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सफाहोड़ आंदोलन (1870) यह एक सामाजिक धार्मिक एवं राजनीतिक आंदोलन था। sufahod movement.)

सफाहोड़  आंदोलन को जन्म लाल हेंब्रम ने दिया था जो कि लाल बाबा के नाम से भी प्रसिद्ध है।




सफाहोड़ आंदोलन (1870) sufahod movement.)
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सफाहोड़ आंदोलन: भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष और जनजाति

लेखक: [अमन कुमार मिश्रा]


परिचय Introduction:

प्रस्तावना: सफाहोड़ आंदोलन, जिसका आरंभ 1870 में हुआ, भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में एक महत्वपूर्ण घटना था। यह आंदोलन जनजाति समाज के लोगों की आत्म-समर्पण और आत्म-शक्ति की भावना से जुड़ा था। इस लेख में, हम सफाहोड़ आंदोलन की महत्वपूर्ण घटनाओं, उसके नेतृत्वकर्ताओं, और इसके समाज पर चर्चा करेंगे।


भारत के विभिन्न क्षेत्रों में बसे जनजाति समाज एक जुट स्वाभिमानी समाज की तरह खुद की पहचान बनाई है। इनके एक जुट शक्तिशाली  समाज हमारे सनातन संस्कृति में संवाहक है। 

परन्तु  बुद्धिजीवियों ने जनजाति समुदायों को अंबेडकर ,पेरियार ,फूले वाली वामपंथी गुट से जोड़कर सनातन विरोधी की मुहर लगाने का कार्य किया है। एवं इस आंदोलन को पूरी तरह इतिहास के पन्नो में दबाने का कार्य हुआ है क्योकि ये राम के मानने वाले थे।

आज हम हमारे संस्कृति एवं प्रकृतिक प्रेमी जनजाति समाज सफाहोड़ के बारे में बात करेंगे ,इनके द्वारा 1870 में सुरु किया गया सफहोड़ आंदोलन ,भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष एवं जनजाति भारतीय समाज को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया।


सफाहोड़ आंदोलन का उद्देश्य Objective of Safahod Movement:-

सफाहोड़ आंदोलन का मुख्य उद्देश्य था संथालों की धार्मिक पवित्रता का संवाहक बनाना और उन्हें उनकी आत्म-महत्वा का अभिवादन करना। इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष में भी अहम भूमिका निभाई।


1.सफाहोड़ आंदोलन का अर्थ होता है "सिंगबोंगा के प्रति समर्पण"

2.नेतृत्वकर्ता: लाल हेंब्रम ने दिया था जो कि लाल बाबा के नाम से भी प्रसिद्ध है। प्रभु श्री राम नाम का मंत्र दिया

3.उद्देश्य : संथालो में धार्मिक पवित्रता पर बल देना बढ़ावा देना

नेतृत्वकर्ता: Leadership:-

सफाहोड़ आंदोलन के प्रमुख नेता जैसे कि लाल हेंब्रम (लाल बाबा), पैका मुर्मू, पगान मरांडी, रसिक लाल सोरेन, और भतू सोरेन आंदोलन की मुख्य शक्ति थे। उन्होंने अपनी धृति और संकल्प से आंदोलन को सफलता की ऊँचाइयों तक पहुँचाया।सफाहोड़ आंदोलन  के प्रमुख नेता :- लाल हेंब्रम उर्फ ,  पैका मुर्मू, पगान मरांडी, रसिक लाल सोरेन, भतू सोरेन सम्बंध : संथाल जनजाति से/


सन् 1855 ई. के जिस 'संथाल हूल' को कार्ल मार्क्स ने अपनी पुस्तक 'दि नोट्स ऑफ इंडियन हिस्ट्री' में भारत की प्रथम जनक्रांति कहा, वास्तव में कहानी तो हमारी जंगे-आजादी की वहीं से शुरू होती है, लेकिन वह जनक्रांति गोरी हुकूमत की बुनियाद को उखाड़ नहीं पायी किन्तु 'सफाहोड़ आंदोलन' को जन्म देने का सबब जरूर बन गयी जिसका श्रेय जाता है लाल हेम्ब्रम को ।

संबंध और प्रभावRelationship and influence:

सफाहोड़ आंदोलन ने भारतीय समाज में सामाजिक परिवर्तन लाने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया। इसने संथाल समुदाय की आत्म-पहचान मजबूत की और उन्हें स्वतंत्रता संघर्ष में भाग लेने के लिए प्रेरित किया।


यूं. सफाहोड़ आंदोलन कोई नया आंदोलन नहीं था। सन् 1870 ई. में ही बाबा भागीरथ मांझी इसकी नींव रख चुके थे, जिसका स्वरूप तो धार्मिक था मगर लक्ष्य राजनीतिक । तथ्य गवाह है कि बाबा भागीरथ मांझी संथाल हुल की विफलता देख चुके थे। वे जान चुके थे कि भारत पशुबल का सामना पशुबल से नहीं कर सकता। इसका कारण यह था कि विद्रोहियों को अंग्रेज संगीनों की दहाड़ से दबा चुके थे। 

बाबा ने बहरहाल, अनुभव किया कि सत्ता से संघर्ष के लिये आत्म-बल चाहिए और आत्मबल की मजबूती के लिये चारित्रिक बल। यही नहीं, संथाल विद्रोह की विफलता का सबसे बड़ा कारण उन्होंने लोगों में धार्मिक भावना की कमी बताया। इसी सोच के मद्देनजर उन्होंने सत्ता के खिलाफ अहिंसात्मक संघर्ष शुरू किया, हालांकि उसका नाम 'सफाहोड़' के बदले तब 'खरवार आंदोलन' पड़ा, लेकिन उसका स्वरूप सफाहोड़ आंदोलन से किसी भी रूप में अलग-थलग नहीं था, जो बाद के दिनों में अपने असली रूप में पेश आया और जिसे मुखरित करने का श्रेय राजमहल के श्री भगवानदास और दुमका के श्री लम्बोदर मुखर्जी को जाता है ।

सफाहोड़  आंदोलन आंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक सुधारवादी आंदोलन था।


आंदोलनकारी सफाहोड़ों को 'राम-नाम' का मंत्र दिया गया। वे जिधर जाते, सिर्फ राम-नाम का ही जप करते। कहते हैं, राजमहल के तत्कालीन एस.डी.ओ. राबर्टसन ने . "कादो" नाम के एक संथाल को पीट-पीट कर अधमरा कर दिया। प्रशासन की इस क्रूरता ने सफाहोड़ों को उद्वेलित करके रख दिया। नतीजन आंदोलन उग्रतर होता चला गया। लाल हेम्ब्रम उर्फ लाल बाबा संथालों को सफेद झंडी देते थे, उन्हें जनेऊ पहनाते थे और मांस-मदिरा छुड़वाते थे। कहा तो यहाँ तक जाता है कि सारंगी बजाते, राम-नाम उच्चारते और सफेद इंडियां लहराते । संथालों का काफिला चलता देख अंग्रेज नौकरशाही घबरा उठी और ऐसी कोशिशों पर लगाम डालने की गरज से आंगन में तुलसी चौरों बनाने और राम-नाम का जाप करने पर पाबंदी लगा दी। जिसने भी निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया, हुकूमत ने वैसे ने लोगों पर जी भरकर कहर बरपा दिया।



CONCLUSION-निष्कर्ष

सफाहोड़ आंदोलन ने भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय स्थान बनाया है, जो स्वतंत्रता संघर्ष की महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है। इस लेख में, हमने इस आंदोलन की महत्वपूर्ण पहलुओं की चर्चा की है, जिससे हमारे पाठक इस महत्वपूर्ण घटना के बारे में अधिक जान सकें।




इस लेख से सबंधित कोई भी प्रश्न हो तो आप  email कर सकते अथवा हमे social midia के माध्यम से सम्पर्क कर सकते है।

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