एक महान भारतीय कवि अमीर खुसरो (अमीर की खुसरो 'तूती-ए-हिन्द')
एक जन्मजात कवि और प्रतिभाशाली लेखक अमीर खुसरो प्रथम और अभी तक प्रारम्भिक मध्यकालीन भारत की हिन्द-मुस्लिम संस्कृति का प्रथम व सर्वाधिक लब्ध प्रतिष्ठ प्रतिनिधि था।
अमीर खुसरो का जन्म 1253-54 में 'पटियाली (एटा जिला उत्तरप्रदेश) में हुआ था। उसका मूल नाम 'मुहम्मद अबुल हसन यामिनुद्दीन था, चंगेज खा के आक्रमणों से पीड़ित होकर बलबन (1266 से 1286) के राज्यकाल में शरणार्थी के रूप में बसे थे। खुसरो की माँ बलबन के युद्धमंत्री इमादुतुल मुल्क की पुत्री थी।
20 वर्ष की आयु होते होते खुसरो एक कवि के रूप में प्रसिद्ध हो गए
अमीर खुसरो को अमीर की उपाधि किसने दी
खुसरो को 'अमीर' की उपाधि जलालुद्दीन खिलजी (1290-1296) ने दी थी तथा खुसरो' उसका 'तखल्लुस ' (उपनाम) था।
अमीर खुसरो तुर्की प्रवासी वंशज था। उसके पिता अमीर सैफुद्दीन महमूद मूलत: उज्बेकिस्तान के नगर कुश (वर्तमान शहर ए सब्ज) के निवासी तथा
तुर्कों के लचिन कबीले से सम्बन्धित थे। इस कबीले का मूल स्थान मावरा उन नहर (ट्रॉक्स आक्सियाना के पास) का तकाश नामक कस्बा माना जाता है।
सुल्तान इल्तुतमिश ने इन्हें अपने राज्य में शरण तथा सम्भवतः पटियाली की जागीर दी खुसरो की माता एक भारतीय महिला (ब्रजवासी) तथा बल्बन के युद्ध मंत्री (आरिज ए ममालिक) इमाद उल मुल्क की पुत्री थी।
बल्बन के शासनकाल में अमीर खुसरो, अलाउद्दीन किश्ली खाँ (मलिक छज्जू) के दरबार में 1277 ई. में नौकर रहा। वह खुसरो का प्रथम आश्रयदाता था। तत्पश्चात् उसने बल्बन के छोटे पुत्र बुगरा खाँ के यहाँ नौकरी कर ली। किन्तु उसे लखनौती का वातावरण ज्यादा रास नहीं आया तथा वह दिल्ली लौट आया । खुसरो के साहित्यिक जीवन की शुरूआत बल्वन के ज्येष्ठ पुत्र शाहजदा मुहम्मद (खान ए शहीद) के संरक्षण में हुई जो खुसरो का सबसे अधिक दरियादिल आश्रयदाता रहा। वह पाँच वर्ष तक वह उसका 'नदीम' (मुहासिन) रहा।
उसने उसकी स्मृति में एक 'मरसिए (शोक गीत) की रचना की। कंकुबाद के शासनकाल में अमीर खुसरो ने अमीर अली सरजहाँदार जो 'हातिम खाँ 'के नाम से प्रसिद्ध था, के यहाँ नौकरी की।
तत्पश्चात् कैकुबाद ने खुसरो को प्रमुख दरबारियों में जगह दी खुसरो ने सुल्तान के अनुरोध पर अपनी प्रथम मसनवी 'किरान उस सादैन' की रचना सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी ने खुसरो को 'शाही कुरान के परिचारक' तथा 'मुसहफदार' अथवा 'किताबदार (पुस्तकालयाध्यक्ष) नियुक्त किया तथा उसका वेतन 1200 टंके निश्चित किया (तथा 'अमीर' व प्रमुख दरबारी राजकवि का ओहदा दिया) उसकी पदवी सुल्तानी महफिलों में
'मले कुल दमा' (नदीमों का बादशाह) की थी। न का सबसे उपर काल रहा। अलाउद्दी अलाउद्दीन खिलजी का शासनकाल खुसरो के जीवन का सबसे उबर काल रहा। अलाउद्दीन ने भी उसको 'राजकवि का पद दिया तथा उसका वेतन
1000 टंके वार्षिक निश्चित किया मुबारक खिलजी के दरबार में भी खुसरो को बड़ा सम्मान प्राप्त था। उसके राज्यकाल के विषय में भी उसने ' नुह सिपेहर 'कविता लिखी है।
गयासुद्दीन तुगलक के काल में खुसरो ने 'तुगलकनामा' की रचना की। वह सुल्तान के साथ बंगाल अभियान पर भी गया, किन्तु इसी बीच अमीर खुसरो के गुरु निजामुद्दीन औलिया की मृत्यु हो गई। उनके निधन के 6 माह के भीतर ही 1325 ई. में उसकी मृत्यु हो गई। उसे गियासुपुर स्थित शेख निजामुद्दीन औलिया की कब्र के पास हो दफना दिया गया। "
अमीर खुसरो एक प्रसिद्ध कवि, सूफी इतिहासकार एवं दार्शनिक थे खुसरो को अनेक भाषाओं का ज्ञान था जिनमें फारसी, तुर्की, संस्कृत व ब्रजभाषा (हिन्दवी) प्रमुख है। उन्होंने फारसी के बराबर ही ब्रजभाषा में 'बैट' (पंक्ति) का लेखन किया। एक सच्चा राष्ट्रप्रेमी होने नाते वे 'गुर्रतुल कमाल में गर्व से घोषित करते है "मैं एक भारतीय तुर्क हूँ तथा आपके प्रश्नों के जवाब हिन्दवी भाषा में दूंगा। मैं मिश्री (इजिप्टियन) मधुरता के साथ अरबी भाषा नहीं बोल सकता हूँ। मैं भारत का तोता हूँ अतः मुझसे हिन्दवी भाषा में बोलो ताकि मैं मधुरता से जवाब दे सकूं।'
अमीर खुसरो को 'तूती ए हिन्द (हिन्दुस्तानी शुक) कहा जाता है। 'जबान एहिन्दवी जिसे कालान्तर में उर्दू या रेखता भी कहा गया, में सर्वप्रथम रचना प्रस्तुत करने का श्रेय उसे ही जाता है। फारसी कविता का भारतीयकरण करने वाले प्रथम व्यक्ति खुसरो ही थे। उन्होंने फारसी की एक नवीन शैली 'सबक ए हिन्दी ' या ' भारत की शैली का सृजन किया।
अमीर खुसरो 8 वर्ष की आयु में हो शेख निजामुद्दीन औलिया के शार्गिद (शिष्य) बन गए और कहा जाता है कि शेख ने कम उम्र में ही उनके काव्य प्रेम को प्रोत्साहित किया।
शेख ओलिया खुसरो को अपने सबसे प्रतिभाशाली व प्रिय शिष्य के रूप में प्रेम करते थे, उन्होंने खुसरो को 'तुर्कल्लाह' (भगवान का तुर्क) की उपाधि से विभूषित किया। सुविज्ञ संगीतज्ञ होने के कारण खुसरो को 'नायक' की उपाधि से विभूषित किया गया।
अलाउद्दीन खिलजी के समय में 'नन्द गोपाल' (गोपाल नायक) अखिल भारतीय ख्याति के संगीतज्ञ थे। खुसरों ने आठ सुल्तानों का शासनकाल देखा था तथा वे स्वयं छः सुल्तानों के अन्तर्गत शाही सेवा से सम्बन्धित रहे थे। मंगोलों की कैद से बच निकलने के बाद वे बल्बन के राजदरबार से सम्बन्ध हो गए। तत्पश्चात् वे कैकुबाद, जलाउद्दीन खिलजी, अलाद्दीन खिलजी, मुबारक शाह तथा गयासुद्दीन तुगलक के अन्तर्गत शाही सेवा में रहे।
खुसरो की रचनाएँ- अमीर खुसरो ने अनेक पुस्तकों की रचनायें गद्य और पद्य में की थी तारीख ए फरिश्ता में अमीर खुसरों की लिखी पुस्तकों की संख्या 92 बताई है। बरनी ने लिखा है कि खुसरो ने गद्य और पद्य में एक पूरा पुस्तकालय लिख डाला था।
खुसरो की रचनाओं को दो भागों में बांटा जा सकता है-
(1) पद्यात्मक साहित्यिक रचनाएँ (2)गद्यात्मक साहित्यिक रचनाएँ-
पद्यात्मक साहित्यिक रचनाएँ
(1) पाँच दीवान (कविता संग्रह)-
(अ) तोहफतुस्सिगार
(ब) वस्त उल हयात
(स) गुर्रतुल कमाल - यह खुसरो के समस्त दीवानों में सबसे महत्त्वपूर्ण है। इसकी भूमिका में खुसरो ने अपनी संक्षिप्त जीवनी लिखी है। इसमें फारसी, अरबी तथा भारतीय पद्य रचना का विश्लेषण मिलता है। 1291 में सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी के विरूद्ध मलिक छज्जू के विद्रोह व उस पर विजय का विशद वर्णन प्रस्तुत करने वाली कविता 'मिफ्ताह उल
फुतूह 'इसी दीवान का हिस्सा है।
(द) बकिअए नकिया
(य) निहायत उल कमाल
(2) खम्सा- इनकी रचना खुसरो ने कवि निजामी के खम्से के अनुसरण में की थी। 1298 ई. से 1300 ई. के मध्य लिखित इन 5 रूमानी मसनवियों को खम्सा ए पंचगंज' कहा जाता है।
(क) मतल-उल-अनवार-
(ख) शिरीं-ओ-खुसरो-
(ग) मजनू-ओ लैला-
(घ) आइन ए सिकन्दरी-
(ड़) हश्त बहिश्त
(प) रसाला ए एजाज / एजाज ए खुसरवी इसे खुसरो ने बड़ी अलंकारिक भाषा में लिखा है पूरा ग्रन्थ 5 खण्डों में विभाजित है।
(पप) अफलज उल फवायद इसमें खुसरो ने अपने गुरु निजामुद्दीन औलिया के कथन संकलित किए है।
पद्यात्मक ऐतिहासक रचनाएं खुसरो ने पाँच मसनवियों की रचना की जो ऐतिहासिक दृष्टि से अति महत्त्व को है-
(1) किरान उस सादैन- सितम्बर-अक्टूबर 1289 ई. में रचित खुसरों की यह प्रथम ऐतिहासिक मसनवी है। इसमें अवध में सुल्तान कैकुबाद उसके पिता बुगरा खाँ (बंगाल गवर्नर) के बीच हुई भेंट का आँखों देखा विवरण है। इसमें दिल्ली नगर के वैभव, मुख्य भवन, किलौखरी के राजभवन का निर्माण, दरबारी ऐश्वर्य आदि का विस्तार से उल्लेख है। इसमें सरखेल, मलिक, खान जैसे सल्तनकालीन सैन्य वर्गीकरण व मुगल पद ' तुमान ' ( 10 हजार सैन्य संख्या) का उल्लेख भी मिलता है। इस रचना के द्वारा खुसरो ने मंगोलों के प्रति अपनी घृणा भी प्रकट की है।
(2) मिफ्ताह उल फुतूह इसकी रचना 20 जून 1291 को पूर्ण हुई। इसमें सुल्तान जलालुद्दीन खिलजी की उन विजयों का वर्णन है जो उसे सिंहासनारोहरण के प्रथम वर्ष में प्राप्त हुई। इसमें मलिक छज्जू के विद्रोह के दमन मंगोलों पर विजय तथा झाइन व रणथम्भौर पर चढ़ाई का उल्लेख विशेष रूप से किया गया है।
(3) आशिका (देवल रानी खिन खाँ) जनवरी 1316 में रचित इस दुखान्त मसनवी में अलाउद्दीन के ज्येष्ठ पुत्र खिज्र खाँ तथा गुजरात के राय करण की पुत्री देवल देवी के प्रेम कहानी का उल्लेख है। इसमें अलाउद्दीन की गुजरात व मालवा विजय का उल्लेख भी किया गया है। खुसरो की यह मसनवी फारसी साहित्य में अपना अनूठा योगदान रखती है। सम्पूर्ण रचना में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी है और खुसरो ने फारसी व हिन्दुस्तानी भाषा के शब्दों का बखूबी प्रयोग किया है। इसमें खुसरो कहता है कि "यदि मैं भारत की प्रशंसा करता हूँ तो मुझे पक्षपाती न समझा जाए।"
(4) नुह सिपेहर (नौ आकाश) इसकी रचना 1318 ई. में पूरी हुई तथा यह खुसरो की एकमात्र कृति है जो उन्होंने किसी के कहने पर नहीं बल्कि स्वप्रेरणा से लिखी। यह मुबारक खिलजी के शासनकाल की एक इतिहास पुस्तक ही नहीं है अपितु 'विशद् साहित्यिक मूल्य की अद्भूत काव्य कृति है जो भारतीय राष्ट्रवाद पर खुसरो की भावनाओं को व्यक्त करती है। इसमें भारत व इसके लोग उनका ज्ञान और शिक्षा, कला और विज्ञान, उसके पशु-पौधे एवं उन सभी चीजों, जो भारत को पृथ्वी पर स्वर्ग बनाती है, के बहुमूल्य विवरण है। इसमें तात्कालीन सामाजिक स्थिति का बड़ा हो जीवन्त चित्रण दृष्टिगोचर होता है। इस रचना में खुसरो भारत के लिए अपने अथाह प्रेम को व्यक्त करता है, अपनी मातृभूमि की प्रशंसा में गीत गाता है तथा विश्व के अन्य देशों पर भारत की श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए अपनी बुद्धि का प्रयोग करता है।
प्रथम सिपेहर- इसमें मुबारकशाह की प्रशंसा है तथा उसके देवगिरि आक्रमण का वर्णन है।
दूसरा सिपेहर इसमें मुबारकशाह द्वारा निर्मित भवनों का विवरण दिया है। खुसरो खाँ के वारंगल अभियान का सविस्तार उल्लेख है। इसमें खुसरो दिल्ली को बगदाद, काहिरा, खुरासान आदि नगरों से श्रेष्ठ बताता है।
तीसरा सिपेहर इसमें खुसरो ने भारत वर्ष की भूरि-भूरि प्रशंसा की है तथा उसे 'पृथ्वी का स्वर्ग' घोषित किया है। "हिन्दुस्तान स्वर्ग के समान है यहाँ की जलवायु खुरासान से कहीं अच्छी है। यहाँ के अमरूद और अंगूर की उपमा नहीं दी जा सकती। यहाँ पान के समान संसार में कोई अन्य वस्तु नहीं। ""
'खुसरो भारत की स्वर्ग समान मानने के सात तर्क देता है तथा भारतवासियों की श्रेष्ठता के दस कारण बताता है वह भारत को 'अंकपद्धति 'तथा 'शतरंज के आविष्कार का जन्मदाता बताता है। साथ ही शतरंज का पुराना नाम 'चतुरंग' बताता है। संस्कृत को वह ब्राह्मणों की भाषा बताता है। खुसरो यहाँ यह भी लिखता है कि "मैंने संस्कृत भाषा का ज्ञान प्राप्त किया।
चौथा सिपेहर इसमें खुसरो ने एक ऐसी सुबह का वर्णन किया है जबकि इकबाल (भाग्य) ने उससे, अपने मित्र को कुछ नसीहतें लिखने की प्रार्थना की। इसमें बादशाहों, मलिकों की स्वामी भक्ति लश्कर के लिए शिक्षा है।
पाँचवा सिपेहर -
छठा सिपेहर इसमें मुबारकशाह के पुत्र शाहजादा मुहम्मद के जन्म का हाल लिखा गया है।
सातवाँ सिपेहर इसमें नौरोज व बसन्त ऋतु का उल्लेख किया गया है।
आठवाँ सिपेहर इसमें चौगान (पोलो) के खेल का उल्लेख किया गया है।
नव सिपेहर इसमें खुसरो ने अपनी कविताओं के विषय में लिखा है।
(5) तुगलकनामा 1320 ई. में लिखित यह खुसरो की अन्तिम ऐतिहासिक मसनवी व अन्तिम रचना है। इसमें उसने ग्यासुद्दीन तुगलक को खुसरो खाँ पर विजय का उल्लेख किया है। यह गियासुद्दीन तुगलक के शासनकाल के इतिहास का बहुमूल्य प्राथमिक स्रोत है।
गद्यात्मक ऐतिहासिक रचनाएँ
(1) खजाइनुल फुतुह / तारीख ए अलाई ( (अलाउद्दीन की लड़ाइयों का इतिहास) - ऐतिहासिक रचनाओं में खुसरों को यह सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कृति है। इसमें अलाउद्दीन के शासनकाल की प्रथम 15 वर्षों (1296-1311 ई.) की विजयों व उपलब्धियों का चाटुकारिता पूर्ण विवरण है। इसमें उन्होंने अलाउद्दीन द्वारा गुजरात, चित्तौड़, मालवा तथा वारंगल की विजयों का उल्लेख किया है। इसमें काफूर के दक्कन अभियानों का आँखों देखा विवरण मिलता है। खुसरो स्वयं मलिक काफूर के साथ दक्कन में उपस्थित रहा। दक्कन के बाजारों का उल्लेख उसने विस्तार से किया है। मेहदी हुसैन ने तो इसे दक्कन अभियानों का 'राजकीय इतिहास तक कहा है तथा भौगोलिक और सैन्य विवरणों की दृष्टि से यह काफी समृद्ध है। इसमें भारत का बड़ा ही सुन्दर चित्रण है। साथ ही अलाउद्दीन के भवनों तथा प्रशासनिक सुधारों (आर्थिक सुधार, बाजार नियन्त्रण प्रणाली) का वर्णन मिलता है। अलाउद्दीन खिलजी के समय हुए मंगोल आक्रमणों का भी इसमें वर्णन विस्तार से मिलता है। इस रचना में खुसरों ने अलाउद्दीन के राजत्व का प्रतिपादन किया है। इसमें 'जौहर' का उल्लेख मिलता है जो फारसी साहित्य के प्रारम्भिक वर्णनों में से एक है। खुसरो ने तिथियाँ निकालने के लिए 'अवजद प्रणाली 'का उपयोग किया है जिसमें वर्णमाला के संख्यावाचक अंकों को जोड़कर तिथियाँ निकाली जाती है।
इन पुस्तकों के अतिरिक्त कुछ अन्य पुस्तकें भी अमीर खुसरों द्वारा लिखी हुई बताई जाती है। जैसे- 'किस्सा ए चहार दरवेश' (चार फकीरों की कहानियाँ), 'खलिक बारी' (यह फारसी - हिन्दी कोष हैं।) 'शाहनामाए खुसरवी' तथा 'इन्शा ए खुसरो' आदि।
मूल्यांकन- 'हिन्दवी' को लेखन का आधार बनाने वाले खुसरो को दिल्ली सल्तनत का 'प्रथम भारतीय कवि एवं इतिहासकार 'मानना तर्कसंगत प्रतीत होता है।
श्रोत :-तराईन से पानीपत ( पप्पू सिंह प्रजापत )
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