आज के इस लेख में हम बात करेंगे, गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य मामला की। Golaknath vs State Punjab 1967
भारतीय सर्वोच्य न्यायालय के कुछ ऐसे महत्वपूर्ण निर्णय जो। भारतीय सविधानं और लोकतंत्र को और सदृढ़ किया ।और एक नए शुनहरे अध्याय जोड़ने का कार्य किया।//
पृष्टभूमि---
अंग्रेजो और जमीदारों से विरासत में मिली, भूमि की अटपटी मालिकाना हक के कारण , स्वतंत्र भारत मे,भूमिहीन और भूस्वामी के बीच एक गहरी खाई बन चुका था, किसी के पास सैकड़ो एकड़ भूमि है तो किसी के पास रहने तक का नही।। इसी चीज को देखते हुए। विभिन्न राज्यो में भूमि सुधार करने की प्रक्रिया सुरु की जिसमें सर्वप्रथम बिहार राज्य में भूमि सुधार करने की प्रक्रिया शुरू हुई, (अधिनियम 1950 में )
इसी तरह पंजाब सरकार ने भी पंजाब में भूमि सुधार करने की प्रक्रिया शुरू की। और एक अधिनियम पंजाब सुरक्षा और भूमि काश्तकारी अधिनियम (punjab security and Land tenures Act 1953) लाया ।। इस अधिनियम के अनुसार एक वेक्ति केवल 30 एकड़ भूमि की मालिक हो सकता है। पंजाब सरकार ने इस भूमि सुधार अधिनियम को न आव देखा न ताव। 9वी अनुसूची में डाल दिया (1964) ताकि किसी भी प्रकार के न्यायालय में चुनौती न दी जा सके।
लेकिन गोलकनाथ भाईयों के पास 500 एकड़ जमीन थी, 30 एकड़ जमीन रखकर शेष भूमि को छोड़ने का आदेश पंजाब सरकार द्धारा दिया गया , विलियम गोलकनाथ और हेनरी गोलकनाथ भाईयों ने। पंजाब सरकार द्वारा लाएं 1953 के अधिनियम के वैधता को चुनौती देने के लिए high court का दरवाजा खटखटाया।।
Golaknath परिवार इस आधार पर चुनौती दी कि..
●अनुच्छेद 32 को आधार बनाकर उनका तर्क था कि सरकार ने सवैधानिक अधिकारों से वंचित कर दिया है,
जो अनुच्छेद 19(1)f और अनुच्छेद 19 (1)(g) और अनुच्छेद 14 जो कि कानून के समक्ष समानता की बात करता है
चुकी 1953 में भारतीय सविधानं के अनुच्छेद 31 में संपत्ति के अधिकार का वर्णन था इसका भी अतिक्रमण था।
उन्होंने 17वे सविधानं संसोधन की भी मांग की जिसने। पंजाब सुरक्षा और भूमि काश्तकारी अधिनियम (Punjab security and Land tenures Act 1953) को 9वी अनुसूची में रख दिया गया था।
1965 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुचा
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supreme court judgment 1967 golaknath |
Date of Judgment :-27/02/1967
मुख्य न्यायधीश के सुब्बाराव के अध्यक्षता में 11 न्यायधीशों के गठित सवैधानिक पीठ जो उस समय के सुप्रीम कोर्ट में अब तक के सबसे बड़ी bench थी। ,ने इस फैसले को 6:5 के बहुमत से फैसला दिया गया।
सुप्रीम court के सामने वही दो प्रश्न आ खड़े हुए जो शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ *1951 के समय खड़ा खड़ा हो चुके थे
(a) संसोधन विधि है या नही?
(b) और भाग 3 में दिए मौलिक अधिकार में संसोधन किया जा सकता है या नही?
Supreme court ने अपने पूर्वर्ती दिए फैसले को। बदल दिया।जिसमे supreme court ने शंकरी प्रसाद बनाम भारत संघ *1951) में कहा था 368 के तहत संसद को सविधानं के किसी भी हिस्से में संसोधन करने की शक्ति है ।
● इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा :- संसद को यह अधिकार नही है कि वह सविधानं के भाग( 3) वर्णित मौलिक अधिकार को संसोधन करें।
संसद को भाग 3 में संसोधन करने का अधिकार नही है
और 368 संसोधन भी एक विधि है
और हम सब जानते है article 13 के अनुसार विधि को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है
Article 13(2) कहता है, राज्य ऐसी कोई विधि नही बनाएगा जो मूल अधिकारों को अतिक्रमण करती है या छिनती हो।
न्यायालय ने कहा ,अनुच्छेद 368 में संसोधन की प्रक्रिया का उल्लेख है, न कि संसोधन की शक्ति का
इश्लिये जो शक्ति सविधानं निर्माण सभा के पास थी वो फिलहाल संसद के पास नही है।
और मूल अधिकारों सहित ,व्यापक अस्तर पर बड़े परिवर्तन करना चाहते है सविधानं में तो फिर सविधानं सभा का गठन करना होगा, तभी मूल अधिकारों सहित अन्य महत्वपूर्ण उपबंधों में क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकते है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ,गोलकनाथ के हक में था लेकिन सरकार के विरोध में गया, इस समय इंदिरा गांधी के सरकार थी, यह एक ऐसा दौर था जहां ,न्यायपालिका की शक्ति को कम करने की कोई मौका सरकार जाने नही देना चाहती थी, कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच हमेसा एक गतिरोध बना रहता,
गोलकनाथ केस भारतीय सविधानं में एक मिल का पथर साबित हुआ , जो। जनता के मौलिक अधिकारों जैसे मूल चूक अधिकारों को असल मायने में लोकतंत्र तक पहुचाया, इसी ल्जा आधार बाद में 1973 में केशवानंद भारती मामला बना, जो सविधान में basic Structure के सिद्धांत प्रतिपादन किया ।।
धन्यवाद।।।।
update ....जारी है
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