A.k. gopalan vs state of madras judgement
A. K गोपालन बनाम मद्रास राज्य मामला (1950)
● क्या था मामला ?
वर्ष 1950 में A.K गोपालन को मद्रास जेल में निवारक निरोध अधिनियम (preventive detention act 1950) के तहत हिरासत में लिया गया।
गोपालन ने यह कहते हुए अपनी हिरासत को चुनोती दी थी उनका कहना था, उनकी नागरिक स्वत्रंता में बाधा आ रही है, क्योकि उन्हें कानून की समानता का अधिकार था।
समझने का प्रयास करना।
जेल में हो क्या रहा था, की गोपालन को जैसे ही जेल की सजा पूरी होती , एक नए केस बनाकर पुनः जेल में डाल दिया जाता था, मत्तलब उनके उपर मुकदमे की कभी न खत्म होने व्वली प्रक्रिया चलती आरही थी
उनका कहना था article 19 और article 14 का भी उलंघन हो रही है हमारी स्वतंत्रता छीनी जा रही।
Note:- Article वक्तिगत स्वतंत्रता- प्राण व दैहिक स्वतंत्रता
Article 21 मे उल्लेख किया गया है कि किसी वेक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से से वंचित विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के तहत ही किया जाएगा अन्यथा नही।
अब निर्धारण करना था कि क्या A. K गोपालन पर अनुच्छेद 21 की प्रक्रिया लाग्या जाना चाहिए और क्या लगाने योग्य मामला है।
अब यहां से सुप्रीम कोर्ट का आगमन होता है
इस समय सुप्रीम कोर्ट के मुख्य माननीय न्यायाधीश श्री हरिलाल जे कानिया थे।( first chief justice of India)
उच्चतम न्यायालय का फैसला (Supreme Court's decision)
● निवारक निरोधक अधिनियम (preventive detention act 1950) के खंड 15 को रद्द किया गया जबकि शेष अधिनियम को वैध और प्रभावी घोषित किया गया
● अनुच्छेद 21 तहत वक्तिगत स्वतंत्रता का अर्थ भौतिक शरीर की स्वत्रंता है।
Critical analysis of A.K. Gopalan case
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