बिहार की संस्कृति भारत और विश्व मे अद्वितीय है, बिहार अपने geographical Location से जयदा अपनी Historical art and Culture से जयदा जाना पहचाना जाता है, बड़े बड़े योद्धाओ की भूमि रह चुका है।
बिहार से बहुत तेजी से विलुप्त हो रही, कला,सँस्कृति धरोहर, को बचाने के लिए पुनः इसपर कार्य करने की आवश्यकता है, आज बिहार के सँस्कृति विरासत के बारे में संक्षिप्त में जानेंगे जो विभिन परीक्षाओं में काम आएंगे,
बिहार कुल 9 प्रमंडलों में विभक्त है हर एक क्षेत्र की अपनी अलग ही सँस्कृति है,
बिहार की संस्कृतिक क्षेत्र भाषा के साथ करीबी सबन्ध को प्रतिबिंबित करती है, मैथली जिसको प्राचीनकाल में मिथला ,विदेह, जो वर्तमान तिरहुत) की भाषा है। जिसमे ब्राह्मणवादी जीवन व्यवस्था की प्रधानता है, मैथली बिहार एक एकलौता बोली जाने वाली बोली है जिसकी अपनी लिपि है,
मैथली के प्राचीनतम और सवार्धिक प्रसिद्ध लेखक विद्यापति अपने शृंगारिक और भक्ति गीतों के लिए विख्यात है।
बिहार के छठ पर्व जो सम्पूर्ण विश्व में बसे बिहारी बड़े खुसी के साथ मानते है।
● बिहार का प्रसिद्ध सूर्य मंदिर( औरँगबाद जिला) में इश्थिति है, छठ पूजा बिहार का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। यह पर्व सूर्य देव को समर्पित है, साल में दो बार मनाया जाता है,
पहला, चैत्र के( march) माह में दूसरी बार कार्तिक माह। (नवंबर) में
● सामा - चकेवा ( sama-chakeva) बिहार में मैथली भाषी लोगो का एक प्रसिद्ध त्योहार है, जिसमे भाई - बहन के मध्य घनिष्ट सबन्ध दर्शाने वाला यह त्योहार नवंबर माह के सुरु होने के साथ मनाया जाता है।( इसको आप रक्षा बंधन से मत जोड़ना ) क्योकि इसमें मूर्ति बनाई जाती है सामा चकेवा की, और अंतिम दिन उन्हें खेत मे विसर्जित किया जाता है,
बिहुला पूर्वी बिहार,का एक प्रसिद्ध त्योहार है,जो विशेष रूप से भागलपुर जिले में प्रसिद्ध है,इस त्योहार में लोग अपने परिवार की कल्याण के लिए मनसा देवी से प्राथना करते है।।
मधुश्रावणी, यह त्योहार पूरे मिथिलांचल में उत्साहपूर्वक मनाया जाता है, यह पर्व श्रावण मदिने में (अगस्त) पंचमी से सुरु होती है और तृतीया तक चलती है और 13 दिन तक चलती है।
● रामनवमी ,दीपावली, ईद बकरीद ,क्रिसमस, रक्षाबंधन, होली, दशहरा,बसंत पंचमी, शिवरात्रि, बडे धूमधाम से मनाया जाता है,
Holy festival,Hindu religion ;magadhias |
वास्तुकला:-
Kumhrar park कुम्हरार पार्क, से एक मौर्यकालीन विशाल खंबो के बचे अवशेष; सम्भवतः राजमहल था, लड़की का का बना था,
मौर्यकालीन स्तंभ लेख:- ये चार स्थानों लौरिया- नंदनगढ़, लौरिया,अरेराज,( पक्षमी चंपारण)
रामपुरवा( पूर्वी चंपारण)
और बसाढ़( वैशाली) में स्थापित है।
- बसाढ़ स्तम्भ पर सिंह का बनाया हुआ है
- रामपुरवा स्तम्भ पर नटुवा बैल ( सांड)
- लौरिया नदनगढ़ स्तम्भ पर सिंह की आकृति उत्कीर्ण है
- ये चुनार के धूसर बलुआ पथर से निर्मित है, तथा इन पर चमकीली पॉलिश भी की गई है,
● बराबर (गया) की पहाड़ियों में अशोक स्तम्भ एवं दशरथ द्वारा आजीवक सम्प्रदाय के लिए गुफाओं का निर्माण
● ओदंतपुरी नालंदा एवं विक्रमशिला महाविहार का निर्माण
● सासाराम में सेरशाह की मकबरा- झील के मध्य अष्टकोणीय मकबरा; अफगान स्थापत्य शैली का उदाहरण
● मधुबनी चित्रकला (madhubani painting)
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madhubani panting and manjusha ; magadhias |
मधुबनी चित्रकला। मधुबनी चित्रकला का इतिहास पुराना है मगर इसे ख्याति हाल के दशकों में ही प्राप्त हुई है यह एक लोककला है जिसमे महिलाओं की ही पूर्ण भूमिका रही है, यह चित्र दो प्रकार के होते है
1. भित्ति चित्र
2. अरिपन
भित्ति चित्र में टिंकठिया रूप देखे जा सकते है,(क) गोसनी घर की सजावट
(ख) कोहबर घर की सजावट
(ग) कोहबर घर की कोणीय की सजावट
पहली चित्र धार्मिक महत्व के होते है जबकि अन्य दो प्रतीकों का युपयोग का अधिक होता है, सभी चित्र महिलाओं, द्वारा बनाया जाता है, इसमें भी ब्राह्मण, औऱ कायस्थ, परिवारों का योगदान महत्वपूर्ण एवं मुख्य होता है,
धर्मिक भित्ति चित्र में दुर्गा राधा कृष्ण सीता- राम शिव- पार्वती, विष्णु- लक्ष्मी, आदि का चित्रण होता है, कोहबर घर के भीतर बने चित्र कामुक प्रवृति के होते है, (अक्सर सादी विवाह में बनते है) मुख्यतः अक्सर दीवारों पर ही बनाया जाते है, मगर हाल के दिनों में कपड़े कागजों पर भी बनने लगे है, प्रयोग किये जाने वाले रंग मुख्यतः प्रकृतिक होती है
2. अरिपन:- मधुबनी चित्रकला का एक एक अन्य रूप अरिपन है। यह आंगन में या दरवाजे( चौखट) के सामने जमीन पर बनाये जाते है, इसमें चावल का आटा होता है, इसे पानी और रंग में मिलाया जाता है, इसे उंगली से ही बनाया जाता है,अरिपन चित्रों में पांच श्रेणियां निर्धारित की जा सकती है,
मधुबनी चित्रकला अन्य लोककलाओ की तरह और त्योहारों और पारिवारिक अनुष्ठानों में बहुत गहरी तरह से जुड़ी हुई है।
पिछले कुछ सालों में इसकी लोकप्रियता बढ़ी है, इस शैली की मुख्य प्रतिनिधियों में पदमश्री सिया देवी, कौशल्या देवी,भगवती देवी,महासुंदरी देवी , भारती दयाल आदि प्रमुख चित्रकार है ,आदि नाम लिए जा सकते है।
इसकी ख्याति जापान में भी पहुच चुकी है,
जापान के टोकामाची शहर में मिथिला पेंटिंग का संग्रहालय बनाया जा रहा है,,
● मधुबनी चित्रकला:-
वर्ष 1934 में भूकंप के बाद मधुबनी में तत्कालीन जिलाधिकारी (विलियम् जी आर्चर) ने निरीक्षण के दौरोन मधुबनी के भित्ति चित्रों को देख गया है,
● चित्रकला (¡) पटना शैली (पटना कलम)
मुगल के आगमन के बाद भारतीय चित्रशैली को एक नया रूप मिला,
इसका विकाश अठारहवीं शताब्दी के आरंभिक दशक तक बना रहा,
पटना कलम शैली की सुरुआत ब्रिटिश शैली के सयोग से अंग्रेजो के कार्यकाल उनके संरक्षण में ही हुआ था, इश्लिये इसे कम्पनी शैली भी कहा जाता है।
पटना कलम शैली की कुछ मुख्य विशेषताए।
● इस चित्रशैली में वेक्ति चित्रों की महत्व/ प्रधानता होती है ,इश्लिये इसे पुरुषों की चित्रशैली भी कहा जाता है, चित्र जीवन के आम घटना को दर्शया जाता है,
● पटना कलम की चित्र लघुचित्र( miniatures) की श्रेणी में आते है, जिन्हें अधिकतर कागज और कही कही हाथी दांत ओर बनाया गया है।
सामान्यतः इन चित्रों में दैनिक जीवन के दृश्यों और जन साधारण के जीवन का ही चित्रण हुआ है, लड़की काटता हुआ बड़ही, मछली बेचती हुई औरत, लोहार सुनार पालकी उठाये कहार, खेत जोतता किसान, साधु सन्यासी सामान्यतः इस शैली में देखे जा सकते है।
इसके अलावा पशु पक्षियों को भी दिखाया गया है फूलों को भी चित्रण किया गया है,
इस शैली में महत्वपूर्ण चित्रकारों में पहला नाम,सेवकराम का है उनका काल 1770- 1830 था, इसके अलावा हुलास लाल ये पशु- पक्षियों के चित्रण में माहिर थे, ये भी प्रारंभिक प्रतिनिधयों में से एक थे ,इस श्रेणी के सबसे अंतिम प्रतिनिधि ईश्वरी प्रसाद थे।
● प्रमुख चित्रकार:-
सेवकराम प्रथम (कलाकार),
हुलास लाल ये पशु- पक्षियों के चित्रण में माहिर थे,
जयराम दास( यह स्याह कलम के माहिर)
फकीरचन्द लाल, शिवलाल,
ईश्वरी प्रसाद ( पटना कलम ,इस शैली के अंतिम प्रसिद्ध प्रतिनिधी)
महिला कलाकार में, दक्षो बीबी, सोना बीबी, ईश्वरी प्रसाद वर्मा
मंजुसा शैली:- चित्रकला
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manjusha ladies painting,:magadhias |
अंग प्रदेश ( वर्तमान में बिहार के भागलपुर जिले के आस पास के क्षेत्र को कहा जाता है,
मुख्य पात्र:- बिहुला- बिसहरी के प्रेम लोककथा मुख्य विषय है
मंजुसा अंग प्रदेश में मनाए जाने वाले बिसहरी पूजा से स्वन्धित है, संस्कृत के शब्द मंजुसा मंदिर जैसा आकृति जो बॉस ओर जुट रस्सी से बनाया जाता है,
मंजुसा में बिहुला के पति को सर्प ने दंश लिया था ,बिहुला पुनः उसको जीवित की थी,
तीन रंगों का प्रयोग होता है।
चक्रवर्ती देवी, निर्णला देवी, प्रमुख है जिन्हें, सीता देवी पुरुस्कार से समानित किया गया है
● बिहार के लोकनाट्य।
बिदेशिया ( भोजपुर क्षेत्र में लोकप्रिय; पुरुषो द्वारा अभिनीत
जट जटिन ( अविवाहित लड़कियों द्वारा अभिनीत; जट जटिन के विवाहित जीवन का प्रदर्शन
डोमकच:- घरेलू, नाट्य, महिलाओं द्वारा प्रस्तुत।
सामा चकेवा:-
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