हर्षवर्धन का जीवन परिचय,हर्षवर्धन का प्रशासन (Life introduction of Harshavardhana, administration of Harshavardhana)
Harshavardhana.image by magadhIAS |
गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद उतर भारत के राजवंशों में थानेश्वर ( स्थानिश्वर) का पुष्यभूति वंश सर्वाधिक शक्तिशाली तथा महत्वपूर्ण राजवंश था, ।इतिहास में यह वंश 'वर्धनवंश ' के नाम से भी प्रसिद्ध है। हर्ष की प्रसिद्धि इस तथ्य पर आधारित है कि अधिकांश दूसरे प्राचीन प्राचीन राजाओं की अपेक्षा उसका शासनकाल भली भांति लेखकबद्घ रूप में है।जो प्रारम्भ में में बाणभट्ट द्वारा तथा उत्तर काल मे व्हेनसांग के वर्णन से लेखकबद्घ है व्हेनसांग की विवरण मेगास्थानीज के वर्णन के प्रतिकूल भलीभांति सुरक्षित है।
भारत के इतिहास में उसने उत्तर भारत मे अपना एक सदृढ़ सम्राज्य स्थापित किया था। वह सम्राट था जिसने पंजाब को छोड़कर शेष। समस्त उतर भारत को जीत लिया था।
जीवन परिचय पृष्ठभूमि-background
वंश -` पुष्यभूति वंश
संस्थापक - पुष्यभूति। ( वर्धन राजवंश)
जन्म - थानेश्वर। ( हरियाणा)
पिता का नाम - प्रभाकर वर्धन
माता का नाम - यशोमति
बड़ा भाई - राजवर्धन
बहन का नाम - राज्यश्री
प्रभाकर वर्धन की मृत्यु के बाद राज्यवर्धन राजा बना, वह प्रतापी दयालु और उदारवादी शाशक था। हर्षवर्धन की एक बहन थी राज्यश्री ,राज्यश्री का विवाह कन्नौज के राजा ग्रहवर्मन से हुआ था। मालवा नरेश देवगुप्त और गौड़ के राजा शशांक की आपसी मिली भगत संधि के वजह से मारा गया। शशांक ने ग्रहवर्मन को मार दिया और राज्यश्री को बंदी बना लिया, यह बात जब राज्यवर्धन अर्थात राज्यश्री का बड़ा भाई को पता चला तो उसने बदला लेने के लिए गौड़ राजा शशांक के साथ युद्ध के लिए निकल पड़े।
लेकिन पहले से ही दोनो मालवा नरेश देवगुप्त ,शशांक ,राज्यवर्धन के लिए जाल बिछा चुका था। चूंकि मालवा और गौड़ से गतिरोध प्रभाकर वर्धन के समय से ही चला आरहा था, हुआ भी वही,राज्यवर्धन घिर गया देवगुप्त ,शशांक , ने मिलकर राज्यवर्धन की हत्या कर दी, ।
हर्षवर्धन की पृरी जीवनी को आप पढ़ेंगे तो ऐसा लगता है जैसे कोई पुराने फ़िल्म की कहानी है। हर्षवर्धन अपने छोटे उम्र में ही सबकुच खो दिया था, पिता की साया बचपन मे उठ चुका था, और अपनी आंखों के सामने पति की वियोग में माँ को सती होते देखा था, बड़ा भाई की दुश्मनों ने जालसाजी से निर्मम हत्या कर दी थी, बहन बेड़ियों में बंधी हुई थी दुश्मनों के चंगुल में हर्षवर्धन का जन्म 590 AD में थानेश्वर ( हरियाणा) में हुई थी, यह पुष्यभूति वंश से सबंधित था ,हर्षवर्धन के बारे में चीन के बौद्ध यात्री जुआनजांग ने अपने लेख में में उल्लेखित किया है।
अंतत ,हर्षवर्धन 606 ईसवी में राजगद्दी पर बैठा ,उसके तुरंत बाद ही हर्षवर्धन ने देवगुप्त से मालवा छीन लिया, और शशांक को भी पराजित कर गौड़ से भागने को मजबूर कर दिया। इसतरह उसने अपने भाई की हत्या का बदला ले लिया।
उसने अपने राज्य की राजधानी कन्नौज बनाई थी हर्षवर्धन की नीतियां उदार थी, शांति एवं भाईचारे को प्राथमिकता देते थे।। दक्षिण पर भी हर्षवर्धन ने अभियान किया और सफल हो रहा था, लेकिन दक्षिण में चालुक्य वंश के राजा ,पुलकेशिन द्वितीय से हर्षवर्धन का सामना हुआ 618AD -619AD और पुलकेशिन द्वितीय
ने हर् हर्षवर्धन को हराय। इसके बाद हर्षवर्धन ने दक्षिण पर अपना अभियान नही भेजा।
ह्वेनसांग ने हर्षवर्धन की बहुत प्रशंसा की है
1.चीनी यात्री ह्वेनसांग ने हर्षवर्धन की बहुत प्रशंसा की है, हर पाँच साल पर वह दान देने के लिए एक समारोह का आयोजन करता था।
2.वाणभट्ट ,हर्षवर्धन की राज्य दरबार में एक महान कवि थे, वे नाटक भी लिखते थे। वाणभट्ट द्वारा लिखी सर्वोच्य कृति। हर्षचरित जो हर्षवर्धन के बारे में बहुत ही विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।
3.वाणभट्ट द्वारा लिखित कादम्बरी से पता चलता है, हर्षवर्धन और वाणभट्ट दोनो अच्छे मित्र थे। गुप्त साम्राज्य के विघटन के बाद ,उतरी भारत मे एक छीन भिन्न, बिखरा हुआ इश्थिति बनी रही, ऐसी इश्थिति में हर्षवर्धन के शाशन ने वहां राजनैतिक इस्थिरता प्रदान किया।
4.हर्षवर्धन द्वारा लिखी गई ,नागानंद ,रत्नावली और प्रियदर्शिका। सँस्कृत साहित्य की अमूल कृतियों में से एक है। वाणभट्ट ने उसका जीवनी हर्षचरित में उसे , चतुः समुदाधिपति एवं सर्वचक्रवर्तिनाम धीरएह आदि। उपाधियों से अलंकृत किया है।
हर्षवर्धन कवि और नाटककार दोनो था, उसके लिखे दो नाटक प्रियदर्शिका और रत्नवाली। हर्षवर्धन का जन्म थानेश्वर या जो कि वर्तमान हरियाणा में पड़ता है। थानेश्वर ,प्राचीन हिंदुओं की तीर्थ केंद्रों में से एक है। तथा 15 शक्तिपिठो में से एक है।
ह्वेनसांग ने अपनी पुस्तक में इनके शाशन काल के बारे में लिखा । हर्षवर्धन स्वयं प्रशाशनिक व्यवस्था में वक्तिगत रूप से रुचि लेता था, सम्राट की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद गठित की गई थी, वाणभट्ट के अनुसार अवनति युद्ध और शांति का मंत्री था।
मंत्रिपरिषद में निम्नलिखित मंत्री सामिल थे
अवनति. युद्ध और शांति का मंत्री
सिंहनाद. सेनापति
कुन्तल. अश्वसेना का प्रमुख अधिकारी
स्कन्दगुप्त. हस्तिसेना (हाथी) का प्रमुख अधिकारी
भण्डी. प्रधान सचिव
लोकपाल. प्रान्तीय शाशक
हर्षवर्धन ने कनौज को अपनी राजधानी बनाई, और पूरे भारत को एक सूत्र में बांधने में सफलता हासिल की।
हर्षवर्धन खेलने खाने की उम्र में महान राजा बन गया था। अपने बड़े भाई राज्यवर्धन की हत्या ने उसकी मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ा, यह घटना हर्ष को पृरी तरह तोड़ कर दिया था।
हर्षवर्धन ने एक बड़ी सेना त्यार की और करीब 6 साल के अंदर अंदर,
बल्लभी (Ballabhi)
मगध (Magadha)
कश्मीर (Kashmir)
गुजरात (Gujarat)
सिंध (Sindh)
को जीत कर सम्पूर्ण उतर भारत पर अपना आधिपत्य कायम कर लिया।
जल्द ही पश्चिम में गुजरात से लेकर पूर्व में असम तक उतर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में नर्मदा नदी तक फैला गया था। चीन के साथ भारत का स्वन्ध एतिहासिक है वर्तमान में जिस तरह से दुश्मनी देखने को मिलती है, ऐसा पूर्व में नही था/ 7वी सदी में हर्ष ने कला और संस्कृति के बलबूते पर दोनो देशों के बीच बहुत ही मधुर सबन्ध बनाकर रखे हुए था,चीनी यात्री ह्वेनसांग हर्षवर्धन के दरबार मे 8 साल तक एक मित्र की तरह रहा था। हर्षवर्धन ने सती प्रथा पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया ,क्योकि अपनी माँ को सती होते देखा था,
हर्षवर्धन की मृत्यु 648 ई° में हुई/
हर्षवर्धन की पत्नी दुर्गावती से दो पुत्र थे वागयवर्धन, और कल्यानवर्धन इन दोनों की हत्या अरुनशवा नाम मंत्री ने कर दिया था। इस वजह से हर्षवर्धन के राजपाठ को संभालने उसके साम्राज्य को आगे बढाने के लिए कोई वारिस नही बचा था।
हर्षवर्धन एक महान प्रतापी, कुटनीतिज्ञ, बुद्धिमान सम्राट था, अखण्ड भारत की एकता को साकार करने वला सम्राट था, सभी धर्मों को समान भाव और आदर के साथ व्यवहार करता था, वो कभी भी परिवारिक मोह माया में या अपनी स्वार्थ में।नही पड़ा, हर्षवर्धन राष्ट्रप्रेम की प्रतीक था, सम्प्रभुता अखण्डता सर्वोच्य रखा, जन्म से हिन्दू रहा, बाद में बौद्ध अपना लिया था हिन्दू -बौद्ध धर्म के एक महान प्रचारक था।
कला और सँस्कृति बहुत बड़ा प्रेमी था, प्रयाग में मशहूर कुम्भ मेला भी हर्षवर्धन ने ही सुरु करवाया था। नालंदा विश्वविद्यालय की प्रसिद्धि, विश्व विख्यात हर्षवर्धन के काल मे ही हुआ, शिक्षा के लिए हर तरह की संसाधन को हर्षवर्धन ने पूरा किया/
धन्यवाद्
0 टिप्पणियाँ
magadhIAS Always welcome your useful and effective suggestions