जानिए भारतीय संविधान का अनुच्छेद 32 के बारे में , सम्पूर्ण जानकारी।
व्यक्तिगत स्वतंत्रता के लिए यह लेख सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
यह उस व्यक्ति की प्रार्थना पर जारी किया जाता है जो यह समझता है कि उसे अवैध रूप से बंदी बनाया गया है। इसके द्वारा न्यायालय बंदी करने वाले अधिकारी को आदेश देता है कि वह बंदी बनाये गये व्यक्ति को निश्चित समय और स्थान पर उपस्थित करें, जिससे न्यायालय बंदी बनाये गये कारणों पर विचार कर सकें। दोनों पक्षों की बात सुनकर न्यायालय इस बात का निर्णय करता है कि नजर बंद वैध है अथवा अवैध । इस प्रकार अनुचित एवं गैर कानूनी रूप से बंदी बनाये गए व्यक्ति बंदी प्रत्यक्षीकरण के लेख के आधार पर स्वतंत्रता प्राप्त कर सकता है।
भारतीय सविधानं में वर्तमान में कुल 6 मौलीक अधिकार है,(At present there are 6 fundamental rights in the Indian constitution)
जो छठा मौलीक अधिकार है, वह यह कहता है कि पहले की जो 5 मौलीक अधिकार है, उंनको यदि किसी प्रकार का उलंघन किया जाय या किसी प्रकार नुकसान पहुचाया जाय तो, ऐसी इश्थिति में Article 32 सवैधानिक उपचारों के अधिकार के द्वारा हमारे उन मौलीक अधिकारों की कैसे रक्षा की जाय अनुच्छेद 32 में उल्लेखित है।
मूल सविधानं में 7 मौलीक अधिकार थे, (There were 7 fundamental rights in the original constitution)
संपत्ति का अधिकार (Article 31) भी शामिल था। हालाँकि इसे 44वें संविधान सांसोधन 1978 में मौलिक अधिकारों की सूची से हटा दिया गया था। और इसे विधिक अधिकार बना दिया गया।
◆डॉ भीमराव अंबेडकर ने Article 32 को भारतीय सविधानं का आत्मा कहा था
◆ मौलीक अधिकार और विधिक अधिकार क्या होता है। 'एक line में'
> मौलीक अधिकार की रक्षा Article 32 के द्वारा माननीय सुप्रीम कोर्ट करता है।
> लेकिन विधिक अधिकर की रक्षा अनुच्छेद 32 के द्वारा नही होती है
अनुच्छेद 32 यह कहता है कि,जो हमारे मौलीक अधिकार प्राप्त है उसका उलंघन होता है,तो इस इश्थिति मे सुप्रीम कोर्ट 5 तरह की याचिका (रिट) जारी कर सकता है।
अनुच्छेद 32 में उल्लेखित महत्वपूर्ण बातें।
(क) मौलीक अधिकारों के उलंघन पर सुप्रीम कोर्ट रिट जारी करेगा
(ख) पांच याचिकाओं का उल्लेख
(ग) सुप्रीम कोर्ट, मौलीक अधिकारों के उलंघन पर याचिका जारी करता है, संसद कानून बनाकर सुप्रीम कोर्ट के अलावा अन्य न्यालय को भी याचिका जारी करने का अधिकार दे सकती है।
मौलीक अधिकरो के उलंघन होने पर सुप्रीम कोर्ट व हाई कोर्ट दोनो याचिका जारी कर सकते है, लेकिन बात 32 की हो तो केवल सुप्रीम कोर्ट ही जारी कर सकता है
◆ पांच प्रकार की याचिका (Five types of petition)
(1) बंदी प्रत्यक्षीकरण। ( Habeas Corpus) अर्थात शरीर शाहित किसी को उपस्थित करना
किसी वेक्ति को अवैध रूप से बंदी बना लेने पर habeas Corpus याचिका जारी किया जाता है
(2) परमादेश (मेंडेमस mendemus) अर्थात हम आदेश जारी करते है, किसी सन्स्था द्वारा अपने निर्धारित कार्य नही करने पर सुप्रीम कोर्ट यह याचिका जारी करता है,
(3) पतिषेध (Prohibition) अर्थात। रुकना, किसी कार्य को करने से रुक जाना किसी भी सन्स्था का जो कार्य नही है, फिर भी वो अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर यदि किसी कार्य को करती है, तो उस सन्स्था को वे कार्य करने से रोका जाए, इश्लिये प्रतिषेध याचिका जारी किया जाता है, यानी आप रुक जाव यह कार्य आपका नही है
(4) उत्प्रेषन (Certiorari) अर्थात रुक जाओ कोई सन्स्था जब अपने निर्धारित क्रायो से बाहर जाकर कोई कार्य करती है, जिसे लोगो के मौलीक अधिकरो का उलंघन हो तो ,ऐसी इश्थिति में सुप्रीम कोर्ट ये याचिका जारी करेगा। उस सन्स्था को कहेगा, रुक जाओ और जब कोर्ट उस याचिका को अपने पास बुला लेता है तो इसे ही उत्प्रेषन कहा जाता है।
(5) अधिकार प्रच्छा ( Co warranto) अर्थात किस अधिकार से प्रत्येक सार्वजनिक पद के लिए कोई न कोई योग्यता होता है, अगर आप उस योग्यता के परे जाकर उस Qualifications , का उलंघन करते हुए यदि आप किसी पद को प्राप्त कर लेते है, और इससे लोगो के मौलीक अधिकारों का उलंघन होता है। तो सुप्रीम कोर्ट पूछता है, आप किस अधिकार से इस पद पर बैठे है
0 टिप्पणियाँ
magadhIAS Always welcome your useful and effective suggestions