भीतरगॉव स्थित भारत के पहले नागर शैली का मंदिर /
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5th century Bhitargaon Temple:- image source wikipedia. |
आज के इस लेख में मैं आपको आज से 1570 वर्ष पहले लेकर जाएंगे, और बताएंगे आपका स्वर्ण युग कैसा था, क्यों था?
एक छोटी सी झांकी जिसमे आपसे रूबरू होगी कुछ ईंटे जो आपको ये स्वर्ण युग को बखान करेगी।
कानपुर के इतिहास कुछ जयदा पुराना नही है 1200ई के आस - पास कोहना (कानपुर) नाम से एक गाँव बसा था,कानपुर से 20 मिल की दूरी पर एक स्थल है जिसका नाम है "भीतरगांव" वहां पर एक Brick temple है भारत का सबसे बड़ा ,सबसे पुराना Brick temple
,भीतरगांव की कहानी यह है कि...
1877 में अलेक्जेंडर कनिंघम जो उस वक्त सर्वेयर जनरल थे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) का उंनको पता लगता है कि यहां से कुछ दूरी पर स्थित भीतरगांव में एक बहुत ही पुरानी इटो का मंदिर है, जैसे ही पता चलता है वो तुरंत वहां पर जाते है ,औऱ पाते है वहा एक बहुत ही सुंदर, खूबसूरत इमारत जो बिल्कुल जर्जर अवस्था मे वहां पर खड़ी है।
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भीतरगांव का मंदिर: भारत
के स्वर्ण युग का प्रतीक
वो तुरंत वहां खुदाई- शोध का कार्य करवाते है और उन्हें पता चलता है यहां से थोड़ी दूर पर एक झिझिनाक नाम के एक मंदिर है वहां पर भी जाते है वहां भी खुदाई करवाते है वहा से ईंट निकलवाते है ,उसपर कार्बनिक किया जाता है। वहा से कुछ इट लाकर यहां भीतरगांव मंदिर के पास रखवाते है।
1877 और 1878 दो बार एलेग्जेंडर कनिंघम यहां आते है।
इसके मरमत के लिए अपने वरिष्ठ अंग्रेज अधिकारीयों से गुहार करते है 2000 रुपये का बजट, 500 रुपये का बजट इसके लिए दिया जाय, गवर्मेंट ऑफ इंडिया रिलीज नही करती है उस समय।
भीतरगाँव के मंदिर ईंटो का बना पहला मंदिर है
1878 में कनिंघम साहब के Assistant Joseph Beglar ने खिंची थी। यह तस्वीर
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5th century Bhitargaon Temple:- image source wikipedia. |
कनिंघम साहब हतप्रभ होगये थे इस मंदिर को देख कर ,क्योकि उनके अनुमान के हिसाब से ये काफी पुराना मंदिर था। और बाद में मोहम्मद जाहिर ने इसपर काफी शोध (research) करके इस चीज को पूर्ण रूप से स्थापित किया है, कि 5वी सदी या उसके आस पास बना था यह मंदिर
अर्थात औसत तारीख 450 AD में बना था यह इटो का मंदिर, इसका मतलब है आज से 1570 साल पहले का है ये ईट जो आप देख रहे। Colosseum के 400 साल के बाद बना था जब बना था उस समय रोम का सम्राज्य का पतन हो चुका था। Hagia sophia इस्ताम्बुल में बनती है और अनुमानित हैं मोहम्मद साहब जो इश्लाम का पैगम्बर है वो इसी समय पैदा होते है
500 वर्ष के बाद तंजावुर का वृहदेश्वर मंदिर बनता है, 700 के बाद अंकोरवाट का मंदिर बनती है, कुतुबमीनार बनता है और इंग्लैंड में Westminster Abbey बनता है जहां प्रिमस विलियम की शादी हुई थी ।1200 वर्ष बाद दिल्ली का लाल किला बनता है और उसी समय ताज महल बनता है।
भीतरगांव का यह मंदिर अपने में, ये पूरे भारत की इतिहास को में दर्ज रखती है।
हिन्दू धर्म के मान्यताओं के अनुसासर पूजा पद्धति का आधार आध्यात्मिक था, हवन होते थे तथा प्राकृतिक पूजा अधिक होते थे, जिनमे सूर्य, इंद्र, मूभी का एवं पशुवों का ,पूजा पाठ ध्यान की विधि खुला खुला जगह में होता था, जहां पर आध्यात्मिक गतिविधियां होती थी। बाद में धीरे धीरे मंदिर बनने सुरु हुए ,और जो सुरुअति मंदिर बनी थी ज्यादातर , समतल छत वाले थे, (flat Roof) हुआ करते थे , बिहार के कैमूर स्थित मुंडेश्वरी मंदिर का छत समतल ही है (Flat Roof) वाला ही है जो पहली शताब्दी में बनी थी।
भीतरगांव का मंदिर इश्लिये भी महत्वपूर्ण हो जाती है, इश्लिये भी दीपचस्प है क्योकि यह पहला मंदिर है जिसके ऊपर शिखर देखने को मिलता है औऱ ये बना ईट का है। यह पहला मंदिर है जो नागर शैली में बनी है यही से नागर शैली की प्रकृति अस्तित्व में आई।
गंजेटिक प्लेन में जहाँ पत्थर आसानी से नही मिल सकती थी, क्ले आसानी से उपलब्ध थी वहां पर इटो से बनाये मंदिर काफी प्रचलित थी जो उनमें से ये पहला मंदिर है जो आज भी हमे इंटेक्ट मिलती है
उस समय 1877 से 78 में कनिंघम घूम रहे थे उन्होंने बताया है ये रेकॉर्ड है किया है कि काफी सारे इटो का ढेर मिला है इसका मतलब जगह जगह के ऊपर इटो का मंदिर थे।
और एक बड़ी दीपचस्प चीज है यह है क्योकि इट को संस्कृत में इस्टिका कहते है इस्टिका के रूट इक्षा से शुरू होती है एक ऐसी चीज जो आपकी इक्षा को परिपूर्ण करता है। मंदिरों से भवन से किसी भी प्रकार से जिसे आपकी शिर पर छत प्रदान करती हो इस्टिका का मंदिर बनाने के लिए कोई 5वी शताब्दी में प्रारम्भ हुआ/
और इसमें एक बड़ी दिलचस्प चीज ये है कि हर ईट अलग अलग साँचे से ढाला (mold) गया है अलग अलग ढंग से पकाया (beck) गया है हरेक ईट के ऊपर अलग अलग माफ है(Size) है हरेक ईट के ऊपर अलग अलग mold desigen या टेराकोटा का पैनल वो अलग से beck वो आज भी हम देखने को मिलता है बहुत बड़ी ईट भी है बहुत छोटी ईंट भी है ,जिस आधार पर यह मंदिर बना है उसका आकार लगभग 36 फुट चौड़ा और 47 फुट लंबा है, भूमि से ऊपर तक कि कुल लंबाई 68 फुट के आस पास है, मंदिर की दीवारों की चौड़ाई 8 फुट के है, जिस जर्जर अवस्था मे यह मंदिर मिलता है 1570 वर्षों से खड़ी है ,उसके बावजूद ये सब चीजें हमे देखने को मिल रही ।इसका मतलब है इस समय ईट बनाने की कला में निपुणता (perfect )हासिल कर ली गई थी। गुप्ता कला एवं संस्कृति उस समय का जो कला है जिस समय गुप्ता सम्राज्य अपने चरम पर था, कोई 320-650 AD तक चला औऱ उसमे जो कला एवं संस्कृति का विकाश हुआ उसका अपने सुनहरे दौर में था वो अपने आप मे original independent Indian Art है। यहां तक कि यह Art बाहर भी गई ,चीन के योगकोंग के गुफा देखते है तो वहां बुद्ध की मूर्ति वैसे ही बनी है जैसे बिल्कुल गुप्ता कला के दौरान बनती थी।
जावा में Bima Temple में आप जाएंगे तो पाएंगे कि चंडी अर्जुना और। चंडी बीमा करके दो मंदिर औऱ भी मंदिर है। जिनकी संरचना बिल्कुल वैसा ही है, जैसे भीतरगांव की मंदिर के है ,लेकिन जो जावा का Temple है वो बाद में बनी थी।
भीतरगांव के यह मंदिर धर्मनिर्पेक्ष सर्वधर्म सम्भाव का प्रतीक है/
जैसे आज हमारा समाज हिन्दू सिख जैन ईसाई बौद्ध तरह तरह के धर्म औऱ विचार में। भिन्न भिन्न मतों में बटा है और साथ हम रह रहे है उसी तरीके से उस वक्त हिन्दू समाज मे शैव समाज, वैष्णव समाज, शाक थे( शक्तिपीठ वाले) बौद्ध थे ,जैन थे ये सब साथ मे रह रहे है
भीतरगांव के मंदिर इश्लिये भी खास है क्योकि इसके मंदिर के दीवारों पर ,विष्णु भगवान है, शिव- पार्वती है ,गणेशजी जी है , कृष्ण है ,बलराम है और बुद्ध है, दुर्गा जी है ,गजलक्ष्मी जी है सब इसके ऊपर अंकित है, गुप्ता खुद वैष्णव थे फिर भी इन्होंने शैव को प्राथमिकता दी, बौद्ध को प्राथमिकता दि एक ही मंदिर के ऊपर गुप्ता गुप्ता सम्राज्य सर्व धर्म सम्भाव रखते थे ,इस समय जब सभी पंथ धर्मो के आराध्य देवो का एक ही मंदिर के ऊपर अंकित मिलते है ,तनिक भी संदेह नही है इस समय कितनी शांति एवं समृद्धि रही होगी धर्मनिरपेक्ष की उत्तम एवं सर्वोच्च काल यही गुप्ता काल ही था।
1905 के बाद भीतरगांव के इस मंदिर को दुबारा बनाया गया है वहां पड़ी ईंटों का उपयोग करके एवं पास के झिझिनाक में बचे जो इटो का अवशेष थे इसे वापस लाकर दुबारा बनाया गया है। इसमें कुल 28 खम्बे लगें हुए है कुछ में चित्रकारी है तो कुछ सादे है (Simple) है, मोहम्मद जाहिर ने अपने Research में कुल 183 टेराकोटा पैनल चिन्हित किये है ।जिनमे से 128 आज भी इस मंदिर में लगे हुए है, कुछ संग्रहालय में है तो बहुत कुछ चोरी हो गई ,
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Bhitargaon temple after reconstruction -image source :kanpurnagar |
दिलचस्प बात यह है कि यह एक निजी (Privet) मंदिर था यह कोई तीर्थस्थल नही था जहां तीर्थयात्री पूजा पाठ करने आते जाते थे, क्योकि यह निजी मंदिर था तो बाकियों से यह अक्षुण्य रहा ,समय बीतता गया धीरे धीरे यहां के पूजा पाठ आरती बन्द हो गई, तो काफी सारे पेड़ जंगली घास एवं तरह तरह के पौधों के कारण यह मंदिर लोगो मे नजर से ओझल होते गए ,लोगो ने इसे भूतिया मंदिर है कह कह कर खुद को इसे दूर रखा। नजर अंदाज करते रहे। इस मंदिर से सब दूर रहे, यही कारण है कि यह मंदिर बचा रह।
पर जैसे ही अलेक्जेंडर कनिंघम वहां पर पहुँचे और उन्होंने वहां सर्वे किया लोगो को पता चला यहां कुछ महत्वपूर्ण चीज है, धीरे धीरे यहां से वस्तुओं की चोरी होने लगी। इसके बावजूद भी काफी सारी चीजें बच गई है जो आज भी हमे वहां पर देखने को मिलती है।
भीतरगांव का यह मंदिर हमे बताता है, गुप्त काल में कला एवं संस्कृति अपने शिखर पर था/
अब आपको इस मंदिर के ऊपर लगे टेराकोटा पैनल्स के साथ अवगत कराते है।
दुर्गा, गजलक्ष्मी, गंगा, गणेश जिनके शिर पर मुकुट नही है ,कृष्ण जो कुश्ती कर रहे है, कृष्ण बलराम के साथ, शिव जी पार्वती के साथ, रावण को आम देते हुए सीता, वराह के अवतार, विष्णु भगवान मधु और कैटभ का वध करते हुए। गरुड़ पर विराजमान विष्णु, विष्णु भगवान शेषशय्या पर लेटे हुए, बुद्ध जिनके पैरों के संरचना तक देखे जा सकते है, मयूर , और भी अन्य देवी देवताओं तथा जीव जंतुओं की तश्वीर देखे जा सकते है, जीव जंतुओं के चमड़ी के लकीर तक देखे जा सकते है उसके धारी तक साफ दिखाई देता है।
भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग /Golden Age of Indian History
भीतरगांव का यह मंदिर हमारे स्वर्णिम इतिहास की झलक कैसे है ? हमारे स्वर्ण काल को कैसे परिभाषित करता है? और आखिर स्वर्णिम काल होता क्या है?
सब और शांति हो सब और समृद्धि हो, सहिष्णुता हो भाईचारा हो, कला एवं संस्कृति वृद्धि के अपने शिखर पर हो, सम्राज्य हर और से समृद्धि हो। और यही हो रहॉ था 320 से 650 ईसवी के मध्य हो रहा था ।
गुप्ता सम्राज्य में ये सब संभव इश्लिये था क्योकि वहां के राजा सर्वधर्म समभाव के विचार रखते थे ,गुप्ता स्वयं वैष्णव को मनाने वाले थे, लेकिन शैव, शाक्त ,जैन, बौद्ध, आदि सभी पंथों- धर्मो को अपने साम्राज्य में जगह दी। कला एवं संस्कृति दक्षिण एशिया को प्रभावित कर रहा था, अजंता इसी समय बनी थी।
जावा का जो दो मंदिर है उसका जो संरचना है उसकी जो प्रकृति है वो भीतरगांव की तरह ही है।
कहने का तातपर्य है ,भीतरगांव का यह मंदिर हमारे स्वर्ण युग की झांकी ही नही , हमारे स्वर्ण युग के साक्षी भी है ।
आज से लग्भग 1570 वर्ष पूर्व बनी भीतरगांव स्थित 5वी सदी के मंदिर उस समय गुप्ता सम्राज्य के स्वर्ण युग को बयान करती है यहाँ की हर एक ईंट पर शैव, वैष्णव, बौद्ध धर्म के आराध्य उत्कीर्ण है ।
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