पहली बार नीति निदेशक तत्व और मौलिक अधिकारों का टकराव।
सविधानं बनने के 1 वर्ष बाद ही न्यायपालिका में यह मुद्दा उठा गया की। नीति निदेशक तत्व और मौलिक अधिकार दोनो में कौन सबसे अधिक प्रभावी है, , नित्ति निदेशक तत्व बड़ा है , या मौलिक अधिकार।
आज सारा confution दूर हो जाएगा ,champakam dorairajan vs state of ,madras case (1951) को लेकर । आइए जानते,/ समझते है।
चंपकम दोरायराजन बनाम मद्रास राज्य, 1951,
मान लीजिए आप किसी School, college , में admission लेने जाते है या चाहते है, लेकिन पता चलता है, वहां तो जाती धर्म के आधार पर admission दी जाती है, अर्थात, अगर आप किसी विशेष जाती समुदाय से है तो ही आपको प्रवेश मिलेगा अन्यथा नही।। ऐसे में योग्य होते हुए भी उस छात्र/छात्रा को प्रवेश मिलने से वंचित कर दिया जाता है ।
कहानी यहां से सुरु होती।।
चंपकम दोरायराजन मद्रास के रहने वाली एक ब्राह्मण महिला थी ,उन्हें मेडिकल कॉलेज में Admission लेना था
लेकिन 1927 के एक आदेश के अनुसार मद्रास में शिक्षण संस्थानों में शीट की व्यवस्था आरक्षण के अनुसार की हुई थी पहले से ही।।जो इस तरह था
1927 के आदेश के अनुसार।
मद्रास की प्रत्येक 14 सीटों पर,
6 सीट। गैर ब्राह्मणों को
2 सीट पिछड़े हिंदुओ को
2 सीट हरिजनों को
2 सीट ब्राह्मणों को
1 मुश्लिम समुदायों के लिए
1 ईसाई समुदायों के लिए
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चंपकम दोरायराजन जब कॉलेज गई admission लेने तो कॉलेज के तरफ से कहा गया, आपका प्रवेश नही हो पायेगा ,क्योकि,ब्राह्मण का 2 सीट था वो full हो चुका है इश्लिये आपको admission नही हो सकता।
अब यहां मौलिक अधिकार में Article 15 में साफ साफ लिखा है। "राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध केवल, धर्म मूलवंश, जाती, लिंग, या जन्मस्थान या इनमें से किसी आधार पर कोई विभेद(भेदभाव) नही करेगा"
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indian constitution articles 15 :magadhias |
Indian constitution articles 15 मौलिक अधिकार
लगभग यही बात सविधानं के अनुच्छेद 29 में भी किया गया है " राज्य द्वारा पोषित या राज्य- निधि में सहायता पाने वाले किसी भी संस्था में प्रवेश से किसी नागरिक को केवल धर्म मूलवंश, जाती, लिंग, या भाषा इनमें से किसी के आधार पर वंचित नही करेगा।"
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fundamental right article 29: magadhias |
सविधानं में यह प्रावधान होते हुए भी, मद्रास सरकार का 1927 का वो आदेश लागू था जारी था।
मद्रास राज्य का 1927 का आदेश, के प्रावधान के कारण निराश होकर अंततः चंपकम दोरायराजन नित्ति निदेशक तत्व के अनुच्छेद 226 को आधार बनाकर चंपकम दोरायराजन मद्रास उच्य न्यायलय में चुनौती दे दी, और अपने मौलिक अधिकारों को लागू करने की मांग की,
मद्रास उच्य न्यायलय ने चंपकम दोरायराजन के तर्कों को सही माना और मद्रास राज्य के 1927 के आदेश को रद्द कर दिया,
मद्रास उच्य न्यायलय के इस फैसले के विरुद्ध, मद्रास राज्य ने इस फैसले को सर्वोच्य न्यायलय में चुनौती दे दी। यहां पर मद्रास सरकार ने यह तर्क दिया कि, चुकी सविधानं का अनुच्छेद 46 में जो कि नित्ति निदेशक तत्व में आता है। उसमे राज्य को निर्देश दिए गए है कि वो " अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति के उत्थान के लिए कानून बनाये,"
और जो अनुच्छेद 37 कहता है, की नित्ति निदेशक तत्व शाशन की मूल आवश्यकता है। ऐसे में मूल अधिकारों पर नित्ति निदेशक तत्व को प्राथमिकता दी जानी चाहिए या नही।
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decision of supreme court |
उच्चतम न्यायलय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए, न सिर्फ उच्य न्यायलय के फैसले को बरकरार रखा बल्कि ये भी कहा राज्य जाती ,धर्म के आधार पर शिक्षण संस्थानों में admission या नोकरी देने से मना नही कर सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा, नित्ति निदेशक तत्व मौलिक अधिकार के विरुद्ध नही जा सकता अर्थात मौलिक अधिकार और DPSP दोनो का अपना महत्व है।
सर्वोच्य न्यायलय के इस फैसले को, निष्क्रिय और निष्प्रभावी बनाने के लिए, जवाहरलाल नेहरू ने संसद में पहली सविधानं संसोधन bill पेश किया, Dr अंबेडकर ने इस bill को भरपूर समर्थन किया, श्याम प्रसाद मुखर्जी ने भी इस bill का भरपूर विरोध किया था। किसी तरह bill पास हो गया। उसके बाद सविधानं में एक नया अनुच्छेद जोड़ा गया, सविधानं में अनुच्छेद 15 (4) जोड़ा गया। इसमें राज्य को यह शक्ति दी गई ,राज्य सामाजिक व शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़े हुए नागरिकों के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है।
इसके बाद से ही आरक्षण वाली व्यवस्था सुरु हो गई, जो अभी भी चल रही।
नित्ति निदेशक तत्व के
champakam dorairajan vs state of ,madras case (1951), आरक्षण पर पहली बार संसोधन, (पहला सविधानं संसोधन 1951) के द्वारा 15(4) जोड़ा गया।
चंपकम दोरायराजन बनाम मद्रास राज्य.(1951) champakam dorairajan vs state of Madras, case in Hindi
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