वायु,जल भूमि वनस्पति, पेड़ पौधें, मानव ,पशु सब मिलाकर पर्यावरण बनाते है,
पर्यावरण : हमारे चारों और उन बाहरी दसाओ का योग जिसके अंदर जीव अथवा समुदाय रहते है, या कोई वस्तु रहती है पर्यावरण कहलाता है।
पर्यावरण का प्रभाव हर किसी पर पड़ता है, चाहे सकारात्मक रूप से हो या नकारात्मकता रूप से लेकीन वर्तमान समय मे जिस प्रकार पर्यावरण का कुप्रभाव हमे देखने सुनने को मिल रही है, जैवमण्डल में वास करने वाले सभी जीव जंतुओं के लिए खतरे की आहट है।
1.पर्यावरण के सभी कारक परस्पर एक दूसरे से सम्बद्ध है।उनमें पारस्परिक निर्भरता है । किसी एक कारक का प्रभाव समस्त पर्यावरण पर पड़ता है।
2. प्राकृतिक के बहुत से संसाधन समिति है अतः मुक्ति - युक्त प्रयोग होना चहिए
3. जीवन के लिए पारस्परिक समिति संतुलन अपरिहार्य है, असंतुलन पर्यावरण। पर्यावरणीय संकटो की और ले जाना है
4.संसाधनों का शोषण और दुरपयोग सभी के लिए हानिकारक है
5. मानवीय हस्तक्षेप एक सीमा से अधिक होने पर पर्यावरण के अध्ययन की समस्या खड़ी हो जाती है
7. पर्यावरण के संरक्षण की दृष्टि से और मानव उपयोगिता के आधार पर स्थान, समय और स्रोतों को चिह्नित करना ।
8. पर्यावरणीय संसाधनों का उपयुक्त दक्षता से दोहन हो ।
भारत मे पर्यावरण जागरूकता ( चेतना
Environmental Awareness in India
प्राचीन समय से आदि युग से हम अपने धार्मिक संस्कारो की वजह से प्रकृति के कारकों के प्रति सवेदनशील रहे है
आदि युग से हम अपने धार्मिक संस्कारों की वजह से प्रकृति के कारकों के प्रति
संवेदनशील रहे हैं। अथर्ववेद के पृथ्वी सूक्त में लिखा है- "हे पृथ्वी माँ, मैं तुमसे उतना
ही लूँगा, जिसे तू पुनः पैदा कर सके। तेरे मर्म स्थल पर या तेरी जीवन शक्ति पर कभी
आघात नहीं करूंगा।" यह संस्कार युगों से भारतीय मानस पर रहे। इसलिए पर्यावरण लम्बे
समय तक संरक्षित रहा। भारत में निम्नलिखित आन्दोलन पर्यावरण चेतना के विशेष उदाहरण
हैं:
1. चिपको आन्दोलन— पर्यावरण के प्रति मित्रता भरे हाथ बढ़ाने वाला डॉ. सुन्दरलाल
बहुगुणा के नेतृत्व में सन् 1973 में उत्तरांचल राज्य के चमोली जिले में आन्दोलन प्रारम्भ
हुआ जिसका प्रथम लक्ष्य वृक्षों की रक्षा करना तथा बाद में समस्त पर्यावरणीय संसाधनों का
संरक्षण हो गया।
2. एप्पिको आन्दोलन — कर्नाटक प्रान्त में श्री पाण्डुरंग हेगड़े ने चिपको आन्दोलन के अनुरूप आंदोलन संचालित किया जिसका लक्ष्य वन विकास और संरक्षण था ।
3. शान्त घाटी आन्दोलन- केरल प्रान्त में जल विद्युत परियोजना की स्थापना के
विरोध में यह जन चेतना आन्दोलन प्रारम्भ हुआ क्योंकि इससे जैव विविधता को क्षति हो रही थी। इसलिए शासन ने वहाँ आरक्षित वन क्षेत्र घोषित कर पुनः ऊष्ण कटिबन्धीय वनों के क्षेत्र में जैव विविधता को समृद्ध बनाने हेतु संरक्षण किया है।
4. नर्मदा बचाओ आन्दोलन - मेघा पाटेकर अपने सहयोगी अरुन्धती राय एवं बाबा
आमटे के साथ यह आन्दोलन जैव विविधता और आदिवासियों के संरक्षण हेतु संचालित कर रहे हैं।
पर्यावरण के प्रति उत्तरदायित्व जगाने एवं चेतना को व्यापक बनाने के लिए सन् 1972 में स्टॉकहोम में आयोजित पर्यावरण सम्मेलन में यह विचार रखा गया था कि विश्व के सभी देश 5 जून को "विश्व पर्यावरण दिवस" मनायेंगे।
स्वीडन के प्रथम अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में हरी इस एकमात्र पृथ्वी के बिगड़ते मौसम पटते जंगलों लुप्त हो रहे पौधों, पेड़ों, जीवों के साथ-साथ विकसित उत्तर (यूरोप, अमेरिका, कनाडा तथा जापान) तथा विकासशील/अविकसित दक्षिण के मध्य बढ़ती खाई पर ध्यान केन्द्रित किया गया था।
उसके बाद ब्राज़ील की राजधानी जिंतरों में पृथ्वी शिखर सम्मेलन (1992) के संयोजक श्री मारिस स्ट्रोंग ने कहा
"सभी देशों के सूत्रधार भली-भाँति समझ लें कि अगर जंगल से प्राकृतिक का विनाश बन्द नही किया गया, मौसम में आ रहे बदलाव को थामा नही गया और अधिकतर लोगो को निहायत गरीबी से मुक्ति नही दिलाई गई तो मानव सम्पदा उसे धारण करने वाली धरती पर कोई नही बचेगा। हैं।
विश्व सम्मेलन, जोहान्सबर्ग, 2002
(World Summit, Johansburg, 2002) सन् 1992 में पृथ्वी सम्मेलन रियो डि जेनरो (ब्राजील) में आयोजित हुआ था जिसमें 150 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया था।
इसमें एजेण्डा 21 जैव संरक्षण संधि और रियो। घोषणा पत्र उल्लेखनीय तथ्य थे। एजेण्डा 21 के अन्तर्गत अगली सदी में पृथ्वी को हरा-भरा बनाने के लिए एजेण्डा 21 प्रसिद्ध है तथा सम्पोषित विकास (Sustainable Development) पर्यावरण सम्बद्ध और सुरक्षित विकास हेतु प्रयास किये गये। पर्यावरण सम्बद्ध का आशय है आर्थिक विकास के साथ पर्यावरणीय सुरक्षा और सम्पोषित विकास का अर्थ पर्यावरण के समस्त संसाधनों और कारकों के संरक्षण के साथ विकास हो ।
पृथ्वी सम्मेलन विश्व की सरकारों को पर्यावरण के प्रति सचेत करने में सफल रहा। साथ ही विश्व के सामान्य नागरिकों में भी पर्यावरण के प्रति जन-जागृति पैदा हुई ।
द्वितीय विश्व पर्यावरण सम्मेलन दक्षिण अफ्रीका के जोहान्सबर्ग में सन् 2002 में हुआ जिसे रियो + दस (10) कहा गया है। जोहान्सबर्ग में एक मत से गरीबी और पर्यावरण पर जागी विवादास्पद कार्यों को स्वीकृति दी गई और इसे सतत् विकास पर विश्व सम्मेलन नाम दिया गया ।
यह सम्मेलन विश्व स्तर पर सतत् विकास के बारे में जन चेतना विस्तार में सफल रहा, यद्यपि इस सम्मेलन में विकसित देश संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया ने विकासशील देशों को पर्यावरणीय अवनयन (Environmental Degradation) के लिए उत्तरदायी माना ।
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