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इटली में फासिज्म के उदय पर प्रकाश डालें ।(Throw light on the emergence of Fascism in Italy.) UPSC,NET,PCS,SSC

इटली में फासिज्म (Throw light on the emergence of Facism in Italy.) 

magadhIAS
adolf hitler and bentio mussolini



प्रादेशिक लाभ के प्रलोभन में पड़कर इटली प्रथम विश्व युद्ध में मित्रराष्ट्रों की ओर से प्रविष्ट हुआ था। 1915 ई० की लन्दन की गुप्त संधि के अनुसार इटली को कई भू-भागों पर अधिकार दिलाने का आवश्वासन दिया गया था। लेकिन, पेरिस के शान्ति सम्मेलन में उसको बहुत ही कम प्रादेशिक लाभ प्राप्त हो सके और इटली के नेता निराशा और क्षोभ की भावना लेकर ही पेरिस से वापस लौटे। नैराश्य की इस भावना के साथ ही एक घोर आर्थिक संकट भी जुड़ गया। 

युद्ध में इटली का काफी नुकसान हुआ था और उस पर विदेशी कर्ज का भारी बोझ लद गया था। देश के उद्योग-धंधे तथा व्यवसाय ठप्प पड़ गये थे तथा बेकारी की समस्या ने प्रचंड रूप धारण कर लिया था। सारा राष्ट्र हतोत्साहित था; आर्थिक संकट ने उसकी दुर्दशा कर दी थी और देश में चारों तरफ सामाजिक अशान्ति और नैतिक वतन की ज्वाला भड़क रही थी। ऐसी स्थिति में कई तरह के राजनीतिक दल सक्रिय हो उठे, जिन्होंने मजदूरों को संगठित करना शुरू किया। ये दल सीधी कार्यवाही की नीति अपनाकर कारखानों में तोड़-फोड़ और हड़ताल करने लगे । युद्ध के तुरन्त बाद के वर्षों में इटली में मजदूर हड़तालों का ताँता लग गया। देहात में कृषकों ने भी जमींदारों की परती जमीन पर अधिकार कर लिया। इस तरह इटली में पूरी अराजकता फैल रही थी और इसे नियंत्रित करने में सरकार अपने को असमर्थ पा रही थी। फलतः, इटली की दशा निरंतर बिगड़ती चली गयी।

इस परिस्थिति ने इटली के संपत्तिशाली वर्गों को चिन्तित कर दिया। अराजकता की इस स्थिति पर काबू पाने के लिए इटली के जमींदार वर्ग, धनिक-वर्ग, व्यवसायी वर्ग, भूतपूर्व सैनिक वर्ग तथा कुछ बुद्धिजीवियों ने अपने को संगठित करना शुरू किया। उनका ध्येय यह था कि अकर्मण्य और भ्रष्ट सरकार के स्थान पर ऐसी सरकार स्थापित हो, जो देश को विनाश के गर्त से बचाकर उसको सही रास्ते पर ले जा सके। अतएव, विनाशकारी तत्त्वों से लोहा लेने के लिए वे प्रतिरोधी संगठन की स्थापना करने लगे। ये संगठन 'फेसियो' कहलाते थे। कुछ ही दिनों में फेसियो-आन्दोलन एक अत्यन्त सशक्त आन्दोलन हो गया । इस दल को एक योग्य नेता मिल गया, जिसका नाम बेनिटो मुसोलिनी था ।

मुसोलिनी और फासिस्ट संगठन-शुरू में मुसोलिनी वामपंथी विचारधारा का था और इटालवी कम्युनिस्ट पार्टी का सक्रिय कार्यकता था। लेकिन, प्रथम विश्वयुद्ध के छिड़ते हो उसकी विचारधारा बदल गयी और वह घोर राष्ट्रवादी बन गया। युद्ध की समाप्ति के बाद उसने फेसियो आन्दोलन में सक्रिय भाग लेना शुरू किया। धीरे-धीरे केवल दो वर्षों में ही इटली के सभी बड़े-बड़े नगरों और औद्योगिक केन्द्रों में फेसियोज का जाल-सा बिछ गया। इन फेसियोज के सदस्य 'फासिस्ट' और इसके सिद्धान्त 'फासिज्म' कहलाये। 

मुसोलिनी ने अपनी पूरी शक्ति फासिस्टों को संगठित करने में लगा दी और इस दल का प्रभाव बड़ी तेजी से पूरे देश में फैलने लगा। 1921 ई. के चुनाव में फासिस्ट दल के पैंतीस सदस्य इटेलियन पार्लियामेण्ट के सदस्य निर्वाचित हुए। उसने अपनी शक्ति बढ़ाने के लिए एक स्वयंसेवक दल की स्थापना की। अब मुसोलिनी ने इस दल के सदस्यों को वर्दी पहनने, हथियार बाँधने, परेड करने और झण्डा रखने की शिक्षा दी। वह स्वयं इस संगठन का प्रधान सेनापति बन गया। ये स्वयंसेवक जो कमीज पहनते थे, उनका रंग काला होता था। अतः यह 'काली कमीज' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। 1922 ई० तक इटली में ढाई हजार से अधिक फेसिओज स्थापित हो चुके थे ।


रोम पर आक्रमण - सरकार की अकर्मण्यता के कारण मुसोलिनी का हौसला बहुत बढ़ गया और वह सरकार पर अधिकार जमाने की चेष्टा करने लगा। 1922 ई० तक वह प्रतिद्वन्द्वी राजनीतिक दलों का लगभग सफाया कर चुका था और इटली में अब मुसोलिनी के दल के अतिरिक्त कोई दल रह भी नहीं गया था। अपने को सर्वशक्तिमान देखकर -मुसोलिनी ने इटली की सरकार पर अपना अधिकार जमाने की योजना बना ली। 1922 ई० में उसने नेपल्स नगर में एक सभा का आयोजन किया। इसमें चालीस हजार के लगभग अस्त्र-शस्त्रों से सुसज्जित स्वयंसेवक और एक बड़ी संख्या में दल के अन्य कार्यकर्ता तथा सदस्य उपस्थित थे। अपनी शक्ति पर भरोसा कर मुसोलिनी ने सम्मेलन के खुले अधिवेशन में माँग की कि इटली का शासन-प्रबन्ध तत्काल फासिस्टों के हाथ में सौंप दिया जाए अन्यथा 'हमको रोम पर आक्रमण' करना होगा। इस कार्य के लिए उसने 27 अक्टूबर का दिन निश्चित किया। उसी दिन फासिस्टों ने नगर में प्रवेश करना शुरू कर दिया।


 इटली के अन्य बड़े नगरों में उसी दिन उत्पात शुरू हुआ तथा स्थानीय फासिस्टों ने समस्त सरकारी संस्थाओं पर अधिकार कर लिया। इतना होने पर भी सरकार कोई भी कार्यवाही करने में असमर्थ रही। इटली के प्रधानमंत्री जिओलिति ने त्याग-पत्र दे दिया। इटली के राजा विक्टर इम्यैनुयल ने मुसोलिनी को पार्टियों से एक मिली-जुली सरकार में सम्मिलित होने के लिए आमन्त्रित किया, लेकिन फासिस्ट नेता ने साफ-साफ कह दिया कि यह किसी व्यक्ति के अधीन मन्त्रिमण्डल में सम्मिलित नहीं होगा । 


इसी बीच लगभग पचास हजार स्वयंसेवक रोम नगर में घुस गये। एक भयंकर गृह-युद्ध की संभावना पैदा हो गयी। इससे घबड़ाकर राजा ने मुसोलिनी के हाथों में संत्ता सौंप देने में ही कल्याण समझा। उसने मुसोलिनी को नया मंत्रिमंडल बनाने के लिए आमन्त्रित किया। 30 अक्टूबर को मुसोलिनी ने अपने मन्त्रिमण्डल का निर्माण किया। यह घटना 'रोम पर मुसोलिनी के आक्रमण' के नाम से विख्यात है। इस प्रकार, मुसोलिनी ने बिना रक्त बहाये केवल प्रदर्शन द्वारा ही शासन पर अधिकार कर अपनी महत्त्वाकांक्षा को पूरा किया।


शासन-सत्ता पर आधिपत्य-प्रधानमन्त्री बनते ही मुसोलिनी ने राज्य की समस्त सत्ता अपने हाथों में केन्द्रित करने का प्रयास आरम्भ कर दिया। सर्वप्रथम, संसद को धमकाकर एक वर्ष के लिए उसने संपूर्ण अधिकार अपने हाथ में ले लिए और शासन के समस्त विरोधी तत्वों को निकालकर प्रमुख एवं महत्त्वपूर्ण स्थानों पर अपने आदमी नियुक्त कर दिये। मुसोलिनी संसद में फासिस्ट पार्टी को सर्वेसर्वा बनाना चाहता था। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उसने निर्वाचन सम्बन्धी एक कानून पेश किया और स्वीकृत कानून के अनुसार यह तय हुआ कि संसद के चुनाव में जिस पार्टी को सबसे अधिक मत प्राप्त हों उसके दो-तिहाई सदस्य निर्वाचित घोषित कर दिये जायें। इसी कानून के अंतर्गत संसद का चुनाव हुआ, जिसमें फासिस्ट दल को बहुमत प्राप्त हुआ और संसद की दो-तिहाई सदस्यता फासिस्ट दल को मिल गयी। यद्यपि मुसोलिनी को संसद में बहुमत प्राप्त हो गया, 


लेकिन वह किसी विरोधी दल को संसद में देखना नहीं चाहता था। शीघ्र ही उसने विरोधी दलों के खिलाफ कार्यवाही शुरू कर दी। विरोधी नेताओं को कैद कर लिया गया और उनके विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की गयी । उनसे सम्बन्धित अनेक समाचार-पत्रों का प्रकाशन बंद कर दिया गया। फासिस्ट दल को छोड़कर अन्य समस्त राजनीतिक दल तोड़ दिये गये।

न्यायालयों से जूरी पद्धति को समाप्त कर दिया गया तथा राजनीतिक अपराधियों के लिए विशेष न्यायालय स्थापित किये गये। स्कूल और कॉलेजों में फासिस्ट विचारधारा के आधार पर शिक्षा देना अनिवार्य कर दिया गया। इस प्रकार, अपने विरोधियों का दमन करके मुसोलिनी इटली का अधिनायक बन बैठा। अब वह इटली का सर्वशक्तिमान व्यक्ति था। अब कोई व्यक्ति उसके विरुद्ध उँगली उठाने का साहस नहीं कर सकता था।

संसद में फासिस्ट दल का बहुमत था, पर इसमें कुछ अन्य दलों के भी सदस्य थे जो मुसोलिनी को गवारा नहीं था। अतएव, 1928 ई० में उसने निर्वाचन सम्बन्धी एक नया कानून पास कराया जिसके अनुसार उम्मीदवारों की सूची तैयार करना फासिस्ट दल का काम हो गया और मतदाताओं को केवल इसी सूची के पक्ष या विपक्ष में अपना मत देने का अधिकार था । इस कानून के अंतर्गत इटली में जो चुनाव हुआ उसके परिणामस्वरूप संसद के सदस्य केवल फासिस्ट पार्टी के लोग ही रह गये। इस प्रकार, मुसोलिनी ने इटली से जनतान्त्रिक शासन का अंत कर समस्त सत्ता पर फासिस्ट पार्टी का प्रभुत्व कायम कर लिया ।


फासिज्म का दृढ़ीकरण— Consolidation of Fascism—

शासन सत्ता को एक सुदृढ़ आधार प्रदान करने के लिए मुसोलिनी ने फासिस्ट पार्टी का जबरदस्त संगठन किया और ऐसी व्यवस्था की ताकि पार्टी में उसकी प्रधानता बनी रहे। राज्य के साथ पार्टी का अभिन्न सम्बन्ध कायम हुआ। नीचे से लेकर सर्वोच्च स्तर तक पार्टी के श्रृंखलाओं का एकीकरण किया गया तथा सबसे ऊपर - निगरानी रखने के लिए फासिस्ट ग्रैंड कौंसिल बनायी गयी। दल के प्रमुख पच्चीस व्यक्ति इसके सदस्य होते थे और उसका स्थायी अध्यक्ष स्वयं मुसोलिनी था। ग्रैंड कौंसिल को राज्य की ओर से कानूनी मान्यता दी गयी और मन्त्रि परिषद् के सदस्य इसके पदेन सदस्य हुए। इस प्रकार, मंत्रि परिषद् और पार्टी में अभेद्य सम्बन्ध स्थापित हुआ । पार्टी और सरकार के बीच कोई भेद नहीं रहा । 


सारे देश को फासिस्ट रंग में रँगने के लिए शिक्षा की पूरी व्यवस्था बदल दी गयी। बच्चों के लिए फासिस्टवादी सिद्धान्तों की शिक्षा अनिवार्य कर दी गयी । शिक्षकों की नियुक्ति करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता था कि वे फासिस्ट सिद्धान्त के समर्थक हों। युवकों के लिए सैनिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गयी तथा शिक्षा में राष्ट्रवाद की विकृत भावना को जागृत करने पर विशेष जोर दिया गया। आर्थिक व्यवस्था में सुधार के लिए भी कई कार्य किये गये। हड़तालों और मजदूर यूनियनों की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया। 


इटली ने एक नवीन आर्थिक व्यवस्था का निर्माण किया, जिसको राष्ट्रीय सिण्डिकलिज्म कहा गया। इसके अनुसार मजदूरों और मालिकों के सम्बन्धों को ठीक करने और देश की आर्थिक दशा उन्नत करने के लिए मुसोलिनी ने एक कानून द्वारा 1926 ई. में मिल मालिकों और मजदूरों के सिण्डिकेटों की रचना की। इन सब सिण्डिकेटों की संख्या तेरह थी। इसमें छः पूँजीपतियों के राष्ट्रीय सिण्डिकेट, छः मजदूरों के सिण्डिकेट तथा एक सिण्डिकेट डाक्टरों और वकीलों का था। इन सबका नियंत्रण एक मंत्री द्वारा किया जाता था। मिल मालिकों और मजदूरों के झगड़ों का फैसला करने के लिए विशेष न्यायालय की स्थापना हुई जिसके निर्णय के विरुद्ध कोई अपील नहीं की जा सकती थी ।

मुसोलिनी की सफलता के कारण—Reasons for the success of Mussolini—


मुसोलिनी को इटालवी जनता का इतने बड़े पैमाने पर समर्थन क्यों मिला ? इसके लिए तत्कालीन परिस्थितियाँ जिम्मेदार थीं, जिनसे मुसोलिनी ने नाजायज लाभ उठा कर सत्ता पर कब्जा कर लिया। प्रथम विश्व युद्ध के बाद इटली में घोर असन्तोष व्याप्त था। पेरिस के सम्मेलन में इटली के उन दावों को स्वीकार नहीं किया गया था, जिनको इटली न्यायपूर्ण मानता था। उग्रवादी इटालवी राष्ट्रवादियों का ख्याल था कि उनकी दुर्बल सरकार की नीति के कारण ही इटली को अपमानित होना पड़ा था। अतः, इटली के ये लोग एक शक्तिशाली सरकार की स्थापना चाहते थे जो पेरिस सम्मेलन के अपमान का प्रतिकार ले सके। इटली का यह वर्ग समझता था कि मुसोलिनी के नेतृत्व में ही वह अपनी राष्ट्रीय अभिलाषाओं की पूर्ति कर सकता है।


लेकिन, इटली की समाजिक संरचना मुसोलिनी के उदय का सर्वप्रमुख कारण थी। इटली के आर्थिक साधनों और राष्ट्रीय संपदा पर केवल कुछ ही लोगों का एकाधिकार था और युद्ध के बाद निम्न वर्गों के द्वारा इस एकाधिकार को अधिकाधिक चुनौती दी जा रही थी। प्रथम विश्व युद्ध के प्रभाव के कारण इटली की आर्थिक स्थिति अत्यन्त डावाँडोल हो गयी थी । युद्ध में भयंकर क्षति के कारण वह ऋण के भार से ग्रसित हो गया था। इस कारण, सिक्के का बार-बार अवमूल्यन करना पड़ा और मुद्रास्फीति ने आर्थिक व्यवस्था को दबोच दिया। 


व्यापार, उद्योग-धंधे तथा कृषि सभी पर इसका बुरा असर पड़ा। अनेक कारखानों के बंद हो जाने से लाखों मजदूर बेरोजगार हो गये और अपदस्थ सैनिक भी बिना कामकाज के हो गये । इस प्रकार, शहरों तथा गाँवों में बेरोजगारी दिन-पर-दिन बढ़ती जा रही थी। आर्थिक संकट से पीड़ित ऐसे सभी तत्त्वों को इटालवी कम्युनिस्ट पार्टी ने संगठित करना शुरू ...किया। इसके परिणामस्वरूप इटली में सामाजिक क्रांति की पृष्ठभूमि तैयार होने लगी। इस संभावना से आतंकित होकर परम्परागत इटालवी अर्थव्यवस्था के निहित स्वार्थ, अर्थात् पूँजीपति और जमींदारों ने मुसोलिनी का समर्थन करना शुरू किया; क्योंकि वह अब अपने को बोल्शेविकवाद का घोर विरोधी होने का दावा करता था। मुसोलिनी को सभी निहित स्वार्थी और प्रतिक्रियावादियों का अपूर्व समर्थन मिला और इसी समर्थन के बलबूते पर उसने सत्ता का अधिग्रहण किया ।





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