गुटनिरपेक्षता नीति: उत्पत्ति, व्याख्या, और विशेषता का अन्वेषण Non-Alignment Policy An Exploration of Origin, Interpretation, and Characteristics"
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अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में गुटनिरपेक्षता की नीति का उदय द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात् हुआ। वर्तमान में यह विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय एवं महत्त्वपूर्ण अवधारणा है जिसमें विश्व के लगभग 2/3 राज्य सम्मिलित हैं। एक लोकप्रिय अवधारणा होने के बावजूद इस शब्द की अलग-अलग ढंग से व्याख्या की जाती रही है। पश्चिमी विद्वानों द्वारा इसकी व्याख्या 'तटस्थतावाद' (Neutralism) के आधार पर की गई।
जॉर्ज श्वार्जनबर्गर (George Schwarzenberge) द्वारा गुट निरपेक्षता के लिये निम्नलिखित छ शब्दों का उल्लेख किया गया है—तटस्थता, तटस्थीकरण (Neutralisation),गैर-वचनवद्धता(Non-commitment). अलगाववाद (Isolationalism), एकपक्षतावाद (Unilateralism) एवं निर्लिप्तता (Non Involvement) किन्तु इनमें से कोई भी शब्द गुट निरपेक्षता की सम्पूर्ण एवं उचित परिभाषा के उपयुक्त नहीं है।
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गुट निरपेक्षता का अर्थ एक ऐसी विदेश नीति से है जिसमें शीत युद्ध एवं सैनिक सन्धियों से पृथक् रहते हुए भी अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में राष्ट्रीय हितों तथा अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा की दृष्टि से सक्रिय भागेदारी होती है। 'गुट निरपेक्ष' शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 'जॉर्ज लिस्का' ने किया तथा इस नीति को सर्वप्रथम व्यवहारिक रूप देने का श्रेय भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को प्राप्त है।
विभिन्न विद्वानों द्वारा गुट निरपेक्षता की परिभाषा अग्रलिखित रूपों में की गई है— पं. नेहरू के शब्दों में, "गुट निरपेक्षता से तात्पर्य है एक राष्ट्र द्वारा सैनिक गुटों से अपने आपको अलग रखने का प्रयत्न । इसका अर्थ है जहाँ तक सम्भव हो समस्याओं को सैन्य दृष्टिकोण से न देखना । यद्यपि कभी-कभी ऐसा करना भी पड़ता है किन्तु हमारा स्वतंत्र दृष्टिकोण होना चाहिये तथा समस्त देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध होने चाहिये।
श्री एम. एस. राजन का कथन है, "विशेषतया तथा नकारात्मक रूप से गुट निरपेक्षता
का अर्थ है सैनिक या राजनीतिक गठबंधनों की अस्वीकृति। सकारात्मक रूप से इसका अर्थ
है अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं पर, जब भी वे समक्ष आयें, गुण-दोष के आधार पर तदर्थ निर्णय
लेना।"
उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि गुट निरपेक्षता की नीति विभिन्न गुटों से तटस्थ रहते हुए भी राष्ट्रीय हित के अनुसार स्वतंत्र रूप से न्याय पक्ष का समर्थन करती है। यह एक ऐसी व्यवहारिक नीति है जो विश्व शान्ति तथा सह-अस्तित्व के सिद्धांत में विश्वास रखती है। यह स्वहित के लिये किसी भी गुट में सम्मिलित होने का समर्थन नहीं करती है। गुटनिरपेक्ष नीति से अभिप्राय है किसी भी देश के साथ सैनिक गुटबंदी में सम्मिलित न होना 1 हर प्रकार की आक्रामक सन्धि से दूर रहना, शीत युद्ध से स्वयं को पृथक् रखना तथा राष्ट्र हित को ध्यान में रखते हुए न्यायोचित पक्ष में अपनी विदेश नीति का संचालन करना ।
गुट निरपेक्षता की विशेषतायें (Feature of Non-Alignment)
गुट निरपेक्षता के स्वरूप को इसकी विशेषताओं के आधार पर समझा जा सकता है जो कि निम्नलिखित हैं
1. सैनिक / सुरक्षा सन्धियों का विरोध (Opposition to Military / Security Al liances)
गुट निरपेक्षता की नीति प्रत्येक प्रकार की सैनिक सुरक्षा सन्धियों का विरोध करती है क्योंकि इस प्रकार की सन्धियाँ तनाव उत्पत्ति का ही कारण होती हैं। गुट निरपेक्षता की नीति के समर्थक इन सन्धियों को विश्व शान्ति के लिये खतरा मानते हैं तथा इसी आधार पर नाटो, सीटो तथा वारसा पैक्ट आदि सन्धियों का विरोध करते हैं। गुटनिरपेक्षता गठबंधनों को अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण में भय, शंका तथा अविश्वास उत्पत्ति का कारण तथा युद्ध, साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का साधन मानती है। इस प्रकार गुट निरपेक्षता की नीति की एक प्रमुख विशेषता है गुटबन्दियों एवं सैनिक सुरक्षा सन्धियों से दूर रहना पं. नेहरू के शब्दों में " जब हम यह कहते है कि हम गुट निरपेक्ष नित्ति पर चलते है तो स्पष्टतया इसका अर्थ है सैनिक गुटों से निरपेक्षता"
History of Europe and Modern World ( 1919-2000)
में, "जब हम यह कहते हैं कि हम गुट निरपेक्ष नीति पर चलते हैं तो स्पष्टतया इसका अर्थ
है सैनिक गुटों से निरपेक्षता ।"
2. पंचशील सिद्धांत गुट निरपेक्षता की आधारशिला (Panchsheel is the basis on Non-Alignment )
सन् 1961 में गुट निरपेक्षता की नीति के तीन कर्णधारों पं.नेहरू, नासिर तथा मार्शल टीटो ने इसके पाँच आधार स्वीकार किये/
(1) सदस्य देश स्वतंत्र नीति पर चलता हो ।
(2) सदस्य देश उपनिवेशवाद का विरोध करता हो।
(3) सदस्य देश किसी सैनिक गुट का सदस्य न हो।
(4) सदस्य देश ने किसी बड़ी शक्ति के साथ द्विपक्षीय समझौता न किया हो।
(5) सदस्य देश ने किसी बड़ी शक्ति को अपने क्षेत्र में सैनिक अड्डा बनाने की स्वीकृति नदी हो।
गुट निरपेक्षता की जो बुनियाद भारत ने 1946-47 में रखी थी वह समय के साथ और भी मजबूत बन चुकी है। पं. नेहरू के ये शब्द आज भी इस नीति के सन्दर्भ में सजीव हैं— 'जहाँ स्वतंत्रता के लिये खतरा उपस्थित हो, न्याय को धमकी दी जाती हो अथवा जहाँ आक्रमण होता हो वहाँ न तो हम तटस्थ रह सकते हैं और न ही तटस्थ रहेंगे ।
3. शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप (Peaceful Co-existence and Non Tinterference)
गुट निरपेक्षता की नीति यह स्वीकार करती है कि शीत युद्ध व युद्ध को तैयारी द्वारा शान्ति कायम करने के प्रयत्न अनुचित तथा हानिकारक हैं तथा इन्हें शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व तथा अहस्तक्षेप के सिद्धांत में परिवर्तित कर देना चाहिये । पृथक्-पृथक् राजनीतिक व्यवस्थाओं वाले देश शान्तिपूर्वक एक साथ रह सकते हैं एवं सहयोग कर सकते हैं तथा परस्पर लाभों के लिये विश्व शान्ति व समृद्धि के लिये कार्य कर सकते हैं।
पं. नेहरू ने भी शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं अहस्तक्षेप की नीति का समर्थन करते हुए कहा था कि, "भारत को उन समूहों की शक्ति राजनीति से दूर रहना चाहिये जो एक-दूसरे के विरुद्ध पक्तिवद्ध हुए खड़े हैं, जिनके कारण भूतकाल में दो विश्वयुद्ध हुए तथा जो पुनः इससे भी अधिक व्यापक स्तर पर तबाही की ओर ले जा सकती है।
4. राष्ट्रीय हित प्राप्ति का साधन (Means to Achieve National Interest)
प्रत्येक देश की विदेश नीति का लक्ष्य राष्ट्रीय हितों की प्राप्ति होता है। इस लक्ष्य प्राप्ति के साधन भिन्न-भिन्न हो सकते हैं। इस सन्दर्भ में गुट निरपेक्ष राष्ट्रों द्वारा स्वतंत्र विदेश नीति . का पालन किया जाता है। इन राष्ट्रों की मान्यता है कि राष्ट्रीय हितों की प्राप्ति के लिये विदेशी सम्बन्धों में कार्य की स्वतंत्रता आवश्यक है और यह स्वतंत्रता गुट निरपेक्षता के माध्यम से ही सम्भव है। इसी आधार पर यह नीति साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद का विरोध करती है। ।
5. शक्ति- राजनीति विरोधी अवधारणा (Concpet against to Power Poli tics)
गुट निरपेक्षता की अवधारणा के अनुसार सभी राष्ट्रों को शक्तिशाली होने का अधिकार है किन्तु केवल अपने राष्ट्रीय हित की पूर्ति के लिये। यह शक्ति के आधार पर स्थानीय, क्षेत्रीय, महाद्वीपीय एवं विश्वव्यापी प्रभुत्व स्थापना का विरोध करती है। यह अवधारणा शक्ति - राजनीति को अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा का उल्लंघन मानतीहै।
6. स्वतंत्र विदेश नीति का समर्थन (Support for Independent Foreign Policy)
गुट निरपेक्षता की नीति का प्रादुर्भाव नवीन राज्यों द्वारा महाशक्तियों एवं विकसित देशों के सम्भावित दबावों से अपनी विदेश नीतियों को स्वतंत्र रखने की इच्छा के कारण किया गया। गुटबंदी में स्वतंत्रता सीमित हो जाती है जबकि गुट निरपेक्षता कार्य की स्वतंत्रता का साधन होती है। गुट निरपेक्षता से तात्पर्य है 'स्वतंत्र विदेश नीति'। इस स्वतंत्रता के आधार पर ही गुट निरपेक्ष राष्ट्र प्रत्येक मामले का निष्पक्ष मूल्यांकन कर सकते हैं।
7. शीत युद्ध का विरोध (Opposition of Cold War)
जिस समय गुट निरपेक्षता का प्रादुर्भाव हुआ, अमेरिका व सोवियत संघ के मध्य शीत युद्ध तीव्रता पर था। युद्ध के पश्चात् की यह तनावपूर्ण शान्ति विश्व को पुनः युद्ध की ओर अग्रसर कर रही थी। दोनों महाशक्तियों ने नवोदित राष्ट्रों को अपने-अपने पक्ष में करने का प्रयत्न किया। नवोदित सम्प्रभु राष्ट्रों ने शीत युद्ध से दूर रहने के लिये गुट निरपेक्षता की नीति को अपनाया ।
8. क्रियाशीलता की नीति (Policy of Action)
कई बार गुट निरपेक्षता का अर्थ अलगाववाद अथवा अक्रियाशीलता से लिया जाता है। किन्तु यह विचार भ्रामक है। वस्तुतः गुट निरपेक्षता की नीति अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में पूर्ण भागेदारी एवं उत्तरदायित्व का समर्थक है। इसका अर्थ अन्तर्राष्ट्रीय मामलों व समस्याओं पर स्वतंत्रतापूर्वक विचार प्रकट करना एवं अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति व सुरक्षा में पूर्ण सहयोग प्रदान करना है।
9. विकास हेतु आपसी सहयोग की नीति (Policy of Co-operation for devel (opment)
गुट निरपेक्षता की नीति राष्ट्रों के मध्य शान्ति एवं सहयोग स्थापना का प्रयास करती है । इस नीति के समर्थकों की मान्यता है कि युद्ध अनिवार्य नहीं है इसे टाला जा सकता है।
गुट निरपेक्षता की प्रासंगिकता — गुट निरपेक्षता पर आधारित विदेश नीतियों तथा स्वयं गुट निरपेक्ष आंदोलन (NAM) का विकास शीत युद्ध के संदर्भ में हुआ था। यह आंदोलन प्रारंभ में मूल रूप से राजनीतिक प्रकृति का था। आगे चलकर इसने आर्थिक समस्याओं पर भी ध्यान देना आरंभ किया और फिर वे ही उसके प्रमुख विचारार्थ विषय बन गए। जब तनाव शैथिल्य आरंभ हुआ तब गुट निरपेक्षता की उपयोगिता कम होने लगी। परंतु नए तनाव उत्पन्न होने के साथ और नव शीतयुद्ध के आरंभ होने पर गुट निरपेक्षता की अवधारणा पुनः गोर्बाचोव 1985 में सोवियत संघ के सर्वोच्च नेता के रूप में उभरे और उन्होंने शीघ्र राजनीति और सामाजिक व्यवस्था में ग्लास्नोस्ट एवं पैरोस्ट्रोइका नामक सुधार आरंभ किए। उसके साथ ही शीत युद्ध में पुनः शिथिलता आने लगी। साथ ही सोवियत संघ तथा उसकी संधि व्यवस्था का विघटन आरंभ हो गया। जब महाशक्तियों के बीच विविध अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रों "पर अधिकाधिक सहमति होने लगी तब गुट निरपेक्षता की संगति में कमी आने लगी।
जब शीत युद्ध समाप्त हुआ तब एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न उजागर हो गया। प्रश्न यह कि उत्तर- शीतयुद्ध काल में गुट निरपेक्षता की क्या प्रासंगिकता है। जब गुट निरपेक्ष का आधार अर्थात शक्ति गुट द्विध्रुवीकरण एवं शीतयुद्ध ही समाप्त हो गया तो फिर गुट निरपेक्षता और विशेषकर गुट निरपेक्ष आंदोलन को स्वाभाविक रूप से समाप्त हो जाना चाहिए। परंतु 20वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में भी गुट निरपेक्ष देशों के नेतागण यह विश्वास कर रहे थे कि गुटनिरपेक्षता की उपयोगिता और प्रासंगिकता कम नहीं हुई है।
उपरोक्त समीक्षा के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि गुट निरपेक्षता की राजनीतिक प्रासंगिकता चाहे अवश्य समाप्त हो गई है फिर भी आर्थिक न्याय की प्राप्ति के लिए प्रयास करने का प्रमुख साधन आज भी गुट निरपेक्षता है। एक आर्थिक आंदोलन के रूप में गुट निरपेक्षता का भविष्य निश्चित रूप से उज्जवल है। तृतीय विश्व के आंदोलन का ध्यान राजनीतिक पक्ष से हटकर आर्थिक पक्ष पर केन्द्रित हो गया है।
जब तक आर्थिक समृद्धि और दरिद्रता के आधार पर उत्तर और दक्षिण में विश्व विभाजित रहेगा तब तक आर्थिक न्याय की तलाश जारी रहेगी और गुट निरपेक्षता की आर्थिक प्रासंगिकता बनी रहेगी । गुट निरपेक्ष देशों के नेताओं को अपनी दृष्टिकोण और विचार में परिवर्तन करना होगा। उन्हें शीत युद्ध से मुक्त विश्व में गुट निरपेक्ष आंदोलन की राजनीतिक भूमिका में परिवर्तन करना होगा । साथ ही जब तक न्याय, समता और समानतम पर आधारित नई अर्थव्यवस्था स्थापित नहीं हो जाती तब तक विकासशील देशों की शिकायतों को में गुट निरपेक्षता अवश्य उपयोगी बनी रहेगी। दूर करवाने के साधन के रूप/ गुट निरपेक्षता का औचित्य जितना आज है कल भी बनी रहेगी। आज की अन्तर्राष्ट्रीय स्थिति में इस आंदोलन पर महत्त्वपूर्ण जिम्मेवारी आ गई है।
यद्यपि आज उपनिवेशवाद समाप्त हो गया है परंतु अमीर और गरीब राष्ट्र की खाई और अधिक बढ़ गई है। आज गुट निरपेक्ष आंदोलन निर्धन और पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर जोर दे रहा है। 1 गुट निरपेक्ष देशों की बराबर यह माँग रही है कि विश्व की ऐसी आर्थिक रचना हो जिसमें विश्व की सम्पत्ति का न्यायपूर्ण ढंग से वितरण हो सके। आज आवश्यकता इस बात की है कि सभी गुट निरपेक्ष देश आपसी मतभेद भूलाकर गुट निरपेक्ष आंदोलन को प्रभावी बनायें । मानवीय हितों की रक्षा के लिए उस आंदोलन को और अधिक प्रभावशाली बनाये जाने की आवश्यकता है। विकासशील देशों के बीच आर्थिक सहयोग बढ़ाना इसका लक्ष्य होना चाहिए।
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