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मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ मामला 1980,What is Minerva Mills vs Union of India case. (1980) in hindi

What is  Minerva Mills vs Union of India case. (1980)  in hindi


 मिनर्वा मिल्स लिमिटेड नाम  के एक कम्पनी थी जो कर्नाटक में इश्थित है जो टेक्सटाइल फील्ड से थी , अगस्त 1970 में भारत सरकार ने ( sick Textile Undertakings Nationalization act 1974) में पारित किया

आप जानते है उस समय सरकार  बहुत से संस्थानों को राष्ट्रीयकरण कर रही थी, बैंक हो बीमा कम्पनी हो या म्युचुअल फण्ड जैसे  गैर सरकारी संस्थान हो 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण इन्ही में से एक था
कपड़ा कम्पनियों के भी सरकार राष्ट्रीयकरण करने में तुली हुई थी।

और इसी act के द्वारा मिनर्वा मिल्स को सरकार राष्ट्रीयकरण कर देती है। और 20 अगस्त 1970 में गठित जांच कमिटी के बाद 1971 में जांच रिपोर्ट आने के बाद सरकार मिनर्वा मिल्स को अपने हाथ मे ले लेती है।।।

सरकार समाजवाद को आगे  बढ़ाते हुए सभी ऐसे संस्थानों को राष्ट्रीयकरण कर देती है जो  सरकार को अहम लगता था,  कल तक जो खुद के कम्पनी के स्वामी थे अब वो सरकार के कन्ट्रोल में आगये,

अब मिनर्वा मिल्स के जो मालिक थे सरकार के इस फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट चले गए।

अब यही  से इस केस को, मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ नाम दे दिया गया। 

अब  सरकार के जो वकील है वो सुप्रीम कोर्ट में 42 वे सविधानं संसोधन अधिनियम  का हवाला दिया जिसके तहत 368 में दो प्रमुख प्रावधान जोड़े गए थे


सरकार ने कहा की संसद की  शक्तियां असीमित है  तथा इन्हें किसी भी कोर्ट में चुनोती नही दी जा सकती।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने केशवानंद भारती मामले में दिए सविधानं के मूल ढांचे की अवधारणा को आधार बनाकर कहा|
संसद ऐसा कोई सवैधानिक संसोधन नही कर सकती जिसे  सविधानं के मूल ढांचे (besic structure)  का उलंघ्न हो।
सुप्रीम  कोर्ट ने  स्पष्ट रूप से  साफ साफ कहा कि 368 में किये गए सविधानं संसोधन मूल ढांचे का उलंघन करते है,         


सुप्रीम कोर्ट को संसद द्वारा बनाये गए किसी भी कानूनों की समीक्षा करने की   शैवधानिक अधिकार है (article 32)

ओर हम जानते है न्यायिक पुनरावलोकन सविधानं के मूल ढांचे का ही एक भाग है

अतः संसद इस प्रकार का कोई कानून बनाकर तो खुद को सविधानं से सर्वोच्च बना सकती है ओर नही सुप्रीम कोर्ट को उसके शक्तियों और कर्तव्यों  से हटा सकती है

Note:-- हम सब जानते है हमारे देश मे सविधानं सर्वोच्च है, सवैधानिक दायरे में रहकर ही संसद अपना कार्य करती है और कर सकती है।

सरकार द्वारा 368 में जोड़े गए दो नए प्रावधानो को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया।

अंततः सुप्रीम कोर्ट ने मिनर्वा मिल्स के पक्ष में अपना फैसला सुनाया,   और अनुच्छेद 368 में जोड़े गए दोनो नए प्रावधानों को रद्द कर दिया गया।

और अंतिम अंतिम तक सुप्रीम कोर्ट ने  स्पस्ट कर दिया, न्याययिक समीक्षा सविधानं के मूल ढांचे का भाग है   और संसद द्वारा  संसोधन के द्वारा किसी तरह से न्यायलय के ईश शक्ति को नही छीन सकती

यहां पर आप confuse मत हों जाना, न्यायिक पुनरवलोकन, या न्यायिक समीक्षा,   अंग्रेजी में। judicial review से। सब एक ही है, सबका मत्तलब एक ही होता है।


कोई प्रश्न हो तो आप comment box  में लिखकर  भेज दे।

।।।।।धन्यवाद।।।।

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