Describe the role of Vir kunwar singh in revolt of 1857.
1857 के विद्रोह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाबू वीर कुंवर सिंह का जन्म भोजपुर जिले के जगदीशपुर गाँव मे हुआ था इनके पूर्वज परमार राजपूत थे तथा उज्जैन से आये शाहाबाद जिले में बस गए।
1857 ई° के विद्रोह में बिहार में विद्रोहियों का विशेष नेतृत्व रूप से जगदीशपुर के बाबू कुँवर सिंह के हाथों में था।
वीर कुँवर सिंह का परिचय
जन्म :- जगदीशपुर (भोजपुर)
पिता का नाम :- साहिबजादा सिंह
छोटे भाई :- अमर सिंह
भूमिका ( 1845-46 षड्यंत्र में तथा 1857 के विद्रोह में
क्षेत्र :- बिहार
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Vir kunwar singh :source wikipedia |
सन 1845-46 ई° षड्यंत्र में बाबू कुवँर सिंह का हाथ था, इसी के सम्बंध में पटना में जिलाधिकारी ने 27 दिसंबर 1857 ई को बंगाल सरकार को लिखा पत्र में। " मुझे सूचना प्राप्त हुई है कि इस षड्यंत्र में शाहाबाद में शक्तिशाली जमीदार बाबू कुवँर सिंह की मिली भगत है " इसी प्रकार शाहाबाद के जिलाधिकारी एलिफिस्टन जैक्सन ने 23 जनवरी 1857 ई को बंगाल सरकार को लिखा " बाबू वीर कुवँर सिंह इस जिले के सबसे प्रभावशाली जमीदार है तथा लोगो के बीच काफी लोकप्रिय है। पटना के षड्यंत्रकारियों के साथ उनकी मिली भगत है। प्राप्त हुए कुछ पत्र इसे प्रमाणित करते है" लोगो के भड़काने के भय से बंगाल सरकार ने उस समय वीर कुवँर सिंह को गिरफ्तार नही किया।
1857 के विद्रोह में बिहार की भूमिका वीर कुँवर सिंह के नेतृत्व में।
25 जुलाइ 1857 को दानापुर सैनिक छावनी की तीन सैनिक टुकड़ियों ने विद्रोह कर दिया तथा 26 जुलाइ को शाहाबाद पहुचकर उन्होंने बाबू वीर कुँवर सिंह का नेतृत्व स्वीकार किया बाबू कुँवर सिंह ने जगदीशपुर में अस्त्र शस्त्र का एक कारखाना खोल रखा था तथा बीस हजार सैनिकों का छः महीने के लिए रसद का भी प्रबन्ध किया हुआ था।
यधपि इस समय कुवँर सिंह का आयु 80 वर्ष थी फिर भी उन्होंने सैनिकों का नेतृत्व स्वीकार किया ।कुँवर सिंह के प्रमुख अनुयायी निम्नलिखित थे उनके भाई अमर सिंह व रीत नारायण सिंह ,भतीजे निसान सिंह,व जयकृष्ण सिंह शाहाबाद के चार जमीदार ( जोटन सिंह, नरहर सिंह ,दयाल सिंह ,सिंह) एक युवा मुश्लमान एवं एल मुश्लिम वकील ।।
कुवँर सिंह ने नेतृत्व में विद्रोही सैनिकों ने 27 जुलाइ को आरह पहुचकर अंग्रेजो को घेर लिया। लगभग 500 यूरोपीय एवं सिख सैनिक दानापुर से आरह भेजे गए। इसका नेतृत्व कप्तान डनवर ने किया किंतु आंग्रेजी सेना पराजित हुई। जनरल लॉयड ने सेनाध्यक्ष को एक पत्र लिखकर इस पराजय के लिए दिवगंत कप्तान डनवर को उत्तरदायी ठहराया। साथ ही यह भी स्वीकार किया कि कुवँर सिंह के व बागियों की विशाल सेना के समक्ष आंग्रेजी सेना अपर्याप्त है।
इस परिस्थिति को देखते हुए एक नए मेजर की नियुक्ति होती है मेजर आयर ने संभाला तथा आरह पहुचकर कुँवर सिंह की सेना को पराजित किया आंग्रेजी सेना ने जगदीशपुर पर भी अधिकार कर लिया। तथा अस्त्र शस्त्रों एवं बहुत सी इमारतों व धार्मिक स्थलों को नष्ट कर दिया। किन्तु कुँवर सिंह विचलीत नही हुए उन्होंने अपनी गतिविधिया अन्य क्षेत्रों में भी प्रारंभ कर दी।
कुँवर सिंह के प्रभार से ही बिहार के अन्य क्षेत्रों में भी विद्रोहियों ने आंग्रेजी सरकार के विरुद्ध अपनी गतिविधिया तीव्र कर दी ।पटना ,भागलपुर, संथाल परगना, शाहाबाद, तिरहुत व छोटानागपुर आदि क्षेत्रों के विद्रोही नेता निरंतर कुँवर सिंह के सम्पर्क में थे।
वीर कुँवर सिंह का आखरी समय एवं वीरगति
इन्होंने 23 अप्रैल 1858 में जगदीशपुर के करीब अंतिम निर्णायक लड़ाई लड़ी, ईस्ट india कंपनी के सैनिकों को उन्होंने पूरी तरह से खदेड़ दिया।लड़ाई में पृरी तरह घायल होते हुए भी, अंग्रेजो के यूनियन जैक झंडा उतार फेका जो अंग्रेजो ने जगदीशपुर पर कब्जे के समय लगा दिया था। बाबू वीर कुँवर सिंग पूरी तरह घायल होने के बाद जब वह से अपने किले में लौटने के कुछ दिन बाद ही 26 अप्रैल 1858 को उन्होंने अपनी अंतिम सांस लिये और एक वीरगति को प्राप्त हुए।
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