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श्रीलंका में राजनीतिक परिदृश्य तथा भारत और श्रीलंका का सम्बन्ध की विवेचना करें।(Discuss the political aspects and relations between India and Sri Lanka) in Sri Lanka.)

श्रीलंका  की राजनीतिक  व्यवस्था एवं प्रभाव का आज हम विश्लेषण करेंगे।Today we will analyze the political system and influence of Sri Lanka.


https://www.magadhias.com/2023/01/discuss-political-aspects-in-sri-lanka.html
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भारत और श्रीलंका का सम्बंध  त्रेतायुगीन है मधुर संबंध औऱ भारत का नर्म व्यवहार हमेसा दोनो देशों के सम्बंध प्रगाढ़ रहे है।

भारत से 36 मील लम्बे पाक जलडमरूमध्य (पाक स्ट्रेट) से जुड़ा 65,610 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल वाला द्वीप श्रीलंका (डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट रिपब्लिक ऑफ श्रीलंका) दुनिया के उन देशों में से एक है जिसकी सम्प्रभुता का इतिहास लगभग 2000 वर्ष पुराना है। भारत और श्रीलंका के मध्य संघर्ष और सहयोगात्मक का मिश्रित सम्बंधों वाला प्रारूप देखने को मिलता है।

श्रीलंका द्वारा कोलम्बो योजना के क्रियान्वयन और ब्रिटेन के साथ प्रतिरक्षा सम्बंधों की. स्थापना की व राष्ट्रमंडल की सदस्यता ग्रहण करने के साथ ही विदेश नीति का आरम्भ किया गया । श्रीलंका का आरम्भ में चीन की तरफ झुकाव ज्यादा रहा और उसने अमेरिकी प्रतिक्रिया की अवहेलना करते हुए विभिन्न नवोदित एशियाई राष्ट्रों के साथ द्विपक्षीय सम्बंधों की स्थापना का प्रयास किया। इसके साथ ही उसने भारत के नेतृत्व वाले गुटनिरपेक्ष आंदोलनों में भी भाग लिया। इस दौर में उसके भारत के साथ सम्बंध स्पष्ट और सकारात्मक रहे लेकिन कुछ मामलों को लेकर दोनों के मध्य अलगाववाद की स्थिति बनी रही। 

यह स्थिति श्रीलंका सरकार द्वारा उठाए गये कुछ कदमों का परिणाम था। जैसे— श्रीलंका का ब्रिटेन के साथ सैनिक गठबंधन: श्रीलंका द्वारा त्रिकोमाली का नौसैनिक अड्डा और कटुनायके का हाई हड्डा अंग्रेजों के नियंत्रण में रखने का निर्णय; भारत के खिलाफ अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए पाकिस्तान व चीन के साथ सम्बंधों की स्थापना 1951 में जापान के साथ शान्ति संधि पर हस्ताक्षर करने हेतु सैन फ्रैंसिस्को सम्मेलन में भाग लेना; 1954 में एशिया के प्रधानमंत्रियों के सम्मेलन में साम्यवाद को लेकर कोटलेला नेहरू से मतभेद और 1955 के बाग सम्मेलन में 'सोवियत उपनिवेशवाद' को लेकर श्रीलंका का भारत विरोधी दृष्टिकोण। श्रीलंका की इन विवादास्पद नीतियों के बाद भी कुछ विषयों पर दोनों में समानता बनी रही जो सम्बंधों को बेहतर बनाने में काम आती रही, खासकर भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति का समर्थन, प्रवासियों की समस्या को लेकर नेहरू-कोटलेवाला के बीच समझौता (1954) और पश्चिम के झुकाव के बावजूद भी भारत के विरोध को देखते हुए सीटो जैसे सैनिक गठबंधन की सदस्यता न स्वीकार करना ।

श्रीलंका भारत का राजनीतिक सम्बन्ध  Sri Lanka India Political Relations


एस. डब्ल्यू. आर. डी. भंडारनायके  (S. W. R. D. Bandaranaike) द्वारा सत्ता पर अधिकार करने के बाद श्रीलंका-ब्रिटेन समझौता निरस्त हो गया जिससे श्रीलंका की विदेश नीति उदारवादी विचारधारा पर आश्रित- हो गयी। इसलिए इसके बाद (अर्थात भण्डारनायके और श्रीमती भंडारनायके के काल में) श्रीलंका के भारत के साथ बेहतर सम्बंध बने जिसके निम्नलिखित कारण रहे नयी सरकार द्वारा ब्रिटेन से त्रिकोमाली नौसैनिक अड्डे और कटुनायके हवाई अड्डे को छोड़ने के लिए कहा जाना; विदेश नीति में गुटनिरपेक्षता को विशेष महत्व; विश्व राजनीति में भारत के समान दृष्टिकोण जैसे हंगरी तथा स्वेज समस्या द्विपक्षीय विवादों को सहानुभूतिपूर्ण ढंग से निपटाना और अंततः तिब्बत के मामले पर दोनों का समान दृष्टिकोण। लेकिन 1962 में भारत-चीन युद्ध को लेकर श्रीलंका के साथ संबंधों में तरक्की आयी क्योंकि श्रीमती भण्डारनायके के कार्यकाल में श्रीलंका के चीन के साथ संबंध ज्यादा मधुर हो गये थे। श्रीलंका ने इस युद्ध के दौरान चीन को आक्रामक घोषित नहीं किया और चीन द्वारा किए गये एकतरफा युद्ध विराम की घोषणा का स्वागत किया था। इस समस्या का एक पहलू यह भी था कि भारत-चीन विवाद हेतु श्रीलंका ने छः गुटनिरपेक्ष देशों का सम्मेलन भी बुलाया था और सिफारिशें भी महत्वपूर्ण थीं लेकिन चीन के अहसहयोगात्मक रवैये के कारण इन्हें लागू नहीं किया जा सका। इसके बाद 1965 से 70 और 1970 से 1977 के मध्य संबंधों में फिर से मधुरता देखी गयी। इस दौरान दोनों देशों ने हिन्द महासागर को शान्ति क्षेत्र घोषित कराने में संयुक्त राष्ट्र में मिलकर कार्य किया (1971) और भारत द्वारा सरकार विरोधी गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए श्रीलंका में अपनी सेनाएं भेजीं। 


1974 में भारत ने श्रीलंका द्वारा भारत-पाकिस्तान युद्ध में पूर्ण तटस्थता बनाए रखने के बावजूद भी उसके साथ उदारता का परिचय दिया और कच्छातित का टापू श्रीलंका को सौंप दिया। लेकिन जयवर्द्धने (1977- 87) तथा प्रेमदासा सरकार (1988-95) के समय मुख्य मुद्दा तमिल प्रवासियों की समस्या का रहा जिससे दोनों देशों के मध्य अमैत्रीपूर्ण संबंध रहे। 1981 और 1983 के तमिल-सिंहली दंगों ने 1958 तथा 1977 की पुरावृत्ति ही नहीं की बल्कि उसके घोर निराशावादी रूप को प्रकट किया। लेकिन 21 जुलाई को इस स्थिति पर नियंत्रण पाने हेतु प्रधानमंत्री राजीव गाँधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जयवर्द्धने के बीच समझौता हुआ। इन दंगों में लगभग 6000 लोगों की जानें जाने के बाद हुए इस समझौते का उद्देश्य जातीय संघर्ष को समाप्त करना, शांति तथा राष्ट्रीय सहमति कायम करना तथा द्विपक्षीय संबंधों के क्षेत्र में नवीन युग की शुरूआत करना था । इस समझौते के प्रमुख चार तात्कालिक उद्देश्य थे— अगले 14 घंटों के अंदर तमिल उग्रवादियों तथा सरकारी सैनिकों के मध्य संघर्ष समाप्त करना, 72 घंटे के भीतर तमिलों द्वारा हथियार समर्पित करना, सैनिकों को अपनी बैरकों में वापस लौटाना तथा तमिल एवं तमिल बहुल उत्तरी प्रांतों का विलय करना । इसके साथ ही इस समझौते में कुछ शर्तों को शामिल किया गया था, जिसमें प्रमुख थीं- तमिल बहुल उत्तरी व पूर्वी प्रांतों का विलय और यह जानने के लिए कि पूर्वी प्रांत के लोग दोनों प्रांतों का विलय चाहते हैं या नहीं, यह ज्ञात करने के लिए 1988 में जनमत संग्रह कराना। युद्ध विराम को भारत और श्रीलंका की संयुक्त सेना लागू कराएगी, 


श्रीलंका भारतीय हितों के विरुद्ध किसी तीसरे देश को पूर्वी त्रिंकोमाली अथवा अन्य किसी बन्दरगाह का सैनिक प्रयोग नहीं करने देगा, भारत द्वारा यह आश्वासन कि वह उन श्रीलंकाइयों को उसे सौंप देगा जो भारत की धरती से विघटन, अलगाव तथा आतंक की मुहिम चलाते पाये जाएंगे..... आदि । इस समझौते के अनुसार तमिल क्षेत्रों में ईलम पीपुल्स रिवोल्यूशनरी लिबरेशन फ्रंट (ईपीआरएलएफ) के नेतृत्व में क्षेत्रीय परिषद के अधीन कुछ अंशों में क्षेत्रीय स्वायत्तता के साथ शांति की स्थापना होनी थी और तमिल आतंकवादी समूहों को हथियार डालने थे। इसके बाद भारत ने शान्ति बल (आईपीकेएफ) को श्रीलंका भेजा जिसका कार्य निशस्त्रीकरण को लागू करना और क्षेत्रीय परिषद पर नजर रखना था । यहाँ तक इस समझौते को, जो दोनों देशों के बीच हस्ताक्षरित हुआ था, कई तमिल आतंकी समूहों ने स्वीकार किया परंतु लिबरेशन ऑफ टाइगर्स तमिल ईलम (लिट्टे) ने इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि वे उन सदस्यों का विरोध कर रहे थे जो अन्य ईलम पीपुल्स ऑफ रिवोल्यूशनरी लिबरेशन फ्रंट नाम के आतंकी समूह से जुड़े थे। अंतत: लिट्टे ने आईपीकेएफ को अपने हथियार सौंपने से इनकार कर दिया। 


श्रीलंकाइयों ने आईपीकेएफ का विरोध और नव निर्वाचित राष्ट्रपति रानासिंघे प्रेमदासा ने मांग की कि भारत इसे वापस बुला ले। मई 21, 1992 को राजीव गाँधी की हत्या कर दी गयी जिसमें लिट्टे का हाथ था । परिणाम यह हुआ कि भारत ने लिट्टे को 1992 में आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया। 1994 से 1999 के मध्य भारत और श्रीलंका के बीच सम्बंधों में मिठास आयी। 1994 में श्रीलंका के विदेश मंत्री तथा 1995 में श्रीलंका की राष्ट्रपति चंद्रिका कुमारतुंगा की भारत यात्रा से दोनों देशों के मध्य नयी गतिशीलता का एहसास आया। नेशनल फ्रंट सरकार की पड़ोसियों के प्रति नीतियों, विशेषकर 'गुजराल सिद्धांत' के द्वारा दोनों देशों के सम्बंधों में व्यापक सुधार हुआ और बाजपेयी सरकार के आने के बाद भी वही नीतियां जारी रहीं। 


1998 में श्रीमती कुमारतुंगा की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों ने 'मुक्त व्यापार' व्यवस्था को बढ़ाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिससे द्विपक्षीय आर्थिक सम्बंधों को मजबूती मिली। यह समझौता 1 मार्च 1999 से लागू हुआ जिसमें यह तय हुआ कि अगले तीन वर्ष में भारत और अगले 8 वर्ष में श्रीलंका देनों देशों के मध्य व्यापारिक वस्तुओं की नकारात्मक सूची को समाप्त कर देगा। 

भारत श्रीलंका से आयात होने वाली 1000 वस्तुओं को मुक्त कर देगा और श्रीलंका भारत से आने वाली 900 वस्तुओं को । इसके अतिरिक्त भारत 400 अन्य वस्तुओं पर तथा श्रीलंका 600 अन्य वस्तुओं पर 50 प्रतिशत की कर रियायत देगा। इससे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार की वृद्धि की संभावनाएँ थीं और यह कदम दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार क्षेत्र के विकास में सहायक होगा। इस सबसे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह थी कि श्रीमती कुमारतुंगा की यह यात्रा पोखरण-II के बाद हुयी थी इसलिए यह कहा जा सकता है कि श्रीलंका ने भारत की सुरक्षा सम्बंधित पहल को स्वीकार किया था।





images source;  needpix.com 






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