भारत का प्रारम्भिक अतीत और पुरातात्विक स्रोत India's early past and archaeological sources
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Alexander cunningham :image credite widipedia |
भारतीय पुरातत्व का इतिहास भारत में पुरातत्व सम्बन्धी कार्य का प्रारम्भ यूरोपियों ने किया।
प्रसिद्ध प्राच्यविद् सर विलियम जोन्स ने एशियाई क्षेत्र के पुरावशेषों, कला, विज्ञान व साहित्य में अनुसंधान हेतु 15 जनवरी 1784 को 'एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल' (कलकत्ता) की स्थापना की। 1804 ई. में मुम्बई तथा 1823 ईस्वी को लंदन में इसकी शाखाएं खोली गई।
इस संस्था ने 'एशियाटिक रिसचेंज' पत्रिका प्रकाशित की। एशियाटिक सोसायटी द्वारा अनुदित पहली पुस्तक 'अभिज्ञान शाकुन्तलम्' (1789 ई.) थी। वे ब्रिटेन के प्रसिद्ध 'अंग्रेज प्राच्यविद' व 'विधिशास्त्री' थे। इब्रानी, फारसी, अरबी, चीनी, जर्मन, इतावली, फ्रेंच, स्पेनी, पुर्तगाली व संस्कृत भाषाओं के ज्ञाता के रूप में वे 'बहुभाषाविद् (Polyglot) भी थे।
सर्वप्रथम विलियम जोंस ने यूनानी शब्द 'सैण्ड्रोकोट्स' तथा 'पालिब्रोथा' का समीकरण क्रमशः संस्कृत के 'चन्द्रगुप्त मौर्य' व 'पाटलीपुत्र' शब्दों से किया। इसी संस्था के संस्थापकों में से एक चार्ल्स विल्किंसन (अंग्रेज भारतविद् ) ने 'भगवद्गीता' एवं 'हितोपदेश' का अंग्रेजी अनुवाद किया। चार्ल्स विल्किंसन ने गुप्त व कुटिल लिपियों को पढ़ने का सर्वप्रथम प्रयास किया तथा सर्वप्रथम कन्हेरी व एलिफेन्टा गुफाओं का विवरण दिया। उन्होंने पंचानन कर्माकर के साथ मिलकर पहला टाइपफेस विकसित किया। 1800 ई. में बुकानन ने मैसूर के पुरावशेषों का सर्वेक्षण किया।
एशियाटिक सोसायटी के सचिव 'जेम्स प्रिंसेप' (1799-1840) ने 1837 ई. में सर्वप्रथम प्राचीनतम ब्राह्मी लिपि की व्याख्या की तथा अशोक के अभिलेख को पढ़ने में सफल हुआ। जॉर्ज टर्नर ने 'पियदसि' (प्रियदर्शी) का समीकरण मौर्य सम्राट अशोक के साथ किया।
जनरल अलेक्जेण्डर कनिंघम :-General Alexander Cunningham :-
उन्नीसवीं सदी का उत्तरार्ध भारतीय पुरातत्त्व के इतिहास का एक महत्त्वपूर्ण काल और था। इसी काल में पुरावशेष-संग्रह (antiquarianism) पुरातात्त्विक खोजों के बृहत परिप्रेक्ष्य में पुरातत्त्व एक अलग विषय के रूप में उभर कर आया। और 'पुरातात्त्विक सर्वेक्षण',(Archaeological Survey ) की स्थापना के साथ ही पुरातात्त्विक खोजबीन को एक सुदृढ़ सांगठनिक आधार मिल गया।
1860 के दशक से लेकर 1880 के दशकों के बीच भारतीय पुरातत्त्व के क्षेत्र में अलेक्जेंडर कनिंघम (1814-1893) का प्रभाव इतना प्रबल था कि इन दशकों को कनिंघम काल से जाना जाता है। इनका जन्म स्कॉटलैंड में 1814 में हुआ तथा कालान्तर में भारतीय पुरातत्व, ऐतिहासिक भूगोल तथा इतिहास के प्रसिद्ध विद्वान के रूप में प्रसिद्ध हुए। 1831 में इनकी नियुक्ति बंगाल के रॉयल इंजीनियर के रूप में हुई। इन्होंने भारत विद्या (Indology) के विख्यात शोधक जेम्स प्रिंसेप की प्राचीन सिक्कों के लेखों तथा अशोक के अभिलेखों को पढ़ने में पर्याप्त सहायता प्रदान की। मेजर किट्टो को भी अशोक के भाब्रू लेख की खोज व उसे कलकत्ता पहुंचाने में सहायता प्रदान की।
वायसराय लॉर्ड केनिंग के समय 1861 ई. में 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण' (A.S.I.) की स्थापना की गई। कनिंघम इसके प्रथम 'पुरातत्व निरीक्षक' (1861-65 ई.) बनाये गये। इन वर्षों के दौरान उन्होंने सुव्यवस्थित ढंग से सर्वेक्षण किया और उत्तरी भारत के विभिन्न भागों में लगभग 166 स्थलों का विवरण दर्ज किया। उन्होंने उत्खननों के माध्यम से तक्षशिला, कौशांबी, श्रावस्ती, रामग्राम जैसे बुहत सारे प्राचीन शहरो की खोज की। 1871 ई- में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का इन्हें प्रथम महानिदेशक (डायरेक्टर जनरल) नियुक्त किया गया। इन वर्षों के दौरान उन्होंने बहुत सारे स्थलों को खोज निकाला मथुरा, भीटा, बोधगया, राजगीर, तख़्त-ए-बही, शहर-ए-बहलोल, मनिक्याला, हड़प्पा, भरहुत, बेसनगर, सांची, सहेत-महेत (श्रावस्ती), तक्षशिला और खजुराहों जैसे कई महत्त्वपूर्ण स्थलों पर उत्खनन कार्य किए।
आर्केयोजिकल सर्वे रिपोर्ट्स' के 23 खंड महानिदेशक के रूप में उनके द्वारा किए गए कार्यों के प्रत्यक्ष प्रमाण प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने सर्वप्रथम मुगल साम्राज्य की राजधानियों दिल्ली व आगरा का सर्वेक्षण किया। 1872 ई. में राजपूताना, बुन्देलखण्ड, मथुरा, बोधगया, गौड़ आदि का भ्रमण किया। कनिंघम का मानना था कि जिस प्रकार प्लिनी ने सिकन्दर महान के पदचिन्हों पर चलकर अपनी रचना की उसी प्रकार मैं चीनी यात्री हवेनसांग के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए कार्य करूंगा। तक्षशिला, नालन्दा, श्रावस्ती, कौशाम्बी : अहिच्छत्र, बैराठ, संकिसा जैसे प्राचीनतम नगरों के अवशेष प्राप्त करने वाले वे प्रथम व्यक्ति थे।
पॉलबियस (144ई.पू.):- पॉलीबियस द्वारा लिखित ग्रन्थ, जिसमें भारत विषयक महत्वपूर्ण विवरण है, दुर्भाग्य से विलुप्त हो गया है यह यूनानी विद्वान सम्भवतः कुछ समय के लिए भारत के पश्चिमोतर प्रान्त में आया था, वहाँ की गहन भौगोलिक एवं सामाजिक स्थिति की जानकारी इसने अपने वृतान्त में लिखी थी, जिसकी पुष्टि परवर्ती यूनानी लेखक करते है। डियोडोरस :- (प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व) - पुस्तक 'बिब्लियोथेका हिस्टोरिका'।
इस लेख का निष्कर्ष Conclusion of this article
यह लेख भारतीय पुरातत्व के इतिहास पर ध्यान केंद्रित है,
जिसका आरंभ यूरोपीय विद्वानों द्वारा किया गया था। सर विलियम जोन्स की नेतृत्व में
1784 में कोलकाता में स्थापित
'एशियाटिक सोसायटी ऑफ बंगाल'
के माध्यम से यह आरंभ हुआ,
जिसने भारतीय पुरातत्व,
कला,
विज्ञान,
और साहित्य में अनुसंधान की शुरुआत की। सर विलियम जोन्स और उनके साथी विद्वानों ने भारतीय भाषाओं,
संस्कृत,
और इतिहास का अध्ययन किया,
और एशियाटिक सोसायटी ने
'एशियाटिक रिसचेंज'
पत्रिका के माध्यम से उनके अनुसंधानों को प्रस्तुत किया।
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