Q-भारत के राष्ट्रपति द्वारा संविधान का उल्लंघन पर महाभियोग की प्रक्रिया।
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भारतीय सविधानं का अनुच्छेद 56 के अनुसार भारत के राष्ट्रपत्ति का कार्यकाल 5 वर्ष है, किन्तु भारतीय संविधान के अनुच्छेद 61 के अनुसार राष्ट्रपति के द्वारा संविधान का उल्लंघन किए जाने पर संविधान में दी गई पद्धति के अनुसार उस पर महाभियोग लगाकर उसे उसके पदं से हटाया जा सकता है। '
राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने का अधिकार भारतीय संसद के प्रत्येक' सदन को प्राप्त है। अभियोग लगाने के लिए अभियोग लगाने वाले सदन की समस्त संख्या के 1/4 सदस्यों के हस्ताक्षर होना आवश्यक है। अर्थात महाभियोग लगाने से पूर्व संसद के 25% लगभग 136 सांसदों से लिखित सहमति जरूरी होना चहिए।
महाभियोग लाने से 14 दिन पूर्व राष्ट्रपति को सूचना देना जरूरी है
अभियोग लगाने के 14 दिन बाद अभियोग लगाने वाले सदन में उस पर विचार किया जाएगा और यदि वह सदन की समस्त संख्या के 2/3 सदस्यों द्वारा स्वीकृत हो जाए, तो उसके उपरान्त वह भारतीय संसद के द्वितीय सदन में भेज दिया जाता है। दूसरा सदन इन अभियोगों की या तो स्वयं जाँच करेगा या इस कार्य के लिए एक समिति नियुक्त करेगा। राष्ट्रपति को यह अधिकार है कि वह सदन में स्वयं उपस्थित होकर या अपने किसी प्रतिनिधि द्वारा महाभियोग की जाँच में हिस्सा ले।
आरोप सिद्ध हो जाने पर उंस तिथि से राष्ट्रपति का पद रिक्त माना जाता है
यदि सदन में राष्ट्रपति के विरुद्ध लगाए गए आरोप सिद्ध हो जाते हैं और दूसरा सदन भी अपने कुल सदस्यों के कम-से-कम तो-तिहाई बहुमत से महाभियोग का प्रस्ताव स्वीकार कर ले तो वह प्रस्ताव स्वीकार माना जाएगा और प्रस्ताव के स्वीकृत होने की तिथि से राष्ट्रपति पदच्युत समझा जाएगा। इस सम्बन्ध में यह बात विशेष जानने योग्य है कि इस काल में भी वह अपने पद पर आसीन रहते हुए बराबर अपना कार्य करता रहेंगे।
राष्ट्रपति अपने पद पर निश्चित अवधि की समाप्ति के उपरान्त भी उसे समय तक आसीन रहेंगे जब तक कि उसका उत्तराधिकारी राष्ट्रपति पद को ग्रहण नहीं करता है। मृत्यु, त्यागपत्र या महाभियोग की स्वीकृति के कारण राष्ट्रपति का पद रिक्त होने पर यथासंभव 6 माह के अन्दर-अन्दर नया निर्वाचन हो जाना चाहिए।
जब भी कोई नए राष्ट्रपति बनते है तो उनकी अविध 5 वर्ष की होगी। जब तक वह निर्वाचित नहीं होंगे उस समय तक भारत का उपराष्ट्रपति उसके पद पर कार्य करेगा। संविधान के अनुच्छेद 70 में कहा गया है कि यदि कभी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो जावे, जब भारत का राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति अपने कार्य को सम्पन्न करने में असमर्थ हों तो भारतीय संसद को उनके कार्यों के सम्पादन की व्यवस्था करनी होगी।
कठिन परिस्थिति में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायधीश राष्ट्रपति पद संभाल सकते है।
इस प्रसंग में 1969 में ही अनुच्छेद 70 के अन्तर्गत 'President's Discharge of Functions Bill' पारित किया गया। इस अधिनियम के अन्तर्गत वह व्यवस्था की गई है कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति, दोनों ही पद रिक्त होने पर सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या उसकी अनुपस्थिति में सर्वोच्च न्यायालय का उपलब्ध वरिष्ठतम न्यायाधीश राष्ट्रपति पद के कर्तव्यों को सम्पन्न करेंगे।
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