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मगध साम्राज्य का उत्कर्ष Rise of Magadha Empire ,UPSC, PCS, SSC,

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मगध राज्य का विस्तार वर्तमान बिहार के दक्षिणी में था। इसके उत्तर में गंगा, पश्चमी में सोन, पूर्व में चम्पा नदी दक्षिण में विन्ध्यपर्वत श्रेणियां थी। मगध साम्राज्यवाद की दौड़ में सबसे आगे रहा है।
मगध की राजनीतिक सर्वोच्यता की प्राप्ति को पुराण, बौद्ध व जैन स्रोतों के तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर रेखांकित किया गया है।


मगध साम्राज्य के प्रारंभिक राजवंश की कालखंड


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नोट :- हर्यंक, शिशुनाग व नंद वंशों का कालक्रम बुद्ध की मृत्यु तिथि (486 ई.पू.) के आधार पर स्वीकृत है। बौद्ध परम्परा के अनुसार बुद्ध की मृत्यु, अजातशत्रु के राज्याभिषेक के 8वें वर्ष हुई थी।

मगध पर शासन करने वाले प्रथम राजवंश के विषय में पुराणों व बौद्ध ग्रंथों में मतभेद है महाभारत व पुराणों के अनुसार मगध का प्राथमिक राजवंश 'वृहद्रथ वंश' था तथा राजधानी गिरिव्रज थी जिसे मगधपुर, वृहदथपुर, वसुमति, कुशाग्रपुर व बिम्बिसारपुरी भी कहा गया है रामायण के अनुसार 'वसु' ने गिरिव्रज या वसुमति की स्थापना की जो वृहद्रथ का पिता था। वृहद्रथ, जरासंघ व रिपुंजय इस वंश के शासक हुए जरासंघ ने सर्वप्रथम गिरिवज्र को अपनी राजधानी बनाया था। मगध का स्पष्ट उल्लेख सर्वप्रथम अथर्ववेद में मिलता है।

हर्यक वंश (पितृहन्ता वंश)
बिम्बिसार (545 ई.पू.-492 ई.पू.)


हर्यंक कुल के लोग नाग वंश की एक उपशाखा थे। जिसका संस्थापक बिम्बिसार था। इसे ही मगध साम्राज्य का वास्तविक संस्थापक कहा जाता था।

डी.आर. भण्डारकर के अनुसार- बिम्बिसार प्रारम्भ में लिच्छिवियों का सेनापति था। सुतनिपात में लिच्छिवियों के नगर, वैशाली को मगधमपुरम कहा गया है। जैन साहित्य में बिम्बिसार का नाम 'श्रेणिक' मिलता है। महावंश के अनुसार बिम्बिसार को उसके पिता ने 15 वर्ष की आयु राज्य दिया। -अतः भण्डारकर महोदय का कथन सही प्रतीत नहीं होता। मत्स्य पुराण में बिम्बिसार के पिता का नाम 'क्षेत्तौजस' दिया गया है।


है।  (Frederick Jackson Turner) टर्नर महोदय के अनुसार पिता का नाम 'भट्टिय' था जिसे अंग नरेश ब्रह्मदत्त ने हराया था। दीपवंश में पिता का नाम 'बोधिस' व तिब्बती अनुश्रुति में 'महापद्म' मिलता है।

बौद्ध ग्रंथों के अनुसार मगध का प्रथम शासक विरथा। यह मत सबसे अधिक तर्कसंगत है।

 कूटनीतिक वैवाहिक सम्बन्ध व विजयें :


रायचौधरी के अनुसार 'यूरोप के हैप्सवर्ग तथा बोरबन्स की तरह बिम्बिसार भी राजवंशों से वैवाहिक सम्बन्धों का समर्थक था।

1. सबसे पहले लिच्छवी गणराज्य के चेटक की पुत्री चेलना (छलना) से विवाह कर मगध को उत्तरी सोमा को सुरक्षित किया क्योंकि लिच्छवी मगध की प्रारम्भिक राजधानी गिरिवज्र पर रात्रि आक्रमण करते थे। एक बार नगर में आग भी लगा दी थी। वैदेही वासवी की पहचान चेल्लना से ही की जाती है जो अजातशत्रु द्वारा बिम्बिसार को कारागार में डालने पर प्रतिदिन भोजन देने जाती थी। 

2. कौशल नरेश प्रसेनजीत की बहन'महाकोशला' के विवाह किया। इसके कौशल का राज्य उसका मित्र बन गया तथा दूहेज में एक लाख की वार्षिक आय का काशी ग्राम (काशी के कुछ गांव) भी प्राप्त हुआ। इससे मगध की सुरक्षा भी मिली, क्योंकि उसके और वत्स के मध्य में मित्र राज्य कौशल था। 

3. मद्रदेश (कुरू के समीप) की राजकुमारी 'क्षेमा' से विवाह किया तथा मद्रों का सहयोग प्राप्त किया। क्षेमा ने ही कौशल नरेश प्रसेनजीत को बौद्ध धर्म की शिक्षा दी।



महावग्ग में बिम्बिसार की 500 रानियां होने का उल्लेख है। संभवतः उसने अन्य राजवंशों से भी वैवाहिक सम्बन्ध किये होंगे। अवन्ति के शासक चण्डप्रद्योत से बिम्बिस्तर ने सम्बन्ध स्थापित किये। उसने अपने प्रसिद्ध राजवैद्य जीवक को पाण्डुरोग (पीलिया) से पीड़ित प्रद्योत की चिकित्सा के लिए भेजा। रोरूक (सिन्ध) शासक रूद्रायन व गांधार के पुष्करसारिन (पुक्कुसाति) भी उसके मित्र शासक थे। गांधार नरेश पुक्कुमाति ने बिम्बिसार के दरबार में अपना दूत भेजा था। कूटनीतिक व वैवाहिक सम्बन्धों से उसकी आक्रमण नीति का श्रीगणेश हुआ।



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