नंद वंश (344 ई.पू. - 322 ई.पू. नंद वंश का संस्थापक महापदमनंद था।
पुराणों में उसे 'शूद्रागर्भोद्भव' (शूद्र माता के गर्भ से उत्पन्न) कहा गया है।
महाबोधिवंश उसे 'उग्रसेन' कहता है। महापदमनंद निम्न वर्ण से। सम्बन्धित था।
जैन स्रोत आवश्यक सूत्र उसे नापितदास (नाई का दास),
परिशिष्ट पर्वन उसे नापित पिता व वैश्या माता का पुत्र घोषित करते हैं।
बौद्ध स्रोत महावंशटीका में नंदों को अज्ञात कुल का व डाकुओं के गिरोह का मुखिया बताया गया है।
विशास्त्रदत्त कृत मुद्राराक्षस के अनुसार नन्द नरेश शूद न होकर 'प्रचितकुलजा' व 'अभिजन' थे।
यूनानी लेखक कर्टियस के अनुसार अग्रमीज (औग्रसेन्य.. धनानंद का पिता नाई जाति का था, अपनी सुन्दरता के कारण रानी का प्रेम पात्र बन गया तथा छल से राजा की हत्या कर दी राजकुमारों के संरक्षण के बहाने राजगद्दी हथिया ली (यानी पद्मानन्द कालाशोक व उसके 10 पुत्रों की हत्या कर शासक बना यूनानी लेखक डियोडोरस भी कालाशोक की पत्नी द्वारा मदद के प्रेम में पड़कर उस पर हत्या का लाउन लगाता है।
विष्णु पुराण के अनुसार महानन्दी (महापद्मनंद का पिता) की शूद्रा से उत्पन्न महापदम अत्यन्त लोभी तथा द्वितीय परशुराम समान सर्वक्षत्रान्तकारी (सभी क्षत्रियों का विनाश करने वाला) ।
पुराण, बौद्ध व जैन परम्पराओं के अनुसार 'नौ नन्द' राजा हुए, 'नवनन्द' कहा जाता है,
पुराणों के अनुसार एक राजा पिता व बाकी आठ उसके पुत्र थे। पुराणों में केवल महापदमनन्द व. एक पुत्र ‘सुकल्प' का वर्णन मिलता है। महाबोधिवंश के अनुसार नवनन्द राजाओं की सूची इस प्रकार है
उग्रसेन (महापदमनंद), पिता
पाण्डुक,
पाण्डुगति,
भूतपाल,
राष्ट्रपाल,
गोविशनक,
दाससिद्धक,
कैवर्त
घनानन्द (अग्रमीज)
उग्रसेन (भयंकर व विशाल सेना का स्वामी)
सर्वक्षत्रान्तक (समस्त क्षत्रियों का नाशक)
अपरोपरशुराम (द्वितीय परशुराम) व भार्गव एकराट व एकच्छत्री (जिसने सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने छत्र के अधीन किया हो)
अनुल्लंघित शासक, कलि का अंश आदि भी महापद्मनन्द की उपाधियां थीं। उसके द्वारा निम्नलिखित राजवंशों का उन्मूलन किया गया-
(1) इक्ष्वांकु (वर्तमान अवध) :- सोमदेव के 'कथासरित 'सागर' मे अयोध्या के समीप नन्दों के सैनिक शिविर होने का उल्लेख है।
(2) पांचाल (बरेली, बन्दायू, फर्रुखाबाद- वर्तमान रुहेलखण्ड)
(3) काशेय (काशी का राज्य)
(4) हैहय (नर्मदा के आसपास राजधानी महिष्मति)
(5) कलिंग (उड़ीसा)- हाथी गुफा अभिलेख के अनुसार 'नन्दराज ने कलिंग पर आक्रमण किया तथा वहां एक नहर का निर्माण करवाया और यहां से एक ' आदिजिन' (संभवत: आदिनाथ) की मूर्ति उसे उठा ले गया।
हाथी गुफा लेख में 2 बार (5 व 12 वर्ष) नन्दराज का उल्लेख है।
(6) अश्मक (आन्धप्रदेश-गोदावरी के आसपास)- निजामाबाद के समीप 'नवनन्द देहरा' नामक नगर नन्दों
आधिपत्य का सूचक है। रायचौधरी महापद्मनन्द की दक्षिणापथ विजय को स्वीकार करते हैं।
(7) कुरु (मेरठ, दिल्ली, थानेश्वर)
(8) मैथिल (मिथिला-जनकपुर)
(9) शूरसेन (मथुरा, ब्रजमण्डल)
(10) वीतिहोत्र (नर्मदा का मध्यवर्ती क्षेत्र)
मत्स्य पुराण में महापद्मनन्द को उक्त विजयों का उल्लेख मिलता है।
यूनानी लेखक कर्टिस के अनुसार नन्द सेना में 20 हजार अश्वारोही, 2 लाख पैदल, 3 हजार हाथी थे।
भारतीय इतिहास में महापद्मनन्द के शासनकाल में पहली बार एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना हुई जिसके साम्राज्य की सीमाएं गंगाघाटी के मैदानों का अतिक्रमण कर गई। विन्ध्यपर्वत के दक्षिण में विजय पताका फहराने वाला वह प्रथम मगध शासक था। मैसूर से प्राप्त 12वीं शताब्दी के अभिलेखों में नंदों द्वारा कुन्तल (दक्षिणी महाराष्ट्र व मैसूर का उत्तरी भाग) राज्य जोते जाने का उल्लेख है। क्लासिकल लेखकों के अनुसार अग्रमीज (घनानन्द) का राज्य व्यास नदी तक फैला था। संभवतः यह प्रदेश भी उग्रसेन (महापद्मनन्द) द्वारा ही जीता गया था। वायु पुराण के अनुसार महापद्मनन्द ने 28 वर्ष शासन किया। निःसंदेह वह उत्तरी भारत का प्रथम ऐतिहासिक सम्राट था।
घनानन्द ल. 328 ईसा पूर्व- 323 ईसा पूर्व
घनानन्द नन्द वंश का अंतिम शासक था।
वास्तविज नाम : धनानंद
वंश: नंद वंश
पिता :-महापद्मनन्द
अनुयायी :- जैन धर्म
सिकन्दर महान का समकालीन था।
कथासरित्सागर के अनुसार के पास 11 करोड़ स्वर्ण मुद्राएं थीं।
जनता से बलपूर्वक धन वसूली का परिणाम ये हुआ कि जनता नन्दों के शासन के विरुद्ध हो गई। इसी असंतोष का लाभ उठाकर चाणक्य व चन्द्रगुप्त मौर्य ने घनानन्द की हत्या कर उसके वंश का अन्त किया। घनानन्द का सेनापति भद्रशाल था, 'राक्षसराज' उसका अमात्य था।
नन्द वंश की उपलब्धियां व महत्त्व :-
उन्होंने गंगा घाटी के निर्बल राजवंशों का अन्त कर एक सुदृढ़ व केन्द्रीय प्रवृत्तियुक्त साम्राज्य की स्थापना की। सम्राट के रूप में प्रतिष्ठित होकर उन्होंने निम्न जातियों को गरिमा प्रदान की। सामाजिक दृष्टि से इसे 'निम्न वर्ग के उत्कर्ष का प्रतीक' तथा राजनैतिक दृष्टि से 'उत्तर भारत में सर्वप्रथम एकछत्र शासन' के संस्थापक के रूप में देखा जाता है। उनके समय में पाटलीपुत्र वैभव व विद्वता का केन्द्र बन गई (राजशेखर काव्यमीमांसा)। गांधार स्थित 'शालातुर' के निवासी 'पाणिनी' महापद्मपन्द के मित्र थे तथा उन्होंने पाटलीपुत्र में ही रहकर शिक्षा ग्रहण की थी।
वृहत्कथा के संकलनकर्ताओं द्वारा उल्लिखित परंपरा पर विश्वास नंद के शासनकाल में पाटलिपुत्र में सरसवती और लक्ष्मी दोनों का ही वास था अर्थात् पाटलिपुत्र विद्या और भौतिक सुख-समृद्धि का घर बन गया था। वर्ष, उपवर्ष, पाणिनी, कात्यायन, वररुचि, व्याड़ि आदि उद्भट विद्वान इसी युग में हुए।
नन्द शासक जैन मत के पोषक थे। जैन स्रोतों में नन्दों के अनेक मंत्रियों की चर्चा की गई है जो जैन धर्मावलम्बी थे। प्रथम जैन मंत्री 'कल्पक' था जिसकी सहायता से महापद्मनन्द ने समस्त क्षत्रियों का विनाश कर दिया। घनानन्द का जैन अमात्य 'शाकटाल' था।
उसकी मृत्यु के बाद उसके पुत्र स्थूलभद्र को मंत्री बनाया गया जिसने इस पद को अस्वीकार करते हुए एक जैन भिक्षु बनना स्वीकार किया। बाद में स्थूलभद्र के भाई 'श्रीयक' को यह पद दिया गया। इस प्रकार नन्दों के अधीन मंत्री पद वंशानुगत था। मुद्राराक्षस से भी नन्दों का जैन मत अनुयायी होना सिद्ध होता है।
कलिंग में सिंचाई व्यवस्था (नहर) प्रारम्भ करने का श्रेय नन्दवंश को ही प्राप्त है। नन्द शासकों ने बाट-माप का मानकीकरण किया तथा माप-तौल की नई प्रणाली 'नंदोपक्रमाणिमानानि' चलायी थी। पाणिनी कृत अष्टाध्यायी से इसकी पुष्टि होती है।
नन्द राजाओं के अधीन मगध राजनैतिक दृष्टि अतिरिक्त आर्थिक दृष्टि से भी अत्यन्त समृद्धिशाली साम्राज्य बन गया। साइबेरिया की ओर से वे स्वर्ण मंगाते थे।
मगध साम्राज्य के उदय व सफलता के कारण :-
मगध की राजनीतिक सफलता में भौगोलिक परिस्थिति को अत्यन्त महत्वपूर्ण माना जाता है। मगध की राजधानी राजगीर 5 पहाड़ियों से घिरी हुई थी तथा नई राजधानी पाटलीपुत्र गंगा व सोन के संगम स्थल पर स्थित थी। अजातशत्रु के काल में गंगा नदी के तटों पर नियंत्रण स्थापित हो गया, जिससे उत्तरापथ के व्यापारिक मार्ग को नियंत्रित किया जा सकता था। बंगाल, कलिंग और संभवतः सौराष्ट्र के बंदरगाह सामूहिक व्यापार के लिए वरदान थे।
डी.डी. कौशाम्बी के अनुसार 'मगध का लौह अयस्क व ताम्बा खनिज के स्रोतों पर अधिकार था। अतः गहन कृषि के लिए कठोर औजार व युद्ध के लिए मजबूत हथियार बनाना सक्षम हुआ। समीपवर्ती वन प्रदेश से मगध के शासकों ने हाथियों को प्राप्त कर एक शक्तिशाली गज सेना का गठन किया।
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