कालाशोक व पुराणी व दिव्यावदान के अनुसार काकवर्ण शिशुनाग का उत्तराधिकारी हुआ। वह अपने पिता के समय काशी प्रदेश का शासक रह चुका था। उसने अपनी राजधानी पुनः पाटलीपुत्र स्थानांतरित की जो तत्पश्चात् दीर्घ समय तक मगध की राजधानी बनी रही।
वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ /
कालाशोक के शासनकाल के 10वें वर्ष (383 ई.पू.). वैशाली में द्वितीय बौद्ध संगीति का आयोजन हुआ जिसमें बौद्ध धर्म दो सम्प्रदाय स्थवीर व महासांघिक में बंट गया। वाणभट्ट के हर्षचरित के अनुसार काकवर्ण को राजधानी के समीप घूमते हुए किसी व्यक्ति ने छूरा भोंककर हत्या कर दी। संभवत: वह व्यक्ति महापदमनन्द था। कर्टियस ने बहुत पहले इस घटना का उल्लेख कर दिया था।
महाबोधि वंश के अनुसार कालाशोक के 10 पुत्र थे-
भद्रसेन
कोरण्डवर्ण,
मंगुर,
सर्वज,
जलिक,
उभाक,
संजय,
कौरव्य,
नंदीवर्धन व
पंचामक, जिन्होंने सम्मिलित रूप से 22 वर्ष शासन किया। नंदीवर्धन या महानन्दिन शिशुनाग वंश का अन्तिम शासक था।
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