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1992 में हुए भारतीय सविधानं में 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम का संछिप्त परिचय एवं उसकी समझ, UPSC, PCS, in hindi

(73वाँ  संविधान संशोधन अधिनियम का संक्षिप्त परिचय।


73rd Constitutional Amendment Act in the Indian Constitution
73rd Constitutional Amendment A



इससे पहले हुए संशोधनों में 73वें और 74वें संशोधन का विशेष महत्व है। ये 1992 में पारित हुए। इनके द्वारा राज्य से नीचे की इकाईयों के गठन के लिए निर्वाचन प्रणाली का समावेश किया गया है। ये इकाईयाँ हैं ग्रामीण क्षेत्रों में पंचायतें और नगरीय क्षेत्रों में नगरपालिकाएँ।

73वां सविधानं संसोधन अधिनियम की मुख्य विशेषताएं


1.1992 में हुए 73वे सविधानं संसोधन द्वारा पंचायती राज संस्थानों के गठन  उल्लेख है।

2. एक नई 11वां अनुसूची जोड़ दी गई

3. इस संसोधन अधिनियम द्वारा सविधानं में भाग 9 को जोड़ा गया।

4.अनेक प्रयासों के बाद संविधान (73वां संशोधन) अधिनियम, 1992 अंतिम रूप से पारित हुआ तथा दिनांक 24 अप्रैल, 1993 से लागू हुआ।


यह इस पृष्ठभूमि के विरुद्ध था कि संघ सरकार ने पंचायती राज प्रणाली के लिए एक संवैधानिक आधार उपलब्ध करवाने के उद्देश्य से परामर्शों तथा तरीके निकालने की प्रक्रिया शुरु की। संसद में संवैधानिक संशोधन विधेयक पारित करवाने के लिए।


4. 73वां संशोधन अधिनियम, 1992 के उपबंधों को मोटे तौर पर आदेशात्मक और स्वविवेकी उपबंधों के रूप में वर्गीकत किया जा सकता है।

आदेशात्मक उपबन्ध महत्वपूर्ण 


१-ग्राम स्तर पर ग्राम सभा स्थापित करना जिसमें पंचायत के क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाले गाँव से सम्बन्धित निर्वाचक नामावली में पंजीकृत लोग शामिल हों।

२- 20 लाख से कम जनसंख्या वाले राज्यों को छोडकर सभी राज्यों एवं संघ शासित क्षेत्रों में गाँव, मध्यवर्ती एवं जिला स्तरों पर पंचायती राज की तीन स्तरीय प्रणाली की स्थापना।

३-पंचायत में सभी स्तरों पर सम्बन्धित प्रादेशिक चुनाव क्षेत्र से प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने गये लोग शामिल होंगें।

४- प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से चुने गए पंचायत के सभी सदस्यों को पंचायत की बैठकों में मतदान का अधिकार होगा

५-पंचायतों के मध्यवर्ती तथा शीर्ष स्तर के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्ष रूप से चुने गए सदस्यों में से होगा।

६- सदस्यता तथा पंचायतों के अध्यक्षों के कार्यालयों में अनुसूचित जातियों तथा अनूसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण, पंचायत में उनकी जनसंख्या के आधार पर किया जाएगा। (ब्यौरा 73वां संशोधन अधिनियम के अनुच्छेद 243-घ में अनुबन्ध 4.1 पर देखा जा सकता है)।

७- सदस्यता तथा पंचायतों के अध्यक्षों के कार्यालयों के लिए महिलाओं का आरक्षण एक तिहाई से कम नहीं होगा (ब्यौरा 73वां संशोधन अधिनियम के अनुच्छेद 243 घ में अनुबन्ध 4.1 पर देखा जा सकता है)।

८- सभी स्तरों की पंचायतों का कार्यकाल पाँच वर्ष का होगा। यदि कोई पंचायत इस समयावधि से पहले किसी भी कारण से विघटित हो जाती है तो छः माह की समयावधि के भीतर पुनः चुनाव करवाए जाएंगे। यदि पंचायत की अवधि छः माह से कम रह गई हो तो इस अवधि के लिए चुनाव करवाना अनिवार्य नहीं होगा।

९- अधिनियम के प्रारम्भ होने से एक वर्ष की अवधि के अन्दर राज्य वित्त आयोग का गठन तथा उसके पश्चात प्रत्येक पाँच वर्ष की अवधि समाप्त होने के पश्चात। उप धारा (खख) भी संविधान के अनुच्छेद 280 में जोड़ी गई थी। इस उप धारा के अनुसार केन्द्रीय - वित्त आयोग, राज्य सरकार के वित्त आयोग द्वारा की गई सिफारिशों के आधार पर राज्य में पंचायत के संसाधनों की आपूर्ति करने के लिए राज्य की संचित निधि में वृद्धि करने के लिए आवश्यक उपाय की सिफारिश अध्यक्ष से करेगा।

१०- पंचायतों के चुनाव करणने, निर्वाचक नामावली तैयार करने के पर्यवेक्षण, निदेशन एवं नियंत्रण के लिए राज्य चुनाव आयोग का गठन।

११. यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद 244 की धारा (1) में निर्दिष्ट अनुसूचित क्षेत्रों तथा धारा (2) में निर्दिष्ट जनजातीय क्षेत्रों में लागू नहीं होगा।
73rd Constitutional Amendment Act in the Indian Constitution
73rd Constitutional Amendment A



बार-बार संशोधन के खतरे-यह स्पष्ट है कि जैसा संविधान के कुछ आलोचकों ने प्रारंभ के दिनों में धारणा बनाई थी। इसके विपरीत संशोधन की प्रक्रिया कठोर होने के स्थान पर अत्यधिक नम्य है। पिछले 71 वर्षों में जिस सरलता से 105 संशोधन हो गए हैं उससे यही प्रतीत होता है। जब तक केन्द्र में सत्तारूढ़ दल का संसद में और आधे से अधिक विधान मंडलों में ठोस बहुमत है तब तक निष्पक्ष संप्रेक्षकों को इस बात का भय नहीं होना चाहिए कि संशोधन करने में क्या कठिनाई होगी बल्कि इस बात की आशंका होनी चाहिए कि इसका प्रयोग राजनैतिक प्रयोजनों के लिए या सत्तारूढ़ दल की अवांछनीय प्रतीत होने वाले निर्णयों से छुटकारा पाने के लिए बार-बार नहीं किया जाए।


न्यायाधीश भी भूल कर सकते हैं किन्तु यह भी हम देख चुके हैं कि अपने अनुभव के आंधार पर सर्वोच्च अधिकरण अपने मत में परिवर्तन कर लेता है। जब तक गंभीर परिणाम न हों, या आपात परिस्थितियाँ न हों या विशेष आकस्मिकताएँ न हों (जैसे-सिक्किम का प्रवेश-35वां और 36वां संशोधन) तब तक अवांछित न्यायिक निर्णयों का अध्यारोहण करने के लिए संविधान संशोधन प्रक्रिया का आश्रय नहीं लेना चाहिए। इस प्रयोजन से बारंबार संशोधन करने से साधारण जन के मस्तिष्क में न्यायपालिका के प्रति अनादर का भाव जागेगा जो सांविधानिक सरकार की नींव हिला देगा।

सभी संशोधन जो संविधान में 24-4-1973 को यह उसके पश्चात् किए गए हैं और जिनको नौवीं अनुसूची में शामिल किया है, सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि उन्हें उनका परीक्षण संविधान की आधारभूत एवं अनिवार्य संरचना को ध्यान रखते हुए अनुच्छेद 21, 14, 19 में विहित सिद्धांतों के आधार पर मान्य करना है 24-4-1973 के पश्चात् नौवीं अनुसूची में डाली गई कानूनों को कोई सुरक्षा प्राप्त नहीं होगी एवम् इन सभी कानूनों को मौलिक अधिकारों की उल्लंघन की प्रकृति और सीमा की संवैधानिक परीक्षण से ही संवैधानिक सुरक्षा प्राप्त होगी।



इस लेख से सबंधित किसी प्रकार के प्रश्न है तो आप comment जरूर करें? मैं जल्द ही उतर देने की कोशिश करूंगा। धन्यवाद।।


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