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भारत के पहली सैन्य संगठन Indian National Army, सुभाष चंद्र बोस के आजाद हिंद फौज के महान कार्यो का विश्लेषण,UPSC,PCS

आजद हिन्द सरकार महत्व एवं संरचना



पृष्टभूमि:- (Background)


आजाद हिंद फौज (Indian National Army) का विचार सर्वप्रथम  पहले ब्रिटिश सेना में कार्यरत 14वीं पंजाब रेजिमेंट में तैनात  मोहन सिंह के मन मे आया, जब वो मालाया में थे ( मलेशिया)  ब्रिटिश  सम्राज्य हर तरफ फैला हुआ था , राज्यवस्था को अपने अनुसार सुचारू रूप से संचालित करने के लिए, भारतीय सैनिकों को विदेशी धरती पर भेजा जाता रहा है, इन्ही सैनिकों में से एक मोहन सिंघ थे।

उधर द्वितीय विश्व युद्ध  प्रभावी ढंग से आगे बढ़ रही थी ,जापानी सेना जो ब्रिटिश कब्जे वाले क्षेत्र को संघर्ष के द्वारा उसे  अपने अधीन में कर रही थी।

जापान के 15वी सेना रेजिमेंट में खुफिया प्रमुख के तौर पर कार्यरत मेजर फुजीवार इवाईची   जिन्होने जापान की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका में थे ।
फुजीवार ,   जापान के साथ मित्रता और सहयोग को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन, विदेशी चीनी और मलय सुल्तान से खुफिया जानकारी एकत्र करने और संपर्क करने का काम किया । 

और समय की मांग को समझते हुए इन्होंने, सेना बनाने की व्यवस्था की, जिसे दक्षिण पूर्व एशिया में ब्रिटिश और अन्य मित्र देशों की सेना से लड़ने के लिए प्रशिक्षित किया जाना था ।

मोहन सिंह British army में काम कर रहे  भारतीय सैनिक में एक अफसर थे , यह एक ऐसा समय था जब ब्रिटिश सरकार पूर्व में अधीन किये क्षेत्रो पर से अपना नियंत्रण खो रही, थी, उस time जब ब्रिटिश सेना पीछे हट रही थी,तो मोहन सिंह जापानियों के साथ चले गए थे।

मोहन सिंह ,जापानियों और भारतीयों के दिल मे ब्रिटिश विरोधी  भावनाएं भड़काते रहे,  लेकिन उस समय तक वो भारतीयों को सैनिक अस्तर पर संगठित करने में बारे में नही सोचा था।

17 february 1942 सिंगापुर के  पतन ( fall) के दो दिन बाद लगभग 45000 भारतीय जो सिंगापुर में  रहते थे/ काम करते थे, या  ब्रिटिशों के तरफ से लड़ रहे थे, फरर पार्क में इकठा हुए वह अंग्रेजो ने उन्हें जापानियों के हवाले कर दिया। क्योकि अंग्रेजो की अच्छी खासी पिटाई हुई थी।

सिंगापुर का जापानियों के हाथ मे आना इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण था, क्योकि इससे 45000 हजार   युद्धबंदी मोहन सिंह के प्रभाव क्षेत्र में आ गए।
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आश्चर्य रुप से जापानियों ने 45000 भारतीय युद्धबंदी को स्वागत किया, उस उम्मीद मे ताकि लड़ाई में हमारी मदद कर सके, जापानियों ने भारत के स्वतंत्रता के लिए वचन दिया। जापानी सरकार हो या सैनिक सभी ब्रिटिश विरोधी भावनाओ को प्रोत्साहित किया।

मोहन सिंह ने यह युद्धबंदी भारतीयों के बल पर भारत को आजाद कराने की विचार से एक सेना बनाने का निर्णय लिया, 1942 में indian independents Lig का गठन किया गया और भारत की आजादी के लिए indian national army के गठन का निर्णय लिया गया  ( INA) इसमें शामिल होने के लिए लगभग 20000  हजार सैनिक उत्सुक्ता से इस सैन्य संगठन का हिस्सा बन गए थे ,धीरे धीरे

1942 के अंत तक 40 हजार लोग Indian national army (आजाद हिंद फौज) में शामिल हो ही गए थे।

जापानियों ने भारत मे रह रहे विभिन्न भारतीय  राष्ट्रवादियों को  जो ब्रिटिश विरोधी थे संगठन बनाने में ,जापानियों ने उन्हें भरपूर सहयोग किया,  तब उस समय भारतीय राष्ट्रवादियों ने Indian independents Lig (IIL) की स्थापना की,  इसका मुख्यालय सिंगापुर में था, दक्षिण Asia में रह रहे भारतीयों के कल्याण के लिए कार्य किया।


March 1942 में जापानियों ने प्रस्ताव दिया कि जो INA है  वो IIL की सैन्य शाखा बन जाय,  1912  में  Delhi conspiracy Case में अंग्रेजो से बच निकले   रास बिहारी बोस जापान में ही थे , रास बिहारी बोस वहां लोगो के बीच रहते थे,इश्लिये उन्हें ही इस संगठन के नेतृत्व की ज़िमेदारी दी गई।  ,इसकी औपचारिक घोषणा june 1942 में बैंकॉक में की गई थी ।

रास बिहारी बोस के निमंत्रण पर सुभाष बोस 13 जून 1943 को पूर्वी एशिया आए, उन्हें indian independent Lig का अध्यक्ष और INA का नेता बनाया जिसे लोकप्रिय रूप से, आजाद हिंद फौज ' कहा जाता है।

भारतीय के सोच कुछ औऱ थी, उधर जापानियों के सोच कुछ और।

1942 के अंत तक भारतीय को महसूस होने लगा की जापानियों उनका इस्तेमाल कर रहे। भारतीयों को रास बिहारी बोस पर भरोसा नही किया,

दिसंबर में मोहन सिंह और जापानियों के बीच गहरे मतभेद उतप्पन हो गए,  बाद में INA को भंग करने का आदेश दिया  दरअसल जापानी चाहते थे कि भारतीय फौज 2000-20000 सैनिक की हो यानी।प्रतीकात्मक हो (symbolic) हो जबकि मोहन सिंह का लक्ष्य दो लाख सिपाहियों का था,बाद में मोहन सिंह और निरंजन गिल को  में जापानियों ने गिरफ्तार कर लिया और उन्हें Singapore का ही एक आइलैंड Pulau Ubin( पुलाऊ उबिन) से उन्हें निर्वासित कर दिया( भू भाग से निकाल देना)

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subhas chandra bos 1940, source : nas.gov.sg 

सुभाष चंद्र बोस जन्म:

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था। उनकी माता का नाम प्रभावती दत्त बोस (Prabhavati Dutt Bose) और पिता का नाम जानकीनाथ बोस (Janakinath Bose) था।
 वे एक संपन्न बंगाली परिवार से संबंध रखते थे. उनके पिता  जानकीनाथ बोस कटक शहर के एक मशहूर वक़ील थे. नेताजी सुभाष चंद्र बोस समेत उनकी 14 संतानें थीं. जिनमें 8 बेटे और 6 बेटियां थीं. सुभाष चंद्र उनकी 9वीं संतान और पांचवें बेटे थे. 

उनकी जयंती 23 जनवरी को 'पराक्रम दिवस' के रूप में मनाई जाती है। शिक्षा और प्रारंभिक जीवन: वर्ष 1919 में उन्होंने भारतीय सिविल सेवा (ICS) की परीक्षा पास की थी। हालाँकि बाद में बोस ने सिविल सेवा से त्यागपत्र दे दिया। सुभाष चंद्र बोस, विवेकानंद शिक्षा से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे जबकि चितरंजन दास (Chittaranjan Das) उनके राजनीतिक गुरु थे। वर्ष 1921 में बोस ने चित्तरंजन दास की स्वराज पार्टी द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र 'फॉरवर्ड' के संपादन का कार्यभार संभाला और बाद में अपना खुद का समाचार पत्र ‘स्वराज’ शुरू किया।

आजाद हिंद फौज का दूसरा चरण उस वक्त सुरु हुआ, जब सुभाष चंद्र बोस को जर्मन और जापानी submarine  के through 2 july 1943 को सिंगापुर लाया गया।।


1940 में  बोस को उनकी उपनिवेश विरोधी गतिविधियों के लिए अंग्रेजो ने इन्हें कैद कर लिया, जेल गए,वह हड़ताल भी किये, अंग्रेजो ने उन्हें नजरबंद कर दिया, बाद में वो एक मूक बधिर ( deaf mute) पठान होने के नाटक करके अफगानिस्तान के  रास्ते जर्मनी आगये, 2अप्रैल 1941 को बर्लिन पहुचे,
 
सुभाष चन्द्र बोस 1943 में जर्मनी छोड़कर जापान पहुँचे वहां से वे सिंगापुर गए और कैप्टन मोहन सिंह द्वारा बनाया आजाद हिंद फौज की कमान अपने हाथों में ले ली, इस समय आजाद हिंद फौज नेता रास बिहारी बोस संभाल रहे थे

टोक्यो में आगमन, 1943 की सुरुअति से ही बोस अपनी ध्यान दक्षिण पूर्व एशिया की ओर लगाया,   जापान में सिंगापुर में बहुत से भारतीयों  के साथ बोस ने माना कि अंग्रेजो से लड़ने में एक उपनिवेश विरोधी ताकते यहां स्थापित करने के लिए उपजाऊ जमीन है।

1943 को जापानियों ने East Asia में भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन का नेतृत्व करने के लिए आमंत्रित किया, बोस स्वीकार कर लिए,   उन्होंने भारतीय समुदायों कर लिए रेडियो पर अपनी संदेश से  भारतीय स्वतंत्रता संगर्ष में शामिल होने का प्रेरित किया आग्रह किया।

रासबिहारी बोस जैसे तैसे INA और IIL को चला रहे थे लेकिन जयदा  सफलता नही मिलतीIIL के बहुत से नेता लोग इस्तीफा देने लगे माहौल बिखरने जैसा बना हुआ था, इश्थिति को संभालने के लिए जापानियों ने INA और अन्य नेताओं के साथ बैठककर  कहा गया कि ,अब INA और IIL को सुभाष चंद्र बोस ही नेतृत्व कर सकते है,

कुछ दिन बाद बोस सिंगापुर पहुचे एक समारोह किया और खामोस और बन्द नब्ज की तरह INA और IIL में  जान फूंक दिया पुनर्जीवित कर दिया,   सभी लोग इस सैन्य संगठन में शामिल होने के लिए आने लगे, बगान श्रमिक हो या बैरिस्टर , चुकी  इन लोगो को अंग्रेजो के विरुद्ध संगर्ष करना था, लेकिन फिलहाल इनके पास कोई सैन्य अनुभव नही था।

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एक अनुशासन से परिपूर्ण सेना तैयार , करने के लिए,  लोगो को अनुशासित करने के किये बोस ने INA अधिकारियों के लिए Azad School  स्थापना की ,45 volunteers को advance traning के लिए जापान भेजा गया, IIL अपनी दक्षिण एशिया में अपनी जितनी भी office थी उसे पुनर्गठन किया गया,

9 जुलाइ को सभी INA सैनिकों एक जगह इकठ्ठा होते है, सुभाष चंद्र   बोस के समक्ष, संबोधन करते हुए बोस कहते है " मैं चाहता हु की बहादुर भारतीय महिलाओं की एक यूनिट मौत को मात देने वाली रेजिमेंट बने जो उस तलवार को चलाएगी जो झांसी की रानी ने 1857 में  भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम में जीती थी,"

बोस की रैली में  उपश्थित डॉ लक्ष्मी जो INA में अधिक सक्रिय रहने वाली महिलाओं में से थी,  इन्होंने घर घर जागर महिलाओं को रेजिमेंट में शामिल होने के लिए प्रेरित किया, क्योकि इस समय महिलाओं को पारंपरिक घर के काम करने तक ही समझा जाता था।

और 4 दिन बाद सुभाष चन्द्र बोस 12 जुलाइ  को सिंगापुर की एक सभा मे भाषण दे रहे थे अपने विचार लोगो तक पहुचा रहे थे ,जिसमे कई देशों से करीब 24000 - 26000 महिलाएं शामिल थी, उसी सभा मे सुभाष चन्द्र बोस ने ,महिला रेजिमेंट बनाने की घोषणा किये, और इस रेजिमेंट का नाम  रानी झांसी रेजिमेंट रखा गया  और 15 जुलाइ 1943  तक 20 लड़की सैनिकों की भर्ती की गई, और महीने के अंत तक 50 से अधिक महिलाएं रानी झांसी रेजिमेंट में भर्ती ही चुकी थी अपनी सेवाएं दे रही थी। डॉ  लक्ष्मी स्वामीनाथन इस रेजिमेंट की पहली कैप्टन बनी ,नवम्बर 1943 तक 300 से 340 शिविर में मौजूद थे, यह ऐसे सिपाही थे जिन्होंने कभी भी भारतीय भूमि पर कदम नही रखा था, फिर भी अपने मातृभूमि को गुलामी  की बेड़ियों से स्वतंत्र करने के लिए लड़ना चाहते थे, देश के प्रति एक जुनून था,

 झांसी की रानी रेजिमेंट दो डिपार्टमेंट में  विभाजित थी
1. Military
2. Familiarity 

किसी भी डिपार्टमेंट में joine  करने के लिए बहुत ही कठिन ट्रेनिंग दी जाती थी उसके बाद ही जॉइनिंग मिलती थी,  वर्दी का रंग खाकी ही था, ,बाल छोटे छोटे रखना होता था, आज के ही अनुसार रैंक के हिसाब से कंधे पर बैज लगाया जाता था


आजाद हिंद फौज का मुख्यालय रंगून और सिंगापुर में बनाये गए।


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provisional goverment of ajad hind 1943, source:nas.gov.sg 

सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार


सुभाष चंद्र बोस एक अस्थायी सरकार बनानने की घोषणा की  21 october 1943 को बोस ने   आजाद हिंद (स्वतंत्र भारत की)  अंतरिम सरकार के गठन की घोषणा की,

सिंगापुर में सुभाषचंद्र बोस ने प्रोविजनल गवर्नमेंट ऑफ फ्री इंडिया, यानी आजाद हिंद सरकार बनाने का ऐलान किया। सरकार में 11 मंत्री और आईएनए के 8 प्रतिनिधि थे।

जिसमे केबिनेट की तरह  प्रधानमंत्री  वित्त मंत्री सूचना प्रसारण मंत्री भी थे

इस सरकार को सबसे पहले जापान ने मान्यता भी दी, सरकार बनाकर बोस ने जापानियों के बराबर भारत के लोगो को ला खड़ा कर दिया था, विभिन्न देशों ने इस सरकार को मान्यता भी दी। सुभाष चन्द्र बोस अखंड भारत के पहली सरकार थी।

21 october 1943 को  आजाद हिंद फौज अन्तरिम सरकार के गठन की घोषणा की

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subhas chandra bos otha , source :nas.gov.sg

                

मंत्रिमंडल के सदस्य


>रास बिहारी बोस - सर्वोच्य सलाहकार
>डॉ (capt) लक्ष्मी सहगल - महिला संगठन मंत्री
>लेफ्टिनेंट कर्नल शाह नवाज खान -Indian National Army के प्रतिनिधि
>लेफ्टिनेंट कर्नल अजीज अहमद - Indian National Army के प्रतिनिधि
>लेफ्टिनेंट कर्नल एसी चटर्जी - वित्त मंत्री
>श्री ए एम सहाय - मंत्रीमंडल अस्तर के सचिव
>श्री एस ए अय्यर - सूचना प्रसार मंत्री
>करीम जियानी -  बर्मा से सलाहकार
>देबनाथ दासों,सरदार ईश्वर सिंह -
थाईलैंड से सलाहकार
>डीएम खान -   हॉंगकॉंग से सलाहकार
>ए येलप्पा ,एएन सरकार- सिंगापुर से सलाहकार
> लेफ्टिनेंट कर्नल जेके भोंसले - Indian national Army के प्रतिनिधि
>लेफ्टिनेंट कर्नल लोगनाथन - Indiana national army के प्रतिनिधि
>लेफ्टिनेंट कर्नल एहसान कादिर - indian National Army के प्रतिनिधि
> लेफ्टिनेंट कर्नल एमजेड कियानी , Indian National Army के प्रतिनिधि
>लेफ्टिनेंट कर्नल एन भगतो - Indian National Army के प्रतिनिधि

>लेफ्टिनेंट कर्नल गुलजार सिंह - indian National Army के प्रतिनिधि


तथा बहुत से लोग जो आजाद हिंद फौज के प्रतिनिधि थे जैसे।
कर्नल जेके भोंसले, लेफ्टिनेंट कर्नल लोगनाथन, एहसान कादिर, इन एर्स8 भागतो, लेफ्टिनेंट कर्नल शाह अजीज अहमद, लेफ्टिनेंट कर्नल गुलजार सिंह।

सुभाष चन्द्र बोस,  एशिया में रहने वाले जितने भी देशभक्त थे लगभग 30-31 लाख लोग आए बोस कहते है मुझे 3 million peoples और कम से कम 3 करोड़ डॉलर की जरूरत है, और उम्मीद है कि मिल जायेंगे।

आजाद हिंद की अंतरिम सरकार के गठन के साथ arms revolution के लिये भारतीय समुदायों की लामबंदी तेज हो गई थी, मलाया,थाईलैंड,बर्मा में लोगो के उत्साह चरम पर थी,  अन्य लोगो ने INA fund में उदारतापूर्वक पैसा दिया ,gold दिया, सोना ज्यादातर महिलाओं ने दिए अपनी आभूषण दे देती थी, जबकि अमीर भारतीय परिवारों ने बोस की रैलियों सभाओं में  भाग लेने के बाद  बड़ी बड़ी रकम दी,  खाद्य पदार्थ, जैसे अन्य वस्तुओं को भी लोगो के तरफ से दान में दिया गया।जो INA को काम आय । आजाद हिन्द सरकार  सभी सदस्य  अपनी सरकार के प्रति प्रति पूर्ण रूप से प्रतिबद्ध थी, महिलाएं अपनी जमा पूंजी लगाती थी यहां तक  गहना भी बेचकर आजाद हिंद सरकार को  आगे बढाने के लिए समर्पित थी

सुभाष चंद्र बोस भारत को जल्द से जल्द आंग्रेजी सरकार से मुक्त कराकर एक स्वतंत्र भारत देखना चाहते थे। इसी बीच  29 दिसंबर 1943। सुभाषचंद्र बोस आजाद हिंद सरकार के प्रधानमंत्री बनकर पोर्ट ब्लेयर पहुंचते है और 30 दिसंबर को उन्होंने पोर्ट ब्लेयर में झंडा फहराया। पहली बार अंग्रेजों से छिनी आजाद जमीन पर भारतीय पीएम के रूप में झंडा फहराया था।

जापान ने अंडमान - निकोबार द्वीप को इस अस्थाई सरकार को दे दिए कुछ दिन बाद सुभाष इन द्वीपों में  गये और उनका नया नामकरण किया। अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप तथा निकोबार का स्वराज्य द्वीप रखा गया। 30 दिसम्बर 1943 को इन द्वीपों पर स्वतन्त्र भारत का ध्वज भी फहरा दिया गया। 4 फ़रवरी 1944 को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा भयंकर आक्रमण किया और कोहिमा, पलेल आदि कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया।। आजाद हिंद फौज का मनोबल शिखर पर था, इशमे सामिल सभी सदस्य अपनी सर्वश्रेष्ठ दे रहे थे। कोई पैसे से तो कोई शरीर से 

अप्रैल 1944 ,में भारतीय समुदायों के दान के सही से प्रबंधन (management) के लिए रंगून में  आजाद हिंद बैंक की स्थापना की गई।

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subhash chandra bos addressed gandhi ji,INA

6 जुलाई 1944 को सुभाष चंद्र बोस ने आजाद हिंद रेडियो पर बोलते हुए गांधी जी को संबोधित किया  भारत की स्वाधीनता के आखरी युद्ध शुरू हो चुका है। राष्ट्रपिता  भारत की मुक्ति के इस पवित्र युद्ध से हमे आपका आशीर्वाद और शुभकामनाएं चाहते है।।  

इस समय तक आजाद हिंद सरकार पूरे परिपक्व रूप से कार्य कर रही थी, यही कारण है कि आजाद हिंद सरकार को 9 देशों ने दी  थी मान्यता ,भारत की भूमि से बाहर एक सशक्त सरकार का गठन हो चुका था जिसमे देशभक्ति से लबरेज अधिकांस आजाद हिंद के सिपाही  थे

आजाद हिंद सरकार में सुभाष खुद राज्य प्रमुख, पीएम और युद्ध मंत्री थे। इस सरकार को जापान, जर्मनी, इटली, क्रोएशिया, बर्मा, थाईलैंड, फिलीपींस, मंचूरिया और चीन ने मान्यता दे दी थी।। यह ऐसे देश तो जिनका अंग्रेजो के साथ दुश्मनी थी ।
    
22 सितम्बर 1944 को शहीदी दिवस मनाते हुये सुभाष बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा -

हमारी मातृभूमि स्वतन्त्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा। यह स्वतन्त्रता की देवी की माँग है।

आजाद हिंद फौज की एक। बटालियन शाह नवाज की कमान में जापानि फ़ौज के साथ भारत- बर्मा सीमा पर इम्फाल के हमले में भाग लेने के लिए भेजी गई,

लेकिन वहां भारतीय सैनिकों के साथ जो दुर्व्यवहार हुआ उससे उनका मनोबल टूट गया, उन्हें न केवल रसद और हथियार से भी वंचित रखा गया। बल्कि जापानी सैनिकों के लिए, निम्न श्रेणी के काम भी करने के लिए बाध्य किया गया, जापानी सैनिक पीछे हटने लगे। इसके बाद तो इस बात की कोई उम्मीद ही नही रही कि  आजाद हिंद फौज भारत को मुक्त करा सकती है, जापान के आत्मसमर्पण के बाद जब आजाद हिंद फौज के सिपाहियों को युद्ध बंदी के रूप में भारत लाया गया और उन्हें कठोर दंड देने की बात उठने लगी तब एक और आंदोलन छिड़ गया।



(सुभाष चंद्र बोस 1897-1985) 

Subhas Chandra bos भारत के सबसे प्रमुख राष्ट्रवादी नेताओ में से एक थे,इनके विचार  तिलक और पटेल, की तरह ही ,सुलझे राष्ट्रवादी की थी,   सुभाष चंद्र बोस सशस्त्र ( arms revolution) को ही एक मात्र तरीका बताया तभी  भारत आजद हो सकता है।

उन्होंने प्रसिद्ध नारा दिल्ली चलो'  दिया उन्होंने भारतीय को स्वतंत्रता का वादा करते हुए कहा,  तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हे आजादी दूँगा।


magadhias
indian freedom fighter and mahatma gandhi






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