खुदा
बख्श
ओरिएंटल
लाइब्रेरी Khuda Baksh Oriental Library
लाइब्रेरी निर्माण में खुदाबख्श खान का कड़ी मेहनत/
इस लाइब्रेरी के निर्माण के पीछे मौलवी खुदाबख्श खान के समपर्ण लगन एवं कड़ी मेहनत द्वारा देखी एक सुनहरी सपना था, जो 29 अक्टूबर 1891 को साकार हुआ जब इस लाइब्रेरी को जनता के सेवा में समर्पण किया गया /
ताड़ के पत्तों ,भोजपत्र ,खजूर के पत्तो, हिरण के खाल एवं कपड़े ,पर लिखी 21,000 से अधिक पांडुलिपियाँ शामिल हैं। इसमें सुलेख उत्कृष्ट कृतियों के अलावा ईरानी, मुगल, मध्य एशियाई, कश्मीरी और राजस्थानी स्कूलों की कलाओं का वैभव शामिल है। जो छवियों से लेकर हस्तलेखों तक कवर करते हैं।
लाइब्रेरी की 4 पांडुलिपियों (2 अरबी में और 2 फारसी में) को 2006 में राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन द्वारा विज्ञान निधि (भारत का पांडुलिपि खजाना) के हिस्से के रूप में घोषित किया गया है। इस लाइब्रेरी के ऐतिहासिक सामग्रियों के अध्ययन हेतु देश- विदेश से जिज्ञासु वेक्ति आते है, एवं अपने ज्ञान में वृद्धि करते है।
कर्जन रीडिंग हॉल
इस लाइब्रेरी के प्रांगण में एक कर्जन रीडिंग हॉल है। इस लाइब्रेरी में लार्ड कर्जन जो उंस समय भारत के वायसराय थे 1903 में खुदाबख्श लाइब्रेरी में आये थे। यहां उनके विजिटर बुक में ऑटोग्राफ भी मौजूद है। लार्ड कर्जन इस लाईब्रेरी में क्या देखे या समझे सबकुछ विजिटर बुक में मौजूद है, कर्जन के याद में ही । कर्जन रीडिंग हॉल बनवाया गया जो आज भी बड़े शान से खड़ा है एवं संचालित हो रहा। यहां विद्यार्थियों एवं जिज्ञासुओं का जमावड़ा लगा रहता/
चर्चित वेक्तियो का आगमन
खुदाबख्श लाइब्रेरी में भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू एवं रविंद्र नाथ टैगोर ,1925 में महात्मा गांधी आ चुके है। रविन्द्र नाथ टैगोर इस लाइब्रेरी के तारीफ में बड़े सुंदर तरीके से विजिटर बुक में लिखे है । रविन्द्र नाथ टैगोर की हैंडराइटिंग मनमोहक एवं सुंदर लगती है/
खुदा बख्श ओरिएंटल लाइब्रेरी, का नाम भारतीय सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण में एक महत्वपूर्ण स्थान है के रूप में है, भारत सरकार ने संसद में 1969 में पारित एक विधेयक के द्वारा इसे राष्ट्रीय महत्व के स्थान के रूप में प्रतिष्ठित किया , खुदाबख्श लाइब्रेरी बिहार के एक अदभुत अनमोल धरोहर है जिस पर भारत एवं विश्व गर्व करता है/
धन्यवाद ।
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