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विनोबा भावे का भूदान आंदोलन ,भूदान आंदोलन के प्रणेता एवं क्रांतिकारी आचार्य बिनोवा भावे। के बारे में ।

भूदान आन्दोलन के प्रणेता आचार्य विनोबा भावे Acharya Vinoba Bhave, the founder of Bhoodan movement

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pic credit : istampgallery



आचार्य विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर 1895 में। को महाराष्ट्र के कोलाबा जिले के गागोड गांव में हुआ था । प्रसिद्ध गांधीवादी विचारों से लबरेज भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं सामाजिक कार्यकर्ता  थे। 

आचार्य बिनोबा भावे को  भारत का राष्ट्रीय अध्यापक और महात्मा गांधी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी भी कहा जाता है।

• उनका मूल नाम विनायक नरहरी भावे था

• 1916 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के उद्घाटन में महात्मा गांधी के भाषण से प्रभावित तथा 7 जून 1916 को गांधी से अहमदाबाद के कोरचब आश्रम में मुलाकात 

• गांधी जी की सलाह पर वर्धा को कर्मस्थली बनाकर वहां पवनार आश्रम का संचालन किया

• 1923 में वर्धा से उन्होंने मराठी भाषा में एक मासिक 'महाराष्ट्र धर्म का प्रकाशन किया, जिसमें उपनिषदों पर उनके निबंध छापे गए थे।

• 1923 में नागपुर झण्डा सत्याग्रह किया 1937 में जीवन पर्यन्त पवनार आश्रम में रहे। 1940 में प्रथम व्याक्तिगत सत्याग्रही बने 17 अक्टुबर 1940 को पवनार से यह आन्दोलन प्रारम्भ हुआ

• भारत छोडों आन्दोलन से पूर्व महात्मा गांधी ने बिनोवा से परामर्श किया 1948 में सर्वोदय समाज की स्थापना तथा सर्वोदय आन्दोलन का नेतृत्व किया। 1959 महिलाओं के लिए ब्रहम विद्या मन्दिर की स्थापना की।

• 1975 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी द्वारा लगाये गये आपातकाल को अनुशासन पर्व की संज्ञा दी ,उहोंने गोहत्या पर कड़ा रूख अपनाया और इसके प्रतिबंधित होने तक उपवास करने की घोषणा की थी

• सजा के दौरान धुलिया जेल में कैदियों को गीता पर व्याख्यान दिया. आचार्य विनोबा भावे के द्वारा सन् 1951 में भूदान आंदोलन की शुरुआत की गई थी.  भूदान आंदोलन के लिए विनोबाभावे ने हजारों मीलों की पदयात्रा की थी और भू-दाताओं से जमीन दान करने की अपील की थी.

18 अप्रैल, 1951 को पोचमपल्ली गांव के हरिजनों ने विनोबाभावे जी से भेंट की, साथ ही उन्होने अपने जीवन यापन करने के लिए विनोबाभावे जी से 80 एकड़ भूमि उपलब्ध कराने का आग्रह किया.

● विनोबा भावे ने गांव के जमींदारों से हरिजनों के लिए अपनी जमीन दान करने और हरिजनों को बचाने की अपील की विनोबा भावे जी की अपील का असर रामचन्द्र रेड्डी नामक एक जमींदार पर हुआ, जिसने अपनी जमीन दान देने का प्रस्ताव रखा. यहीं से आचार्य विनोबाभावे का भूदान आंदोलन शुरू हो गया.

✓ यह आंदोलन 13 सालों तक चला. जिसमें विनोबा जी ने देश के कोने-कोने का भ्रमण किया.

 इस आंदोलन के तहत विनोबा भावे जी गरीबों के लिए 44 लाख एकड़ भूमि दान के रूप में हासिल करने में सफल हो सके. 

दान के रूप में प्राप्त जमीनों में से 13 लाख एकड़ जमीन उन किसानों को बांटी गई जो भूमिहीन थे.

● सामुदायिक नेतृत्व के लिए 1958 में अंतर्राष्ट्रीय रमन मेग्सेसे पुरस्कार पाने वाले वह पहले व्यक्ति थे. 

मृत्यु 1982 में संल्लेखना संथारा परम्परा के अनुसार

✓ 1983 में मरणोपरांत उनको देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया.

प्रमुख पुस्तकें- स्वराजशास्त्र, तीसरी शक्ति, भूदान यज्ञ, गीता प्रवचन, मधुकर, गीताई संत प्रसाद (सन्त तुकाराम के अभगों पर आधारित) आदि ।

20 भाषाओं के जानकार तथा देवनागरी को विश्व लिपि बनाने की इच्छा महात्मा गांधी व्यक्तित्व में हिमालय की शान्ति है, तो बंगाल क्रान्ति की धधक भी - विनोबा भावे


द्वितीय विश्व युद्ध और बिनोबा भावे। II World War and Binoba Bhave.


द्वितीय विश्व युद्ध के समय ब्रिटेन द्वारा भारत को जबरजस्ती युद्ध मे झोंका जा रहा था, इसके विरुद्ध एक सत्याग्रह 17 अक्टूबर 1940 को शुरू किया गया था,इसमें गांधी जी द्वारा बिनोबा भावे को प्रथम सत्याग्रही बनाया गया।

सत्याग्रह सुरु होने से पहले, बिनोबा भावे ने अपनी विचार अस्पष्ट करते हुए एक वक्तव्य जारी किया था उन्होंने कहा था

" 25 वर्ष पहले ईश्वर की दर्शन के कामना लेकर मैं अपना घर छोड़ था, आज तक मेरी जीवन जनता के शेवा में समर्पित रही इस दृढ़ विस्वाश के साथ इनकी सेवा भगवान को पाने का सर्वोत्तम तरीका है, मैं मानता हूं और मेरा अनुभव रहॉ है कि मैंने गरीबों की जो सेवा की है वह मेरी अपनी सेवा है,गरीबो की नही।"

आचार्य बिनोबा भावे का इतने महान विचार सत्यनिष्ठा विद्वानों की सूची में सुमार करता है


मार्क्स और बिनोबा भावे। Marx and Binoba Bhave.


भावे के ह्रदय में कार्लमार्क्स के विचारों का स्वागत था उसके समर्थक थे, 1951 में  के .पी मशरूवाला की पुस्तक गांधी और मार्क्स प्रकाशित हुई, 

कार्लमार्क्स के प्रति काफी सम्मान प्रदर्शित किया, कार्लमार्क्स ऐसे विचारक थे जिसके मन मे गरीबो के प्रति सच्ची सहानुभूति थी, हालकि मार्क्स के कुछ विचार बिनोबा भावे को के विचारों से मेल नही खाते थे।।  दोनो के विचार अलग थे।


देवनागरी को विश्व की लीपी Devanagari script of the world


20 से अधिक भाषाओं का ज्ञान रखने वाले आचार्य बिनोबा भावे। देवनागरी को विश्व की लीपी के रूप में देखना चाहते थे।  मैं नही कहता कि नागरीलिपी ही चले,बल्कि मैं चाहता हु की नागरीलिपि भी चले।

बिनोबा भावे के विचारों से प्रेरणा लेकर नागरी लीपी संगम की स्थापना की जो भारत के अंदर और भारत के बाहर देवनागरी को युपयोग और प्रसार के लिए। कार्य करती है।

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