Ticker

6/recent/ticker-posts

aruna shanbaug case अरुणा शानबाग केस, 42 साल तक मौत के इंतेजार में तड़पती रही। क्या है इच्छामृत्यु (Euthanasia ) Active Euthanasia ,pssive Euthanasia

Aruna shanbaug case study in hindi

अरुणा शानबाग केस की सम्पूर्ण जानकारी


मुम्बई  में एक अस्पताल है जिसका नाम किंग एडवर्ड मेमोरियल है  इश्मे कुतो  पर दवाइयों का Experiment करने  का लैब था। इसमें कई  नर्सें काम करती थी,  उनका काम कुत्तों पर दवाइयां देना था  इन्ही में से एक नर्स  थी, अरुणा शानबाग 
 
aruna shanbaug :   source: Wikipedia 

27 नंबर 1973 का दिन अरुणा के 
लिय एक भयानक सपने से कम नही था जो सच होने वाला था

अरुणा ड्यूटी से लौट रही थी,   सोहनलाल नाम के एक वेक्ति ने अरुणा पर हमला कर दिया। बलात्कार  दरिंदगी  की हद्द पार कर दिया था इस हमले में अरुणा की
गले का नस दब गए और वही अरुणा बेहोश हो गई, 
इश्थिति दयनीय थी  डॉक्टर ने कोमा में शिफ्ट कर दिया।।  इस कोमा से अरुणा कभी बाहर नही निकल पाई

एक तो दुष्कर्म दरिंदगी और दूसरी गले पर भीषण  चोट, एक महिला की इज्जत ही सबकुच होता है  अरुणा को इससे जो सदमा लगा वो  ईसस कभी नही उबर पाई और नही अपने चोट से


इश्थिति इतनी खराब हो चुकी थी, उसके घर वाले और डॉक्टर  का कहना था, इन्हें मृत्यु दे दी जाय, के जो नरक भोग रहे है,  इससे छुटकारा मिल जाएगी, परिवार की आर्थिक इष्ठति बर्बाद हो चुकी थी,

जब ये बात कानूनी हो गई तो बात सुप्रीम कोर्ट तक पहुच गई, क्योकी बात मौलीक अधिकार की है,


परिवार वालो ने सुप्रीम कोर्ट से दया मृतु की याचिका की थी

8 मार्च 2011 को अरुणा को दया मृत्यु की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने  खारिज कर दिया

पिटीशनर पिंकी वीरानी को इस मामले से कोई लेना देना नही है SC का कहना था की 37 सालों से अरुणा कोमा में है तो उनकी मित्र कहलाने वाली पिंकी वीरानी उनकी इच्छा बताकर उनके लिए इक्षामृत्यु कैसे मांग सकती है

सुप्रीम कोर्ट ने कहा अरुणा शानबाग के माता पिता नही है। इनके रिश्तेदार को उनमें कभी दिलचस्पी नही रही।। लेकिन (केईएम)  हॉस्पिटल ने कई सालों 
तक दिन रात  अरुणा की  बेहतरीन सेवा की है, लिहाज ,अरुणा के बारे में फैसला करने का हक  (केइएम)हॉस्पिटल की है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा अगर उनकी परिवार को  लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने का अधिकार दे दिया गया तो ,इसका गलत फायदा उठाया जा सकता है, प्रोपर्टी के लालच में।

क्या है इच्छामृत्यु (Euthanasia )


जब कोई मरीज बहुत जयदा कष्ट में हो दुःख भोग रही ,,या ऐसी बीमारी जो ठीक नही हो सकती,जिश्मे हर दिन मरीज  मौत जैसी इष्ठति से गुजर रहा हो तो उन मामलों में   कई महत्वपूर्ण देश है जहां इक्षा मृतु दी जाती है।

नीदरलैंड, लक्जमबर्ग ,बेल्जियम, स्विट्जरलैंड, और अमेरिका के कुछ खास राज्यो में

भारत मे यह मुदा विवासपद  है क्योंकि कुछ लोगो की इमोशन जुड़ी होती है, तो कुछ लोगो कर स्वार्थ

मुख्य तीन प्रकार की  इक्षा मृत्यु है


● Active Euthanasia में मरीज को डॉक्टर ऐसा जहरीला  इंजेक्शन लगता है जिश्मे उसकी कार्डिएक अरेस्ट के कारन मौत हो जाती है।

● pssive  Euthanasia में डॉक्टर उस मरीज का लाइफ सपोर्ट सिस्टरम हटा दिया जाता है,जिसकी जीने की उमीद  खत्म हो चुकी है

● Pbysician  assisted Suicide.  कर मामले  मरीज खुद जहरीला दवाएं लेता है जिससे मौत हो जाती है। जर्मन जैसे कुछ देशों में इसको इजाजत है


परवर्ती सुप्रीम कोर्ट का फैसला

1994 में पी रथिनम के केस सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, किसी भी वेक्ति को मरने का अधिकार भी होता है। हालाकि 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने दो  साल पुराना तट दिया,


SC ने कहा सविधानं के अनुच्छेद 21 यानी जीने कर अधिकर का उलंघ्न है 2000 में केरल हाइकोर्ट ने कहा इक्षा मृत्यु की इजाजत देने आत्महत्या को स्वीकार करने के बराबर है

अंततः ईश मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कौमा में जा चुके या मौत की दरवाजे पर पहुच चुके लोगो के वसीहत के आधार पर, निष्क्रिय इच्छामृत्यु passive Euthanasia) का हक होगा, उससे स्मामन जीने के अधिकार है, तो स्मामन   से मरने का भी अधिकार है हक है


सुप्रीम कोर्ट ने कहा  था कि  living will मरीज के परिवार की इजाजत जरूरी होगी, साथ ही एक्सपर्ट   डॉक्टर की टीम भी इजजत देगी, जो इज तय  करेगी कि मरीज का अब ठीक हो पाना नामुमकिन है


क्या है लिविंग विल?
यह वास्तव में एक दस्तावेज है, जिसमें कोई व्यक्ति यह बताता है कि वह भविष्य में गंभीर बीमारी की हालत में किस तरह का इलाज कराना चाहता है. यह वास्तव में इसलिए तैयार किया जाता है, जिससे गंभीर बीमारी की हालत में अगर व्यक्ति खुद फैसले लेने की हालत में नहीं रहे तो पहले से तैयार दस्तावेज के हिसाब से उसके बारे में फैसला लिया जा सके. 



अन्य कोई प्रश्न हो तो comment box में लिख दे।

।।।धन्यवाद।।।





एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ