इतिहासकार के रूप में कल्हण के कार्य की समीक्षा करें(Write Short note on Kalhana.)
परिचय :-
कल्हण
जन्म - परिहासपुर
वंश - लोहार वंश
प्रसिद्ध कृति - राजतरंगिणी
कल्हण के जीवन-वृत्त के सम्बन्ध में पर्याप्त प्रकाश नहीं पड़ता, परन्तु समकालीन उपलब्ध स्रोतों के आधार पर विद्वानों ने यह लिखा है कि कल्हण एक कश्मीरी ब्राह्मण थे तथा भार्गव कुल की सारस्वत शाखा से सम्बद्ध थे। श्री स्टीन महोदय के अनुसार उनके पिता चणपक (कंपक) महाराजा हर्षदेव (1068-1101) के यहाँ मन्त्री ( महामात्य) थे, हर्ष की मृत्यु के बाद वे अपने पद भार से स्वतः पृथक् हो गये थे और स्वयं भी 1135 ई० तक जीवित रह सके थे।
कल्हण की प्रसिद्धि उनकी पुस्तक 'राजतरंगिणी' है। कल्हण ने इसे 1148 ई० में लिखना आरम्भ किया और लगभग दो वर्षों में संध्याकर नन्दी) की पुस्तक पूरी होने के कुछ ही पहले ही पूरा कर लिया। वार्डर ने इसे भारत का सर्वाधिक प्रसिद्ध इतिहास कहा है।. इस ग्रन्थ में कश्मीर का इतिहास है, किन्तु इसमें किसी एक अथवा विशेष राजवंश का • उल्लेख नहीं है, अपितु अनेक राजवंशों का वर्णन हुआ है। इसमें प्राय: 8000 संस्कृत छन्द और 8 तरंग (सर्ग) हैं। इसका प्रामाणिक संस्करण, अनुवाद आरेल स्टीन द्वारा किया गया
कल्हण की राजतरंगिणी की विषय वस्तु क्या है What is the subject matter of Kalhana's Rajatarangini?
राजतरंगिणी को विषय-वस्तु सम्यक है। उसमें कश्मीर की उत्पत्ति पौराणिक मनु वैवस्वत की परम्परानुसार वर्णित है। पौराणिक शासकों के अन्तर मातृगुप्त एवं विक्रमादित्य द्वितीय, कुशाण, हूण, मौर्य, अशोक कार्कोटक शासन आदि का उसमें पूरा इतिहास वर्णित है इसी आधार पर कुछ विद्वान् उनको प्राचीन भारतीय इतिहासकार मानते हैं। परन्तु उनकी कवि-प्रतिभा और उनके साक्ष्यों में पौराणिकता का अवलोकन करने पर कुछ लोगों का कहना है कि वे केवल कवि ही थे, कभी भी उनको इतिहासकार नहीं कहा जा सकता। इसके लिये हमें उनके इतिहास दर्शन को समझना होगा और हम यह समझ पायेंगे कि वे कवि थे अथवा इतिहासकार ।
एक इतिहासकार के रूप में कल्हण का दृष्टिकोण Kalhana's perspective as a historian
कल्हण का दृष्टिकोण बहुत उदार था, माहेश्वर ( ब्राह्मण) होते हुए भी उसने बौद्ध दर्शन की उदात्त परंपराओं को सराहा और अन्य पाखंडियों को आड़े हाथ लिया चाहे शैव मत के हो या वैष्णव मत के, एक राष्ट्रवादी एवं सत्यनिष्ठ के नाते उसने अपने देशवासियों की बुराइयों पर से पर्दा हटाया। तथा एक सच्चे वेक्ति की तरह देश की सीमाओं से उठकर सत्य शिव और सुंदर का प्रतिपादन किया।
सम्पूर्ण प्राचीन भारतीय इतिहास में जो एक मात्र वैज्ञानिक इतिहास प्रस्तुत करने का प्रयत्न हुआ है वह है कल्हण की राजतरंगिणी । अपनी कुछ कमजोरियों के बावजूद कल्हण का दृष्टिकोण प्रायः: आज के इतिहासकार जैसा है ।पूर्वाग्रह से ऊपर उठकर कल्हण ने एक वैज्ञानिक एवं तार्किकता पूर्ण इतिहास लिखा है
कश्मीर का नाम ऋषि कश्यप के नाम पर बसाया गया था,कश्मीर के पहले राजा महर्षि कश्यप ही थे।
कश्मीर के राजवंश में
1.कार्कोट वंश (625-855 ईसवी)
2.उत्पल वंश (855-1003 ईसवी)
3.लोहार वंश (1003-1320 ईसवी)
0 टिप्पणियाँ
magadhIAS Always welcome your useful and effective suggestions