बौद्ध धर्मानुसार नारी की स्थिति का वर्णन कीजिए।(Describe the condition of women according to Buddhism.)
हिन्दू धर्म काल में यद्यपि वैदिक युग में स्त्रियों की दशा सम्मानीय एवं सन्तोषजनक थी किन्तु, शनैः-शनैः उसमें गिरावट आती चली गई तथा महाकाव्य काल में स्त्रियों की दशा काफी हीन हो चुकी थी। अनेकों अन्यायपूर्ण एवं अनुचित सामाजिक निषेध उन पर लागू किए गए। किन्तु, बौद्ध काल में स्त्रियों की दशा में सुधार के प्रयास किए गए।
बौद्ध धर्म के सिद्धान्त महात्मा बुद्ध ने अपने परिनिर्वाण के समय भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों को समान रूप से कुछ उपदेश दिए जिन्हें बौद्ध धर्म के सिद्धान्तों के रूप में स्वीकार किया गया। ये सिद्धान्त अग्रलिखित हैं-चार स्मृति प्रस्थान, चार सम्यक् प्रधान, चार-ऋषिपाद, पाँच इन्द्रियाँ, पाँच बल, सात बोध्यंग एवं आष्टांगिक मार्ग। इस प्रकार चार आर्य-सत्य को छोड़कर बौद्ध धर्म में कुल 37 सिद्धान्त हैं जिनका अनुकरण करके स्त्री व पुरुष सफल जीवन व्यतीत कर निर्वाण की प्राप्ति कर सकते हैं।
स्त्रियों को निर्वाण प्राप्ति का अधिकार : Women have the right to attain Nirvana:
बुद्ध के अनुसार स्त्रियाँ भी मोक्ष प्राप्ति की अधिकारिणी है। बौद्ध धर्मानुसार 'एक स्त्री भिक्षुणी बनकर निर्वाण प्राप्ति हेतु साधना कर सकती है।' किन्तु व्यवहार में देखा जाए तो बौद्ध समाज में भी स्त्रियों को पुरुषों की अपेक्षा कम आदर प्राप्त था। एक भिक्षुणी, भिक्षु का सम्मान करने के लिए बाध्य थी, किन्तु भिक्षु के लिए ऐसा करना आवश्यक नहीं था।
गौतम बुद्ध स्त्रियों को धर्म में दीक्षित करके प्रसन्न नहीं थे। उनकी मान्यता थी कि संघ में स्त्रियों के प्रवेश से धर्म चिरस्थायी नहीं रह सकेगा। इसी तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए उन्होंने 'अष्टांगिक मार्ग' का प्रतिपादन किया जिसके आठ नियमों का परिपालन किया जाना भक्षुणियों के लिए परमावश्यक था। फिर भी कुल मिलाकर बौद्ध समाज में स्त्रियों की दशा सन्तोषजनक एवं सम्मानीय थी। स्वयं बुद्ध गृहस्थ कार्यों में व्यस्त स्त्रियों का आदर करते थे। कन्या के हाथ का भोजन खाने की भी कोई मनाही नहीं थी।
वैवाहिक स्थिति : marital status :
बौद्ध काल में भी सामान्यतया विवाह वयस्क अवस्था में ही किए जाते थे। धम्मपद टीका के अनुसार कन्या की विवाह योग्य आयु 16 वर्ष निर्धारित की गई थी। इस काल में भी सूत्रकाल के समान विवाह के आठ प्रकार प्रचलित थे जिनमें 'प्रजापत्य विवाह' को सर्वाधिक उपयुक्त माना गया था। इसमें विवाह का निर्णय माता-पिता के द्वारा ही लिया जाता था। यद्यपि रक्त संबंधी कट्टरताएँ अभी भी विद्यमान थीं, किन्तु उच्च वर्ण के पुरुष एवं निम्न वर्ण की स्त्री के मध्य विवाह निन्दनीय नहीं समझा जाता था। अपवादस्वरूप सगोत्र विवाह के भी कुछ उदाहरण मिलते हैं। इस काल में दहेज प्रथा भी प्रचलित थी।
बौद्ध धर्म के अनुसार नारी के कर्त्तव्य: Duties of Women According to Buddhism:
बौद्ध काल में वधुओं को विवाह के समय इस प्रकार की शिक्षाएँ दी जाती थीं— 'घर की बातें बाहर नहीं लें जानी चाहिए तथा बाहर के झगड़े घर में नहीं लाने चाहिए। सभी के साथ यथायोग्य व्यवहार करना चाहिए। पति, सास एवं श्वसुर को भोजन कराने के बाद ही भोजन ग्रहण करना चाहिए। इसके साथ ही परिवार के सभी सदस्यों के प्रति अपने समस्त कर्तव्यों को करने के बाद ही शयन करना चाहिए।
इसी प्रकार अंगुत्तर निकाय में एक सफल पत्नी के लिए निम्न गुण का होना आवश्यक बताया गया है: 'पति की आज्ञा में रहना तथा उसकी इच्छा का पालन करना चाहिए। पति के साथ मधुरता का व्यवहार एवं गुरुजनों के सम्मान में सम्मानीय व्यवहार करना चाहिए। पारिवारिक दायित्वों को पूर्ण करने की योग्यता होनी चाहिए। साथ ही परिवार के सदस्यों की आवश्यकता का पूर्ण ज्ञान होना चाहिए। मितव्ययिता का होना भी आवश्यक है।
दासी रूप में नारी बौद्ध साहित्य में अनेकों वर्णनों से विदित होता है कि कई स्त्रियाँ गृहकार्य के बोझ से त्रस्त होकर अपने पति से गृह कार्य हेतु दासी का प्रबन्ध करने का आग्रह करती हैं। दासियों को व्यापक रूप से घरेलू कार्य करने पड़ते थे। इन दासियों को हिंसा व शोषण भी सहना पड़ता था। स्पष्ट है कि दासियों का जीवन अत्यन्त कष्टप्रद था।
बौद्ध समाज में नारी शिक्षा : Women's education in Buddhist society:
बौद्ध काल में नारियों को शिक्षा प्राप्ति का अधिकार था। इस काल में कई विदुषी महिलाएँ हुई यथा भिक्षुणी खेमा, सुभद्रा, अमरा उदुम्बरा, भद्राकुण्ड केशा आदि। बौद्ध साहित्य से इनकी जानकारी प्राप्त होती है थेरीगाथा में बौद्ध भिक्षुणियों द्वारा रचित गीतों का संग्रह है। इसमें उनकी विद्वता एवं अन्तः संतुष्टि व्यक्त होती है।
बौद्ध कालीन वेश्याएँ भी सुशिक्षित एवं सुसंस्कृत थीं। उदाहरणार्थ वैशाली की प्रसिद्ध गणिका 'आम्रपाली' स्त्री रत्न थी। महात्मा बुद्ध ने भी उसे उपदेश दिए थे। मगध नरेश बिम्बिसार उससे अत्यधिक प्रभावित था।बौद्धधर्म ग्रन्थों से विदित होता है कि यद्यपि स्त्रियों की दशा में कुछ सुधार हुआ था, किन्तु पुरुषों की अपेक्षा उनकी स्थिति अभी भी हीन बनी हुई थी।
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